किसी भी कार्य की शुरुआत अगर होती है तो हमेशा ख़ुशी और सफलता के साथ होती है। हिन्दू धर्म के अनुसार हर नए अवसर पर एक विशेष अतिथि की सबसे पहले पूजा की जाती है जिसे भगवान गणेश के नाम से जाना जाता है। भगवान गणेश को सफलता, बुद्धि और बाधाओं को दूर करने वाला देवता भी माना जाता है। यह सबके आराध्य देव है।

गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है, जिसे लोग बड़ी धूमधाम के साथ मनाते है। गणेश चतुर्थी के दिन लोग अपने घरों,मंदिरों और पांडालों में भगवान गणेश की मूर्ति लेकर आते है नौ दिनों तक उनकी पूजा-अर्चना करते है। इन दिनों मंदिरों में भारी संख्यां में लोगों का ताँता लगा होता है, जगह- जगह गणेश के जयकारे लग रहे होते है। नौ दिनों तक भगवान की पूजा के साथ- साथ, कई सारे कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते है। नौ दिनों के बाद ढोल-नगाड़ों के साथ भगवान गणेश की मूर्ति को किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है।

गणेश चतुर्थी कई संस्कृतियों का एक अभिन्न अंग रहा है। यह त्योहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है किन्तु महाराष्ट्र में बड़ी धूमधाम से मनाते है। गणेश जी के जन्म की कथा पौराणिक होने के साथ ही आज के परिप्रेक्ष्य में पूर्ण प्रासंगिक भी है। शिव पुराण के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को भगवान गणेश की अवतरण-तिथि बताया गया है जबकि गणेश पुराण के अनुसार यह गणेशावतार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ था।

अब बात करते है की भगवन गणेश का अवतरण हुआ कैसे ?
बात बहुत पुरानी है जब बर्फ से ढंके हुए कैलाश पर्वत पर भगवान शिव और माता पार्वती रहते थे। एक दिन माता पार्वती स्नान करने के लिए जा रही थी तो उनकी रक्षा करने के लिए कोई नहीं था तब उन्होंने हल्दी और उबटन से एक बालक को जन्म दिया और अपनी दिव्य शक्तियों से उसे जीवित कर दिया। वह बालक करीब 3 साल का था जिसका पेट हल्का सा बाहर निकला हुआ था। जिसे भगवान गणेश का नाम दिया गया।

माँ पार्वती जब स्नान करने के लिए जा रही थी तब उन्होंने भगवान गणेश को द्वार की रक्षा करने का आदेश दिया उस समय भगवान शिव किसी कार्य से बाहर गए हुए थे। जब भगवान शिव वापस लौटे तो उन्होंने द्वार पर एक बालक को खड़े देखा। द्वार की रक्षा करते समय गणेश, शिव से पूरी तरह अनजान थे तो उन्होंने शिव को अंदर प्रवेश करने से रोक दिया।
” बालक क्या तुम मुझे जानते हो की मैं कौन हूँ ? तुमने मुझे रोकने की हिम्मत कैसे की ?” शिव ने गुस्से में पूछा।
“हालांकि मैं आपको नहीं जानता की आप कौन है पर फिर भी मैं आपको अंदर जाने की अनुमति नहीं दूंगा क्योंकि मुझे माता पार्वती का आदेश है ” गणेश ने दृढ़ स्वर में उत्तर दिया।
गणेश के उत्तर से क्रोधित होकर, शिव जी ने गणेश का सिर, धड़ से अलग कर दिया। कैलाश पर्वत के उस शांत वातावरण में एक जोर की चीख गूंज उठी इस समय भगवान गणेश का शरीर और सिर जमीन पर बेज़ान पड़ा था। इतनी जोर की चीख पुकार सुनकर माता पार्वती दौड़ी चली आई। आंसुओं और क्रोध से भरी आँखों से, उन्होंने शिव पर चिल्लाते हुए कहा, “तुमने उसे क्यों मारा? वह आपका पुत्र गणेश था। जब मैं स्नान कर रही थी तब मैंने उसे द्वार की रखवाली करने और किसी को भी अंदर नहीं आने देने का आदेश दिया था। अब आपने हमारे बेटे को मार डाला है तो उसे पुनः जीवित करने की जिम्मेदारी भी आपकी है। मैं नहीं जानती कि आप इसे कैसे जीवित करेंगे, लेकिन आपको हमारे बेटे को कैसे भी करके वापस लाना ही होगा।”
अपनी गलती पर पछताते हुए शिव अपने पुत्र के मृत शरीर के पास बैठ गए और उन्होंने तुरंत अपने सेवकों को आदेश दिया कि वे किसी भी जीवित प्राणी का सिर ले कर आए। जब सेवकों ने अपना कार्य शुरू कर दिया, तब उन्हें एक हाथी का बच्चा नज़र आया जो एक पेड़ के नीचे शांति से सोया हुआ था।
सेवकों ने तुरंत उसे मार डाला और उसके सिर के साथ लौट आए। शिव ने उस सिर को निर्जीव शरीर के पास रखा और वह सिर तुरंत ही उस निर्जीव शरीर से जुड़ गया तभी आँखे फड़फड़ाते हुए भगवान गणेश खड़े हो गए।
तभी शिव जी ने गणेश से कहा, ” अब तुम गणपति के नाम से जाने जाओगे और मेरे गणों के नेता होंगे। कोई भी ईश्वर या मनुष्य आपका आह्वान करने से पहले कोई भी नया कार्य शुरू नहीं कर पाएगा। आपके पास मनुष्य के मार्ग से सभी बाधाओं को दूर करने की शक्ति होगी और आपके भीतर दुनिया का सारा ज्ञान होगा। ”

हालांकि गणेश चतुर्थी की उत्पत्ति कैसे हुई, इसका कोई प्रमाण नहीं है, फिर भी इसके बारे में बहुत सारी कथाएं हैं ।
कई सालों पहले देश आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहा था, तब गणेश उत्सव ने ही एकता क्रान्ति के लिए ही सांस्कृतिक क्रांति का सूत्रपात किया। गणेश उत्सव मंदिरों से निकलकर घरों और पांडालों में आ गया। आइए जानते है इसकी पूरी कहानी –

17 वीं शताब्दी में शिवाजी सत्ता में आए, जिन्हें मराठा साम्राज्य का संस्थापक माना जाता था। शिवाजी ने गणेश चतुर्थी मनाना शुरू किया और उसके बाद, उनके सभी उत्तराधिकारी इसे अपनी राजधानी पुणे में भाद्रपद के महीने में मनाते रहे। लेकिन ब्रिटिश राज के आने के बाद यह उत्सव समाप्त हो गया और लोगों ने इसे अपने घरों में मनाना शुरू कर दिया है।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक इनको तो हम सब जानते ही है। गणेश त्योहार को धूमधाम से मनाने के लिए इन्होंने कितनी मशक्कत की है, कितने विरोधों का सामना किया था। 1894 की बात है जब कांग्रेस के उदारवादी नेताओं के भारी विरोध की परवाह किए बिना दृढ़निश्चय कर चुके लोकमान्य तिलक ने इस गौरवशाली परंपरा की नींव रखीं।
स्वतंत्रता आंदोलन के समय तिलक अक्सर चौपाटी पर समुंद्र के किनारे बैठा करते थे और वहां बैठे उन पानी की लहरों को देख कर हर वक्त यहीं सोचा करते थे की किस प्रकार लोगों को एकजुट किया जाए। तब उन्होंने गणेश चतुर्थी को घरों से बाहर निकाल कर सार्वजनिक स्थानों पर मनाने का फैसला किया ताकि हर व्यक्ति, हर समाज के लोग एक साथ एकत्रित होकर ये त्योहार धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाए। बाद में इस सावर्जनिक गणेशोत्सव स्वतंत्रता संग्राम में लोगों को एकजुट करने का ज़रिया बना। थोड़े समय बाद फिर, गणेश चतुर्थी पर सड़कों पर खुशी शुरू हो गई, जब स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में विस्तृत पांडालों और सार्वजनिक मंचों के साथ इसे फिर से शुरू किया।
भगवान गणेश की पूजा तो प्राचीन काल से ही होती आ रही है पर सार्वजनिक स्थलों पर इस त्योहार को धूमधाम से आयोजित करने का श्रेय बाल गंगाधर तिलक को जाता है।
गणेश चतुर्थी कई संस्कृतियों का अभिन्न अंग रहा है। हर संस्कृति का त्योहार मनाने का एक अलग तरीका होता है। विद्या, बुद्धि, विनय, विवेक में भगवान गणेश अग्रिम हैं। भगवान गणेश हिन्दुओं के सबसे बड़े भगवान है जो अपने भक्तों को बुद्धि, समृद्धि तथा संपत्ति का आशीर्वाद देते है। हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि जब गणेश जी घर पर आते है तो ढेर सारी सुख, समृद्धि, बुद्धि और खुशी ले आते है हालाँकि जब वो हमारे घर से प्रस्थान करते है तो हमारी सारी बाधाएँ तथा परेशानियों को साथ ले जाते है। तब ही इन्हे विघ्नहर्ता के नाम से भी जाना जाता है।

Previous articleउदयपुर बोहरा गणेश के नाम के पीछे क्या है रहस्य ?
Next articleजानिए तुरंत सुनवाई वाले प्रतापगढ़ के खड़े गणपति की अनोखी कहानी जिसका श्रृंगार आज भी काजू बादाम और सिक्के से होता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here