भारत की नारियों ने इतिहास में अपने शौर्य और पवित्रता की जो अमिट छाप छोड़ी है, इतिहास के पन्ने आज भी उनकी वीर गाथाओं को गाते है। त्याग और बलिदान की प्रतिमूर्ति महारानी पद्मिनी जिसकी गौरव गाथा आज भी गाई जाती है, ऐसी वीरांगना और देवी स्वरूप महारानी ने इतिहास में आज ही के दिन उन क्रूर और आक्रमणकारियों से अपने आप को बचाने के लिए जौहर किया था। इस चर्चित कहानी में रानी पद्मिनी ने 26 अगस्त 1303 को ही 16000 क्षत्राणियों के साथ चित्तौडगढ़ में जौहर किया था।
जौहर का इतिहास बहुत पुराना बताया गया है। जौहर राजपूत रानियों एवं राजपूत घरानो की महिलाओं द्वारा दुश्मनों से आत्मरक्षा एवं स्वाभिमान के लिए की जाने वाली एक प्रथा है । कहा जाता है की पुराने समय में जब राजा युद्ध में हार जाते और यदि वह वीरगति को प्राप्त हो जाते तब रानी और उनके साथ रहने वाली दासियाँ जौहर कर लेती थीं अर्थात जौहर कुंड में आग लगाकर उसमें कूद जाती थी।

महलों के अंदर बड़े -बड़े कुंड बने हुए होते थे, जौहर के समय इन कुंडों में आग लगाईं जाती और सारी महिलाए इस जलते कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग देती थी। जौहर की परंपरा खास तौर पर राजस्थान में ज्यादा प्रसिद्ध थी। आज भी इतिहास के पन्नो में उन वीरांगनाओ का नाम अंकित है।

कहते है की जो राजा विजय प्राप्त कर लेता था वो हारने वाले राजा के महलों में शासन कर लेते थे और उनकी महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार करते थे जिस वजह से महिलाए अपने इज़्ज़त और मान की रक्षा करने के लिए जौहर करती थी।

जौहर का ज़िक्र अधिकतर हिन्दू राजपूतों के गौरवशाली इतिहास में मिलता है। जौहर का इतिहास 1301 ईस्वी के पूर्व का बताया जाता है। राजस्थान के चित्तौडगढ़ में प्रथम जौहर का इतिहास 1301 ई. का है। उस समय दिल्ली में अलाउद्दीन खिलजी का शासन था। इस युद्ध में राणा रतन सिंह पराजित हो गए तब महारानी पद्मिनी ने अपने शान और शौकत की रक्षा करने के लिए सारी दासियों के साथ जौहर किया था। इस जौहर में लगभग 13000 वीरांगनाए शामिल थी।

त्याग और बलिदान की ऐसी प्रतिमूर्ति महारानी पद्मावती जिसके वीर एवं साहस के गुणगान आज तक गए जाते है। ऐसे ही इतिहास में रानी पद्मिनी स्वरुप और भी कई सारी महारानियाँ है जिन्होंने जौहर करके अपने प्राणों की सुरक्षा की और अपने इज़्ज़त और मान सम्मान की भी।

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