130929110308_internet_online_laptop_624x351_pa_nocreditपूरी दुनिया में अब ज़्यादा से ज़्यादा लोग ऑनलाइन प्रोजेक्ट में वक्त दे रहे हैं. इन लोगों को पैसे या धन्यवाद के बगैर अनजाने लोगों की मदद करने के लिए कौन सी बात प्रेरित करती है?

राधा तरलेकर ने इमेल्डा को ये सीखने में मदद की कि वो ख़ुद को एचआईवी से कैसे बचाएं, हालांकि दोनों कभी नहीं मिली हैं और न एक दूसरे का नाम ही जानती हैं.

मुंबई में अपने घर से युवा डॉक्टर राधा तरलेकर ने कई हफ़्तों में युगांडा की इमेल्डा और किटेगा समुदाय की उनकी साथियों के लिए एक सूचना पुस्तक तैयार की, इमेल्डा के बच्चे एचआईवी/एड्स का शिकार बने थे.

राधा तरलेकर को इस काम के लिए कोई रकम नहीं मिली, इस काम का विज्ञापन संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट पर दिया गया था और इसका मकसद दफ्तरों में काम करने वाले लोगों को उन लोगों से जोड़ना था जिन्हें मदद की ज़रूरत है.

‘घर से काम करने का मौका’

राधा तरलेकर उन प्रतिभाशाली लोगों में से हैं जो ऑनलाइन दूसरे लोगों की मदद करते हैं. लेकिन क्या चीज़ है जो बगैर किसी मुनाफ़े की उम्मीद के इन लोगों को दूसरे लोगों की मदद करने के लिए प्रेरित करती है?

तरलेकर का कहना है कि इस प्रोजेक्ट से उन्हें दूसरे देशों के लोगों के साथ काम करने का मौका मिला, बगैर अपना देश छोड़े.

वो कहती हैं, “मैं सिर्फ़ पैसे के लिए काम नहीं करती. मैं लोगों की सेवा करना चाहती हूं, मैं नए विचार रखना चाहती हूं.”

कैंसर पीड़ित अपनी पत्नी और बहन को गंवा चुके टोनी सेलमैन ने कैंसर पर शोध करते हुए कई घंटे बिताए.

टोनी सेल स्लाइडर का इस्तेमाल करते हैं, ये एक वेबसाइट है जो लोगों से कहती है कि वे ट्यूमर के नमूनों के माइक्रोस्कोप से लिए फोटो की समीक्षा करें और उन्हें अलग-अलग श्रेणी में रखें.

टोनी कहते हैं, “मुझे पता है कि ये बीमारियां कितनी खतरनाक हैं. मेरी पत्नी की जब मौत हुई तब मैं उनके साथ था. ये परोपकार का मसला नहीं है. बल्कि उस ज्ञान की बात है जिससे लगे कि आप कुछ दे सकते हैं और संतुष्टि हासिल कर सकते हैं. ईमानदारी से कहूं तो इससे मैं संतुलित रहता हूं.”

‘सामाजिक पहलू’

साल 2011 में मैनचेस्टर के रहने वाले डिज़ाइनर सैम लक ने हत्या के एक मामले को सुलझाने में अमरीकी जांच एजेंसी एफबीआई की मदद शुरू की.

12 साल पहले मिस्सोरी में रिकी मक्कॉर्मिक का शव एक मैदान में मिला था. सुराग थे वो दो कूटरचित खत जो रिकी की जेब में मिले थे. इन कोड को समझने में नाकाम रहने पर एफबीआई ने इन्हें इंटरनेट पर डाल दिया और स्वयंसेवकों से अपील की कि इन संदेशों को समझने में मदद करें.

लेकिन इस काम में एक सामाजिक पहलू भी था. सैम ने अपने जैसे लोगों से जुड़ने के लिए इस प्रोजेक्ट को लेकर एक ब्लॉग भी लिखा.

सैम ने इन नोट को समझने के लिए कई घंटे बिताए, लेकिन संदेश समझ नहीं आए, और ये केस अब तक नहीं सुलझ पाया है.

लेखक और इंटरनेट पर सक्रिय रहने वाले क्लै शिर्की का कहना है कि मुनाफ़े की सोच के बगैर काम करने की ये बात समझी जा सकती है.

उनका कहना है, “हम इस बाज़ार की ताकतों के चलते अपने समाज को प्रशासित करने के विचार के इतने आदी हो चुके हैं कि हम भूल जाते हैं कि ज़्यादातर लोग ज़्यादातर काम बगैर मेहनताने के करते हैं.”

‘खरबों घंटे का खाली समय’

शिर्की का मानना है कि दुनिया भर में पढ़े-लिखे लोगों के पास हर साल खरबों घंटे का समय होता है जिसे सहयोगपूर्ण प्रोजेक्ट में लगाया जा सकता है.

‘हेल्प फ्रॉम होम’ जैसी वेबसाइट लोगों को अपने खाली वक्त का कुछ समय भी देने के लिए प्रेरित करती हैं लेकिन कुछ ऑनलाइन स्वयंसेवक ऐसे बड़े प्रोजेक्ट में भी काम करने को तैयार हैं जो इस “सूक्ष्म स्वयंसेवा” से कई गुना बड़े हैं.

विकीपीडिया दुनिया के सबसे बड़े ऑनलाइन एनसाइक्लोपीडिया प्रोजेक्ट में से है.
विकीपीडिया दुनिया के सबसे बड़े ऑनलाइन एनसाइक्लोपीडिया प्रोजेक्ट में से है.

उदाहरण के लिए, विकीपीडिया जो दुनिया का सबसे बड़ा एनसाइक्लोपीडिया है उसे ऐसे लोगों ने लिखा है जो अपनी विशेषज्ञता का योगदान बगैर किसी मेहनताने के करने के इच्छुक हैं.

इसके अलावा बड़े-बड़े जटिल ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर को प्रतिबद्ध लोगों ने तैयार किया है जो अक्सर बगैर मेहनताने के काम करते हैं.

वर्ल्ड वाइड वेब के आधार अपाचे को खड़ा करने में मदद करने वाले ब्रायन बेहलेंडर्फ मानते हैं कि माइक्रोसॉफ्ट के खिलाफ बगावत की भावना उनके लिए प्रेरणा थी.

उनका कहना है, “एक आदर्शवाद की भावना थी, हम नहीं चाहते थे कि इंटरनेट का भी हाल डेस्कटॉप कम्प्यूटर जैसा हो. हम जानते थे कि चोटी के एक-दो लोगों को छोड़ दें तो ओपन सॉफ्टवेयर सब के लिए बढ़िया है.”

युगांडा में किटेगा सामुदायिक केंद्र में स्वयंसेवकों के संयोजक डेविड क्लेमी इस बात से सहमत हैं कि उनके चैरिटी को घर बैठे मदद करने वाले दुनिया भर के लोग आदर्शवाद से प्रेरित हैं.

वो कहकते हैं, “वो लोग दुनिया बदलना चाहते हैं, ऑनलाइन स्वयंसेवकों नहीं होते तो ये प्रोजेक्ट आज जहां है उससे 20 साल पीछे होता. “

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Contributer & Co-Editor at UdaipurPost.com

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