झुकना जीवित की, अकडना मुर्दे की पहचान- आचार्य सुकुमाल नंदी

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उदयपुर, ’’ मन-वचन और काय से मृदु होना, कोमल होना ही धर्म है। जिस प्रकार छोटे पौधे व घास भुकने की प्रवृज्जि होने के कारण स्थायी रूप से रहते है और बडे-बडे वृक्ष अकड प्रवृत्ति होने के कारण समूल रूप से उखड जाते है।’’

उक्त उद्गार आचार्य सुकेमाल नंदी जी ने गुरूवार को हिरणमगरी में धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति अकड कर जीवन यापन करते हैं वे कभी भी आगे बढ नहीं पाते, जितने भी महापुरूष होते हैं वे सभी अत्यन्त नम्र होते है, वृक्ष भी फलों से लदा होता है तो नीचे झुक जाता है, मोक्ष मार्ग में कदम बढाना हो तो विनय पूर्वक ही अपने जीवन को व्यतीत करना होती । अहंकार ही सभी झगडों की जड है यदि आत्मा से अहंकार निकल जाए तो इंसान भगवान तुल्य बन जाए।

पर्युषण के पर्व के दूसरे दिन भी श्रद्घालुओं का ज्वार फुट पडा, मंदिर व भवन दोनों में बैठने की जगह नहीं मिली। दोपहर को दशलक्षण विधानका आयोजन हुआ, तस्वार्थ सूत्र ग्रंथ की कक्षा आचार्य ने ली, तथा शाम को ६ बजे आत्मा का ध्यानकरवाया गया, बडा प्रतिक्रमण व सामायिक कराई गई।

रात्रि में भव्य आरती, भत्ति* व विचित्र वेश भूषा प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। दो साधकों ने २२ वे उपवास, २५ श्रावकां द्वारा पांचवे उपवास व सैंकडों श्रदलुओं द्वारा लगातार दूसरे उपवास का श्रीप*ल आचार्य के चरणों में चढाया गया।

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