उदयपुर, भारतीय लोक कला मण्डल की स्थापना के ६० वर्ष के समारोह में दूसरे दिन दि परफोरमर्स, के सहयोग से रंग टैगोर की प्रस्तुति बहुत ही आकर्षक रही ।

यह एक अप*गानी पठान व बालिका मिनी की कहानी है । इसमें बताया गया है कि अफगानी पठान हर साल सूखे मेवे बेचने के लिए कलकत्ता आता है यहां बंगाली परिवार से उसका लगाव हो जाता है । उस परिवार की बालिका मिनी को देखकर वो अपनी बेटी को याद करता है जो उसी की उम्र की है । बंगाली बाबू की पत्नी मिनी और काबुलीवाला की दोस्ती पसंद नही करती । जब काबुलीवाला अपने देश जाते समय बनिये को दिए सूखे मेवे के पैसे मांगने जाता है तो उसे झूठे आरोप लगाकर जेल भिजवा देता है । वह जेल से दस साल की सजा काटते हुए अपने परिवार को याद करता है । सजा पूरी होने पर अफगान लौटते समय वह बंगाली परिवार की बेटी मिनी से मिलने की इच्छा जताता है । मिनी अब ब$डी हो चुकी थी और उसकी शादी की तैयारी हो रही थी । काबुलीवाला बंगाली परिवार से मिनी से एक बार मिलने की गुहार करता है और मिनी जैसी ही उसकी बेटी होने की जानकारी देता है । बंगाली परिवार काबुलीवाला पर दया करते हुए मिनी को शादी का आधा खर्च उसकी बेटी की परवरीश के लिए दे देता है । दस साल पुरानी यादों को ता$जा कर काबुलीवाला और मिनी गले मिल रो प$डते है ।

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