उदयपुर, आकाशवाणी केन्द्र उदयपुर द्वारा अपने पैंतालीसवें स्थापना दिवस के उपलक्ष में गुरूवार की शाम स्थानीय सुखाड़िया रंगमंच के सभागार में महफिल-ए-कव्वाली का आयोजन जिसमें देश के ख्यातनाम कव्वाल पार्टी ने में मशुहर शायरों के सूफीयाना कलाम पेश कर ऐसा शमा बांधा कि शहरवासी भावविभोर हो गये। और कव्वाली की ताल में ताल मिलाकर झूम उठे। कार्यक्रम में ख्यातनाम कव्वाल- मो. इदरीस और साथी-दिल्ली, टीमू गुलफाम और साथी- जयपुर व कपासन के शब्बीर हुसैन साबरी और साथी शिरकत कर कव्वालियां पेश की।

कार्यक्रम का शुभांरभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। उसके बाद कलाकारों का पुष्पों से स्वागत कार्यक्रम सलाहकार समिति व स्थानीय संगीत श्रवण समिति के सदस्यों द्वारा किया गया। स्वागत उद्बोधन देते हुए केन्द्र निदेशक माणिक आर्य ने कव्वाली के उद्भव और विकास के बारे में विस्तार से बताया कि हिन्दुस्तान में कव्वाली ८०० साल पहले से प्रारभं हुई। कव्वाली विधा में साम्प्रदायिक सदभाव कोमी एकता विकसित करने में महत्वपूर्ण कार्य किया।

महफिल-ए-कव्वाली का आगाज़ कपासन के शब्बीर हुसैन साबरी एवं पार्टी ने वफा रहमानी के सुफायाना कलाम- अपने ऱब का वही आईना हो गया, एक बशर-जब हबीबे खुदा हो गया पेश किया। उसके बाद उन्होंने जमील साबरी का कलाम -ख्वाजा तेरी अताबी अजब बेमिसाल है, निसबत से तेरे दर का सवाली मालामाल है, सूफी बिस्मिल नक्शबंदी की ग़ज़ल चाहत मेरी ठुकराओगे मालुम न था तुम इतना बदला जाओगे मालूम न था और ताबीश इलाहबादी की गज़ल- पागल एक ऐसी बात बता कर चला गया, अहले सीरत के होश उड़ा कर चला गया, पेश कर खुब वाहवाही बटौरी। जयपुर से तशरीफ लाए टीमू गुलफाम और साथियों ने नसीम रिफ़त के नात-ए-कलाम- मुख्तारे कायनात है जो चाहे मांग लो आका मेरा हयात है जो चाहे मांग लो पेश कर महौल सुफीयाना बना दिया। उन्होंने बेदम वारसी का कलाम रहती हॅू तेरी निसबत में मगन या ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन, आदिल नागपुरी का कलाम रहकर करीब दूर की सोचा ना कीजिये हर आदमी को बेवफा समझा ना कीजिये और अमीर खुसरो के सुप्रसिद्ध कलाम-छाप तिलक सब छिनी मौके नैना मिलाके पेश कर सबको झूमने पर मजबुर कर दिया। दिल्ली से आए ख्यातनाम कव्वाल- मो. इदरीस और साथी ने कॉल ए मोहम्मदी पर अमीर खुसरो की रचना- मनकून तो मौला……. फहाज़ा अली उन मौला …….. की सुमधूर प्रस्तुति दी। उसके बाद उन्होने नात-ए-शरीफ – पिया बिन कैसे चैन पाउं, आए पिया ना मूझको बुलाएं, मुझ बीरहन का जी ललचाएं सावन बीतो जाएं सुना कर खुब दाद वसूली। उन्होंने खुमार बारांबंकी की गज़ल क्या बताउं कि क्या हो गया यार का सामना हो गया, और शाहबाज कलन्दर की शान में बाबा बुल्लेशाह का कलाम-दमादम मस्त कलन्दर अली का पहला नम्बर पेश कर उपस्थित श्रोताओं को मदमस्त कर दिया।

Previous articleUdaipur News File – 21.03.2012
Next articleगंगा आरती कर संवत् 2068 को किया विदा

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here