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उदयपुर . वैसे तो जिस्मफरोशी का व्यापार सदियों पुराना है। जो सिर्फ भारत में नहीं बल्कि दुनिया के अधिकतर देशों में फैला है। इसके बावजूद आज भी इस व्यापार को समाज में घृणित निगाह से ही देखा जाता है। लेकिन मध्य प्रदेश के नीमच, मंदसौर, रतलाम व कुछ अन्य इलाकों में एक समुदाय के लोग इस व्यापार को गलत नहीं मानते हैं। बल्कि  इन लोगों की मुख्य आय का साधन ही जिस्मफरोशी है। जिसमें ये अपने ही परिवार की महिलाओं को लिप्त करते हैं।

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बाछड़ा समुदाय के अधिकतर लोग मंदसौर-नीमच में बस्तियों के रूप में रहते हैं। इसके अलावा रतलाम के भी कुछ हिस्सों में भी इस समुदाय के लोगों का निवास है। ये लोग पिछले कई वर्षों से इस व्यापार में लिप्त हैं और देह व्यापार को परंपरा मानते हैं। इतना ही नहीं समुदाय के पुरुष ही महिलाओं को जिस्मफरोशी के लिए दबाव डालते है। ताकि उसकी कमाई से परिवार के अन्य लोगों का भरण- पोषण हो सके या यूं कहे कि जिस्मफरोशी के धंधे से ही इस समुदाय के लोगों का जीवन निर्वहन होता है।

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50 से 200 रुपए के लिए धंधे में लिप्त समुदाय की महिलाओं को इसके लिए बचपन से ही तैयार किया जाता है। बालिका के वयस्क होने पर उसके पिता और भाई महिला का सौदा करते हैं। और यह समुदाय के लोगों के लिए आम बात है। बेटियों से देहव्यापार कराने के कारण बेटी के जन्म होने पर समुदाय के लोग खुशियां मनाते हैं। यहां तक की यदि समुदाय को कोई युवक समाज की किसी लड़की से शादी करना चाहता है तो युवक को बड़ी रकम लड़की के घरवालों को देनी पड़ती है। जिसका निर्णय समाज के लोग बैठक के माध्यम से करते हैं। ये महिलाएं ग्राहकों को तरह-तरह से आकर्षित करती हैं। साथ ही यहां से गुजरने वाली सड़कों में इन्हें खुलेआम देखा जा सकता है। यहां तक की समाज की महिलाएं भी जिस्मफरोशी को परंपरा के रूप में ही देखती हैं। इस समुदाय के लोगों को समाज की सामान्य धारा में लाने के लिए स्थानीय प्रशासन व सरकार की ओर से निरंतर प्रयास किए जाते रहे हैं। लेकिन समुदाय के लोगों में कोई खास सुधार नहीं हुआ।

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