पाली जिले के घने जंगलो में, हरी-भरी वादियों में स्थित है, एक जैन मंदिर। जहाँ कई सारे सुन्दर और भव्य मंदिर है जो पूर्ण हस्तकलाओं से सुसज्जित है। इस हरी-भरी वादियों के भीतर दफ़न है एक अनसुलझा रहस्य, जो उन मंदिरों की कलाकृतियां, हस्तशिप कारीगरी और बारीक निर्माण कलाओं से सुशोभित करने वाले खम्भों के पीछे का रहस्य है। इन्हे किसने और कब बनवाया ,क्यों बनवाया, कितना समय लगा? आइए जानते है इस अनोखे और निराले मंदिर की कहानी।

रणकपुर जैन श्वेताम्बर मंदिर पाली जिले के सादड़ी मे स्थित है। इस मंदिर का निर्माण बहुत ही सुन्दर रूप से किया गया है। इस मंदिर में कई सारे खम्भे है। मंदिर के खम्भों को लेकर यहाँ एक अलग ही रहस्य है। मंदिर अपने आप में कई सारे रहस्यमय कहानियों से भरा है। इस मंदिर में जैनों के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर में ऋषभदेव की संगमरमर की चार प्रतिमाएं है।
यह चतुर्मुखी मंदिर है और इसके चार कलात्मक प्रवेश द्वार हैं। यह उदयपुर से 96 किमी की दुरी पर स्थित है। हरी-भरी वादियों और पहाड़ों के बीच बसा यह मंदिर बहुत ही भव्य और खूबसूरत है। यह मंदिर बहुत बड़े क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यह मंदिर विश्वभर में प्रसिद्ध है। इस मंदिर में विदेशी पर्यटन भारी मात्रा में आते है। कई सारे लोग मंदिर में दर्शन करने के साथ भ्रमण करने भी आते है।
इस भव्य और सुन्दर मंदिर में कुल 1444 खम्भे है। मंदिर के खम्बे इसकी प्रमुख विशेषता हैं। यहाँ पत्थर पर हस्तकलाओं द्वारा कई आकृतियों से मंदिर को रूप प्रदान किया गया है। मंदिर में बारीक कार्य किया गया है और सभी खम्भों में अलग-अलग कलाकृतियाँ की गई है। मंदिर में 1444 खम्भों के हस्तकलाओं के साथ एक और रहस्य है की इन खम्भों के बीच एक खम्भा है, जिसका निर्माण टेढ़ा किया गया है।
यह मंदिर पूरा खम्भों पर ही टिका है और मंदिर में कही भी दिवार नहीं है। मंदिर में जिस तरफ भी नज़र जाती है हर जगह बस छोटे-बड़े आकारों के खम्भे ही दिखाई देते हैं, परंतु ये खम्भे इस प्रकार बनाए गए हैं कि कहीं से भी देखने पर आपको मुख्य पवित्र स्थल के ‘दर्शन’ स्पष्ट रूप से हो जाएंगे, कोई भी बाधा नहीं पहुचेंगी। यह सभी खम्बे एक लाइन में है।
आइए जानते है मंदिर के इतिहास के बारे में –
इस मंदिर का इतिहास करीब 600 साल पुराना है और यह करीब 40000 वर्ग फ़ीट में फैला है। यहाँ संगमरमर के टुकड़े पर भगवान ऋषभदेव के पदचिन्ह भी है। इस मंदिर के अलावा दो और मंदिर है जिनमें भगवान पार्श्वनाथ और नेमिनाथ की प्रतिमाएं प्रतिष्ठित है। यहाँ 84 जिनालय में कुल 372 मूर्तियां है और चार बड़े प्रार्थना कक्ष तथा चार बड़े पूजन स्थल हैं। मंदिर के पास के गलियारे में बने मंडपों में सभी 24 तीर्थंकरों की तस्वारें उकेरी गई हैं। मंदिर के उत्तर में एक रायन पेड़ भी स्थित है जो मंदिर के साथ ही 600 साल पुराना है।
कहते है की इन मंदिरों का निर्माण 15 वीं शताब्दी में राणा कुंभा के शासनकाल में हुआ था और इन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम रणकपुर पड़ा। इस मंदिर का निर्माण सेठ धरना शाह ने करवाया था जो चित्तौड़गढ़ के राजा महाराणा कुम्भा के मंत्री थे। कहा जाता है कि उन्हें एक रात सपने में नलिनीगुल्मा विमान के दर्शन हुए और इसी के तर्ज पर उन्होंने मंदिर बनवाने का निर्णय लिया। मंदिर के निर्माण के लिए धरना शाह को राणा कुंभा ने जमीन दी। उन्होंने मंदिर के समीप एक नगर बसाने का सुझाव दिया। राणा कुम्भा के नाम पर इसे रणपुर कहा गया जो आगे चलकर रणकपुर नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस मंदिर के वास्तुकार देपा सोनपुरा है।
यहाँ स्थित अन्य मूर्तियों में सहस्त्रकूट, भैरव, हरिहर, सहस्त्रफणा धरना शाह और देपा की मूर्तियाँ उल्लेखनीय है । मंदिर के बाहर अद्भुत सूर्यनारायण का मंदिर भी है।
इस मंदिर का काम 1433 में शुरू हुआ था और 1496 में पूरा हुआ था। इस मंदिर का पूर्ण निर्माण होने में 63 साल लगे। मंदिर पूरा मार्बल का बना हुआ है। मंदिर का मुख्य शिखर ईंट और चुने का बना हुआ है जिसकी ऊंचाई 102 फिट ऊँची है जमीन से। इस मंदिर की नींव में देशी घी का उपयोग किया गया है और पांच धातु, सोना, चांदी, लोहा, ताम्बा और पित्तल भरे गए है, साथ ही 33 मीटर इसकी गहराई है। मंदिर 90 हजार के क्षेत्रफल में फैला हुआ है।
मंदिर में किसी संकट के अनुमान के तौर पर तहखानों का निर्माण भी किया गया है ताकि संकट के समय में पवित्र मूर्तियों को सुरक्षित रखा जा सके।
अब बात करते है मंदिर के टेढ़े खम्भे कि, तो आज तक इसका कोई सही प्रमाण नहीं मिला की इसे टेढ़ा क्यों बनवाया ? पर हाँ यहाँ के लोगो का मानना है कि किसी खूबसूरत चीज को नज़र जल्दी लगती है। जिस प्रकार छोटे बच्चो को बुरी नज़र से बचाने के लिए काला टिका लगाया जाता है , उसी प्रकार इस सुन्दर, भव्य, आकर्षक और रमणीक मंदिर को भी किसी की नज़र न लगे इसलिए इसमें एक कमी रखी गई हैं।
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