बांसवाड़ा/उदयपुर.नवरात्रि में जहां लोग देवी की भक्ति करते नहीं थकते, वहीं देवी का रूप मानी जाने वाली नवजात बच्चियों का आज भी तिरस्कार हो रहा है। एक ऐसा ही मामला मंगलवार को जिले के सल्लोपाट थाना क्षेत्र के सागन गांव के जंगल में सामने आया।

 

कुछ घंटों पहले ही जन्मी नवजात बच्ची को परिजनों ने कपड़े में लपेट कर जंगल में मरने के लिए छोड़ दिया। भला हो उन चरवाहों का जो मंगलवार को उधर से गुजरे और उन्होंने बच्ची को पत्थरों पर पड़ा देख लिया। फिलहाल लावारिश नवजात को एमजी अस्पताल के एफबीएनसी वार्ड में भर्ती कराया गया है।

 

सल्लोपाट थाना क्षेत्र के सागन गांव के बच्चे हर रोज की तरह मंगलवार को भी जंगल में पशु चराने के लिए गए। उन्हें जंगल में एक चट्टान पर कपड़ों में लिपटी बच्ची दिखी। बच्चों ने शोर मचाकर ग्रामीणों को एकत्रित किया।

 

कुछ देर में पुलिसकर्मी भी आ गए और बच्चों को सल्लोपाट के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए। यहां प्राथमिक उपचार के बाद बच्ची को एमजी अस्पताल के एफबीएनसी वार्ड में भर्ती कराया गया। शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ.युधिष्ठिर त्रिवेदी ने बच्ची का उपचार किया। बच्ची को वजन करीब 1 किलो 750 ग्राम है। उसके शरीर पर पांच-छह स्थानों पर घाव हैं। बच्ची को चम्मच से दूध पिलाया जा रहा है।

 

बच्ची की हालत देख आंखों में आंसू आए

 

‘जब बच्ची को अस्पताल में लाया गया तो उसकी हालत देखकर मेरी आंखों में आंसू आ गए। कोई इतना अमानवीय कैसे हो सकता है। मासूम सी बच्ची के शरीर पर जगह-जगह घाव थे, मुझे लगा, जैसे किसी ने मेरी बच्ची को चोटें पहुंचाई हैं। पहले तो बच्ची को कुछ देर प्यार किया, उसका उपचार शुरू किया, दूध पिलाया, बच्ची कुछ सामान्य हुई तब मुझे चेन मिला।’

 

रश्मि दाउद शबनम, नर्स

 

यह प्री-मेच्योर बेबी है

 

वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. युधिष्ठिर त्रिवेदी ने बताया कि यह प्री-मेच्योर बेबी है, इसका जन्म निर्धारित समय से चार से पांच सप्ताह पहले हुआ है। पत्थर पर करीब 24 घंटे पड़े रहने के कारण उसके शरीर पर कई घाव पड़ गए हैं।

सो. दैनिक भास्कर

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