रत्नेश दमामी

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उदयपुर। गुजरात सरकार ने अपने उपक्रम सरदार सरोवर नर्मदा लिमिटेड के लिए हजारों निवेशको के हितों को बलि चढ़ा दिया। उसने गुपचुप प्रस्ताव पारित कर कम्पनी को मय ब्याज राशि लौटाने का अधिकार दे दिया जबकि करार में यह अधिकार केवल निवेशक के पास था। इसके जरिए केवल ब्याज पेटे ही कम्पनी को चार हजार करोड़ से अधिक का लाभ पहुंचाया गया और निवेशक ठगे रह गए। इनमें राजस्थान, मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र सहित देशभर के निवेशक शामिल हैं। गुजरात सरकार के सरदार सरोवर नर्मदा निगम लि. ने 29 सितम्बर 1993 को एक लाख 11 हजार रूपए के 20 वर्ष के डीडीबी (डीप डिस्काउंट बॉण्ड्स) 3600 रूपए में जारी किए थे। इसमें बीस साल बाद निवेशक को 1,11,000 रूपए मिलने थे।

विवरणिका व बॉण्ड के नियमों के अनुसार निवेशक को निवेश के 15 साल बाद 50 हजार रूपए वापस लेने का अधिकार था। निगम को इस अवधि के दौरान निवेशित राशि लौटाने का कोई अधिकार नहीं था।

एक तरफा फैसला

हजारों निवेशकों का हित प्रभावित होने के बावजूद सरकार की ओर से उनकी कोई राय नहीं ली गई। माहेश्वरी की ओर से इस सम्बंध में मांगी गई जानकारी पर निगम ने गुजरात सरकार के फैसले की बात कहते हुए कुछ भी बताने से पल्ला झाड़ लिया।

हजारों करोड़ का फायदा

निगम ने माना कि इस प्रस्ताव से ब्याज पेटे ही 4 हजार 84 करोड़ रूपए का सीधा लाभ हुआ अर्थात निवेशकों को नुकसान पहुंचाया गया। 12 दिसम्बर 2008 तक 4 लाख 9 हजार 667 बॉण्डधारक रिकॉर्डेड थे। गुजरात सरकार के एक तरफा प्रस्ताव के बावजूद इनमें से 15 नवम्बर 2013 तक 95 हजार 772 बॉण्डधारकों ने भुगतान नहीं उठाया।

प्रस्ताव ही अवैधानिक

यह प्रस्ताव ही अवैधानिक है। एक प्रस्ताव के जरिए गुपचुप हजारों लोगो के जेब काटी गई है। निवेशकों को उनका वाजिब हक दिलवाया जाना चाहिए। दिनेश माहेश्वरी, सामाजिक कार्यकर्ता, उदयपुर

आरटीआई से खुलासा

सामाजिक कार्यकर्ता ओस्तवाल नगर, उदयपुर निवासी दिनेश माहेश्वरी को गत माह उपलब्ध कराई जानकारी में निगम के जन सूचना अधिकारी एनएम पटेल ने बताया कि गुजरात सरकार ने नवम्बर 2008 में प्रस्ताव पारित कर निगम को 15 साल बाद या 10 जनवरी 2009 को निवेशित राशि मय ब्याज अर्थात 50 हजार रूपए लौटाने का अधिकार दे दिया है।

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