और अब नही बनना मुझे टेगौर, मुझे एक शिक्षक बनना है

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IMG_1381‘‘…. और अब नही बनना मुझे टेगौर, मुझे एक शिक्षक बनना है। एक ऐसा शिक्षक जो उसकी तरह फाकाकशी और मुफ़लिसी का जीवन बसर कर रहे सैकड़ों बच्चों के आत्मविश्वास को मजबुत कर दे, तंगहाल बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करे। जिस प्रकार उसके शिक्षक ने हमेशा उसका हौसला बढ़ाया और भविष्य का टेगौर तक कह दिया। एक ऐसा शिक्षक जो दूसरों के जीवन को प्रकाशमय कर दे।’’

मन को भावुक और भीतर से हिला देने वाली ये मर्मस्पर्शी पंक्तियां ‘‘माँ ! मुझे टेगौर बना दे’’ नाटक की है जिसका मंचन नाद्ब्रह्म एवं डॉ. मोहन सिन्हा मेहता के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित दो दिवसीय नाट्य समारोह ‘रंगाजलि’ में दूसरे दिन शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में विद्याभवन ओडिटोरियम में हुआ।

देश भर में इस नाटक के 299 मंचन कर चुके लक्की गुप्ता का यह 300 वाँ मंचन था।

उन्होंने इस नाटक में अभिनय और बेहतरीन सवांद के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया कि कमियां किसी होनहार का रास्ता नहीं रोक सकती। बस मन में संकल्प और दृढ़ इच्छा शक्ति होनी चाहिए।

माँ मुझे टेगौर बना दो एक बच्चेIMG_1441 IMG_1317 IMG_1393 की पढ़ाई करने व कविता लिखकर टेगौर बनने की संघर्ष यात्रा है। नाटक में एक लड़का सलीम अपने शिक्षक से प्रेरित होकर कविता लिखना चाहता है। एक दिन वो अपने दिल की बात शिक्षक को बताता है। तब वो उसे रबिन्द्र नाथ टैगोर की कविताओं की किताब ‘गीतांजलि’’ देते है।

सलीम उस किताब में लिखी कविताओं को पढ़ता है और उन्हें समझने की कोशिश करता है पर समझ नहीं पाता। इस बीच वो एक छोटी सी कविता लिखता है और उन्ही अध्यापक को जाकर सुनाता है तब कविता सुन वो हैरान हो जाते है की छोटा सा बच्चा इतनी सुंदर कविता कैसे लिख सकता है और वो टेगौर की तरह कवि बन सकता है। उस दिन वो अपने जीवन लक्ष्य बनता है की उसे कवि टैगोर की तरह बनना है। मगर परिस्थितियँा साथ नहीं देती। एक दिन उसके पिता की मृत्यु हो जाती है और माँ की बीमारी की वजह से उसे घर का एक एक सामान बेचना पड़ता है।

लेकिन जीवन के कठिन दौर में भी वो परिस्थितियों के खिलाफ लड़ता है और अपने अन्दर के टैगोर को मरने नहीं देता। दिन में मजदूरी करके और शाम को पढ़ाई करके वो दसवीं कक्षा पुरे जिले में प्रथम स्थान प्राप्त करता है। इस तरह आगे बढ़ता है। उसे ये एहसास होता है की एक अच्छा अध्यापक ही एक अच्छा टैगोर होता है।

नाटक के अंत में छात्र के संवाद ‘‘मैं समझ गया कि टेगौर किसे कहते हैं। पर अब मैं टैगोर नहीं बनना चाहता हूँ, मैं अपने मास्टर साहब जैसा बनना चाहता हू जिनके पास ज्ञान का अथाह भंडार है पर वे टेगौर खुद नहीं बने और हम जैसे न जाने कितने बच्चों को टेगौर बनाया। मुझे तो बस अपने मास्टर साहब जैसा ही बनना है’ से दर्शकों की आंख डबडबा गई।

इस नाटक का लेखन, निर्देशन व अभिनय लक्की गुप्ता ने ही किया है।

शिक्षक दिवस पर आयोजित नाट्य प्रदर्शन में उपस्थित बालको अभिभावकों एवं शिक्षको को संबोधित करते हुए डॉ मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट के सचिव नन्द किशोर शर्मा ने कहा कि शिक्षक के टूटते मनोबल और शिक्षक की गरिमा को बनाये रखने का दायित्व वृहत समाज का भी भी है। शिक्षको को भी अपने मूल लक्ष्य समाज को सु संस्कृत नागरिक बनाने के अपने कर्तव्य को नहीं भुलाना चाहिए। शिक्षा एक पेशा नहीं वरन राष्ट्र सेवा है। देश की मजबूती शिक्षित समाज पर टिकी हुई है।स्वागत ट्रस्ट अध्यक्ष विजय मेहता ने किया।

अंत में नाद्ब्रह्म रंग निर्देशक के शिवराज सोनवाल ने जम्मू के लक्की गुप्ता को आभार व धन्यवाद दिया।

 

 

 

 

नितेश सिंह

 

Shabana Pathan
Shabana Pathanhttp://www.udaipurpost.com
Contributer & Co-Editor at UdaipurPost.com

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