दीपावली-दशहरा झ-मेला 2011

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  रिपोर्ट – मनु राव ( इन न्यूज़ , संपादक)      

 

                 प्रशासन-परिषद की प्रतिष्ठा का सवाल !!!!

 उदयपुर। नगर परिषद द्वारा आयोजित किए जाने वाले सालाना मेले में इस बार कई अड़चने पैदा हो रही है। परिषद और प्रशासन  के बीच वाक युद्ध लगातार जारी है। पत्राचार के जरिए फरमान जारी किए जा रहें है। लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है। मेले के लिए परिषद द्वारा बनाई गई हाई पावर कमेटी ने अन्तिम निर्णय लेते हुए इतिश्री कर ली है,लेकिन प्रशासन  की ओर से अभी तक खुली स्वीकृति नहीं मिलने से असमंझस की स्थिति बनी हुई है।

इधरलाखों रूपए खर्च कर बुलाए जाने वाले कलाकारों की प्रस्तुतियों को रात 10 बजे बाद नहीं चलाने का आदेष भी परिषद के लिए चुनौती बन गया है।

                                                     मेला कैसे बना झमेला ???

प्रशासन चाहता था कि मेला टाउन हॉल की बजाए  गाँधी ग्राउण्ड,बी.एन या एम बी ग्राउण्ड में आयोजित किया जाए ताकि सुरक्षा व्यवस्था नहीं बिगड़े। जिला कलेक्टर साहब की ये सलाह सभापति और पार्षदों को नगवार गुजरी और सभी चल दिए कलेक्टर साहब के पास, एक साथ कई लोगों को अपने चैम्बर में घुसता देख वे गुस्सा गए और सभापति को छोड़ सभी को बाहर निकाल दिया। कलेक्टर साहब का बर्ताव देख जनप्रतिनिधियों को शर्मिंदगी महसूस हुई बाद में सभापति महोदया भी आ गई और सभी परिषद आ गए और ठान ली की मेला तो टाउन हॉल में ही होगा। इस पर प्रशासन  की ओर से तुगलकी फरमान जारी कर दिए गए,जिसमें मेले की सुरक्षा व्यवस्था,कितने मेलार्थी एक दिन में आएंगे,कितनी एम्बूलेंस होगी, आपात स्थिति में निबटने के सवालों जैसी एक लम्बी फेरिस्त उस फरमान में थी। परिषद इसका जवाब देती इससे पहले ही सुप्रीम कोर्ट के निर्णयानुसार 10 बजे तक ही लाउड स्पीकर बजाने का आदेष प्रषासन की ओर से परिषद को सौंप दिया गया। बहरहाल प्रशासन  अपनी जगह अड़ा हुआ है, और परिषद अपनी जगह,लेकिन दोनों की प्रतिष्ठा के झगडे़ को देखते हुए जनता को तो मेले से पहले ही मनोरंजन हो रहा है।

                                 सुप्रीम कोर्ट का आदेष इस बार ही याद क्यों आया !!!

रात दस बजे लाउड स्पीकर नहीं बजाने का आदेष प्रशासन  को मेले के दौरान ही क्यों याद आ रहा है। क्या इससे पहले उदयपुर में 10 बजे बाद कोई लाउड स्पीकर नहीं बजाए गए। हम याद दिलाना चाहते है कि यूथ फेस्टिवल के दौरान तो 12 बजे तक समारोह चलते रहे और शायद पूरा प्रषासनिक अमला सपरिवार उसमें मौजूद था। उस समय आदेष याद नहीं क्यों नहीं आया। इतना ही नहीं राजमहल,जगमंदिर,सहित शहर की कई पांच सितारा होटलों में तो अलसुबह तक लाउड स्पीकर बजते रहते है और क्षेत्र की जनता की नींद हराम हो जाती है,इन पर आदेष लागू क्यों नहीं होता। बात सीधी है यहां भी बात जनता की आ जाती है और प्रषासन को जनता से कोई रसूखात नहीं है,वो तो सिर्फ रसूखदारों के लिए ही काम करता है।

पहले निबटे अन्दर का झमेला !!!!!

 इधर फ्रांस दौरे से लौटी नगर नायक रजनी को भी हाई पावर कमेटी की बैठक में समिति अध्यक्षों की खूब खरी खोटी सुननी पड़ी,सभी का आरोप था कि जब सभी निर्णय खुद ही करने थे तो कमेटिया बनाने की क्या जरूरत थी। बैठक में मीडिया का प्रवेश तो निषेद्ध था, लेकिन सूत्रों से पता चला है कि इस बैठक में पारस सिंघवी ने रजनी डांगी को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि पहले ही पाण्डाल का ठेका कैसे दे दिया गया और वह भी 12 लाख रूपए में अगर वो होते तो जनता को करीब 2 लाख रूपया बच सकता,इधर अर्चना शर्मा,विजय आहूजा, मोहम्मद अयूब ने भी अपने-अपने स्तर पर नाराजगी जताई।

 गुटबाजी भी बनेगी अड़चन ???

मेले के दौरान एक दूसरे को नीचा दिखाने का  खेल होने की संभावनाएं भी जताई जा रही है। धड़े में बंटे पार्षद इस सोच विचार में लगे है कि मैले के दौरान ऐसा क्या करें कि मनोरंजन भी हो जाए और प्रतिद्वंदी की फजीती भी हो जाए। यहां भी ताराचंद जैन और गुलाब चन्द कटारिया गुट अपना वजूद दिखाने का पूरा प्रयास कर रहा है। इधर कांग्रेस का हाल तो इससे भी बदत्तर है। प्रतिपक्ष का नेता बनने की लालसा ने इन पार्षदों को एक दूजे का दुश्मन बना दिया है,यहीं कारण है कि इन दिनों ये सत्ता पक्ष का विरोध कम और अपने ही पार्षदों की खिंचाई करने का काम ज्यादा कर रहे हैं। ऐसे हालातों में मेले में ये सब लोग अपने कर्तव्यों की पालना कैसे करेंगे ये भी सोचने का विषय है।

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