उदयपुर। महाराणा प्रताप जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित किए जा रहे सात दिवसीय समारोह में आज सुबह मोती मगरी पर हकीम खान सूरी की प्रतिमा के समक्ष मुस्लिम महासभा राजस्थान की ओर से मुशायरे का आयोजन किया गया, जिसमें शायरों ने मेवाड़ को सांप्रदायिक सौहार्द की 500 साल पुरानी मिसाल बताया, जो आज भी कायम है।
क्रहवाओं के झकोरे कहां आग ले के निकले…, मेरा गांव बच सकें, तो मेरा झोपड़ा जला दो…ञ्ज कुछ ऐसे ही तूÈानी जज्बों के साथ शुरू हुआ मुशायरा जिसमें मुश्ताक चंचल और Èिरोज बशीर खान के हिन्दू-मुस्लिम एकता के शेर और नज़्म को श्रोताओं की जमकर दाद मिली। सुबह आठ बजे शुरू हुआ मुशायरा में बतौर अतिथि तेजसिंह बांसी, मनोहरसिंह कृष्णावत, बालूसिंह कानावत मौजूद थे।
मनोहरसिंह कृष्णावत ने कहा कि मेवाड़ 500 साल से राष्ट्रवाद और सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल रहा है। मेवाड़ की रक्षा के लिए राजपूत और पठान हमेशा आगे रहे हंै। कभी यहां हिन्दू-मुस्लिम में भेद नहीं किया गया। मेवाड़ के राजाओं ने कई सौ सालों तक सांप्रदायिक सौहार्द कायम करते हुए यहां कुशल राज किया है। तेजसिंह बांसी ने कहा की मुसलामानों ने मेवाड़ की हिÈाज़त के लिए अपनी जान तक कुर्बान की है। शायर मुश्ताक चंचल ने जब अपनी नज़म क्रहर धर्म यहां, हर धाम यहां, रहमान यहीं राम यहां, जोसÈ भी यही हरनाम यहां, ख्वाजा का छलका जाम यहां है कृष्ण लीला आम यहां…ञ्ज को खूब दाद मिली। Èिरोज बशीर खान ने हकीम खान सूरी पर नज़्म पड़ी, तो मौजूदा लोगों में जोश भर दिया। क्रकट कर गिरा पठान वतन की जमीन रक्त से धोई, मिट्टी की आजादी उस दिन Èुट-Èुटकर रोई, वह हकीम खान पठान भारत मां का ही बेटा था, तलवार जो अपने साथ लेकर हल्दीघाटी में लेटा था…ञ्ज मुशायरे के पूर्व सभी अतिथियों और मुस्लिम महासभा के संस्थापक अध्यक्ष यूनुस शेख ने महाराणा प्रताप की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया तथा हकीम खान सूरी की प्रतिमा पर भी माल्यार्पण किया। कार्यक्रम का संचालन मुश्ताक चंचल ने किया। इस दौरान प्रेमसिंह शक्तावत, कमलेंद्रसिंह पंवार, पंकज वैष्णव, दिनेश मकवाना आदि मौजूद थे।
गांव बच सके तो मेरा झोपड़ा जला दो…
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