भारतीयों की जान दो कौड़ी की?

Date:

telagana1
‘दक्षिण कैरोलिना के पुलिस अधिकारी पर हत्या का आरोप तय.’ बुधवार, आठ अप्रैल को न्यूयार्क टाइम्स की यह प्रमुख ख़बर थी. इस पुलिस अधिकारी ने एक निहत्थे काले व्यक्ति को गोली मार दी थी.
पिछले कुछ महीनों से, अमूमन आपराधिक रिकॉर्ड वाले काले लोगों को गोरे पुलिसकर्मियों द्वारा गोली मारे जाने की ख़बरों ने पूरे अमरीका और अमरीकी मीडिया में आक्रोश पैदा किया है.
अब जरा भारत का रुख़ करे. इसी दिन मुंबई में टाइम्स ऑफ़ इंडिया की प्रमुख ख़बर थी- ‘मल्टीप्लेक्सों में शाम छह बजे मराठी फ़िल्में ही दिखाई जाएं.’
दिल्ली में हिंदुस्तान टाइम्स की प्रमुख ख़बर थी- ‘डीज़ल गाड़ियों के लिए 10 साल की समय सीमा.’
यह तब है जब एक दिन पहले ही आंध्र प्रदेश पुलिस ने पेड़ चुराने के लिए 20 लोगों की हत्या कर दी थी, इनमें से अधिकांश तमिल थे.
इसी दिन तेलंगाना में पुलिस ने अपनी हिरासत में पांच लोगों को मार डाला. उनके हाथ बंधे थे और उन्हें कोर्ट ले जाया जा रहा था.

thumb

भारत को दो बड़े अंग्रेज़ी अख़बारों के संपादकों के लिए इन दोनों में से कोई भी ख़बर प्रमुख नहीं लगी.
सच्चाई यह है कि मध्यवर्ग और अंग्रेज़ीदां भारत को मज़दूरों या मुस्लिमों के साथ होने वाली गैरक़ानूनी वारदातों की कोई चिंता नहीं है.
यह हमारे सरोकारों से नहीं जुड़ता और इसीलिए अगर हम इन ख़बरों पर ऑनलाइन टिप्पणियों को पढ़ें तो अधिकांश टिप्पणियां इस पुलिसिया कार्रवाई का समर्थन करती हुई दिखती हैं.
और ये टिप्पणियां पीड़ित लोगों के प्रति नफ़रत से भरी हुई हैं और इन्हें बिना मुकदमे के ही सज़ा देने के लायक समझा गया है.
जबकि यह मुठभेड़ प्रिंट मीडिया के पहले पन्ने पर एक कॉलम की भी जगह नहीं बना पाई.
यहां तक मीडिया रिपोर्टों में भी इन ख़बरों को अति पूर्वाग्रह और बेरहमी के साथ परोसा गया.
आमतौर पर ज़िम्मेदार माना जाने वाला अख़बार ‘इंडियन एक्स्प्रेस’ ने इस ख़बर को सबसे पहले ब्रेक किया और शीर्षक दिया- ‘तेलंगाना में कोर्ट ले जाते हुए पांच सिमी कार्यकर्ताओं को गोली मारी.’
150331105452_fight_police_624x351_afp

गोली मारने का तर्क

अख़बार के संवाददाता ने लिखा, “मरने वालों में विकरुद्दीन भी शामिल हैं, जिन्होंने दो पुलिसकर्मियों की हत्या की थी और हैदराबाद में उन्हें बार बार निशाना बनाकर आतंकित किया था.”
ध्यान देने की बात है कि एक राष्ट्रीय दैनिक ने इस तरह का संपादन, ढीले-ढाले दावे और निम्नस्तरीय भाषा की इजाज़त दी, लेकिन यह भारत है, यहां यह केवल संभव ही नहीं है, बल्कि यह कसौटी है.
पुलिस ने ‘इंडियन एक्स्प्रेस’ को बताया कि, “वारंगल से निकलते ही विकरुद्दीन और उनके साथियों ने हथियारबंद सुरक्षाकर्मियों पर थूक कर, ताने दे दे कर और गाली गलौच कर उन्हें लगातार उकसाया था.”
पुलिस के अनुसार, “चार अन्य मरने वाले हैं- मोहम्मद ज़किर, सैयद हशमत, इज़हार ख़ान और सुलेमान. इन सबके कई और नाम हैं.”

रिपोर्ट में कहा गया है कि, “विकरुद्दीन पूर्व सिमी कार्यकर्ता और एक चरमपंथी संगठन दर्सगाह जिहाद ओ शहादत (डीजेएस) का सदस्य थे. बाबरी मस्जिद और मक्का मस्जिद धमाके की वर्षगांठ पर विकरुद्दीन ने पुलिस पिकेट पर कई दुस्साहसिक हमले किए थे.”
इसमें आगे कहा गया है, “दिसम्बर 2008 में विकरुद्दीन ने संतोषीनगर के पास एक पिकेट पर गोली चला दी थी जिसमें तीन पुलिसकर्मी घायल हो गए थे. 18 मई 2009 में उन्होंने एक होमगार्ड की गोली मार कर हत्या की थी, जबकि 14 मई 2010 में शाह अली बांडा के पास एक कांस्टेबिल की गोली मार कर हत्या कर दी थी.”
…तो सरकार गिर गई होती
लेकिन सवाल यह है कि क्या इन सब आरोपों के लिए किसी जज ने उन्हें दोषी पाया था? संभवतया नहीं, क्योंकि वो एक विचाराधीन क़ैदी के रूप में कोर्ट जा रहे थे.
लेकिन ये तथ्य भी अख़बार को नहीं रोक पाए और उसने नतीजा निकाला कि ये सारे काम उन्होंने ने ही अंजाम दिए थे.
आपराधिक चित्रण यहीं नहीं रुका और आगे कहा गया, “विकरुद्दीन ने तहरीक़ गल्बा ए इस्लाम नाम के एक कट्टरपंथी संगठन से भी संपर्क रखना शुरू कर दिया था, जिसके डीजेएस से संबंध थे. इन लोगों पर पुलिस ने ईनाम भी घोषित किया था.”
“जुलाई 2010 में उन्हें एक समर्थक डॉ. मोहम्मद हनीफ़ के घर से गिरफ़्तार किया गया था. हनीफ़ की सूचना पर ही विकरुद्दीन के संगठन से संबंध रखने वाले और उसकी मदद करने वाले हनीफ़ के भाई सुलेमान और अन्य तीन को गिरफ़्तार किया गया था.”
लेकिन अगर ऐसा ही अमरीका में होता कि एक ही दिन में 20 काले लोगों को गैरक़ानूनी रूप से मार दिया गया होता तो सरकार गिर गई होती और लोग पीड़ितों के पक्ष में सड़कों पर उतर जाते. भारत में, हम में से वो लोग, जिन्होंने इस पुलिसिया कार्रवाई को बहुत अच्छा नहीं माना, सिर्फ जम्हाई लेकर रह गए.
मीडिया की भूमिका
मीडिया एक लम्बे समय तक अपने पाठकों/दर्शकों के प्रति झुका रहा है और उसने एक हद तक पुलिस उत्पीड़न को स्वीकार कर लिया है कि अब उसे अपने पाठकों या दर्शकों की कोई चिंता भी नहीं है.
मंगलवार की रात टाइम्स नाउ पर मध्यवर्ग के हीरो अर्णव गोस्वामी के टीवी शो पर बीफ़ प्रतिबंध पर बहस हुई और यह ‘आतंकवाद’ (यानी मुस्लिम) पर चीख चिल्लाहट में तब्दील हो गई.
जब मैं 20 साल पहले मुंबई में एक अख़बार का सम्पादक था, तो एनकाउंटर संस्कृति पंजाब और पूर्वोत्तर से हमारे शहर में ताज़ा ही दाखिल ही हुई थी, जहां इस तरह की हत्याएं वास्तव में क़ानूनी हैं.
ऐसे बहुत से भारतीय हैं जो इस तरह के क़ानून का समर्थन करते हैं और इसके आलोचकों को टीवी बहसों में स्वतः ही एक देशद्रोही के रूप में देखा जाता है.
उस समय मुंबई पुलिस ने ऐसे गैंगों को ख़त्म कर दिया था, जो बिल्डरों और बॉलीवुड निर्माताओं और इसमें पैसा लगाने वालों से वसूली करते थे.
जिन अख़बारों के संपादकों ने इस गैरक़ानूनी पुलिसिया कार्रवाई पर सवाल खड़े किए, उन्हें प्रबंधन और पाठकों की ओर से निशाना बनाया गया.
एनकाउंटर स्पेशलिस्ट
असल में लोगों को लगता था कि अगर न्याय प्रक्रिया को सज़ा के द्वारा लागू करने में राज्य असफल है तो उसे पूरा अधिकार है कि वो बिना किसी क़ानूनी प्रक्रिया के अपराधियों को ख़त्म कर क़ानून व्यवस्था लागू करे.
इसी सोच ने ऐसे कायर पुलिस अधिकारियों को पैदा किया जिनमें हरेक के नाम दर्जनों ‘हत्याएं’ दर्ज हैं. इन्हें एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के रूप में शोहरत दी गई और उनपर कई फ़िल्में बनाई गईं.
उनकी बहादुरी है- हाथ बंधे हुए लोगों पर गोली चलाना. उस समय मैं सोचा करता था कि यह सब कभी तो ख़त्म होगा, लेकिन मैं ग़लत था.
जनता का ध्यान कहीं और होने की वजह से सरकार आम लोगों के साथ बर्बरता करने और मारने के बाद मीडिया के मार्फ़त उन्हें अपराधी और अमानवीय दिखाने के लिए स्वतंत्र है.

सो. – आकार पटेल
वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिन्दी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Share post:

Subscribe

spot_imgspot_img

Popular

More like this
Related

The new 1Win Aviator Software Down load to own Android os APK & Ios

The process is small and you will simple, guaranteeing...

9 Goggles away from Fire Position 2025, Play 9 Masks away from Flames On the web Free

ArticlesWhere Would you Play the 9 Goggles out of...

One slot sites with Attila time Percentage

BlogsTips gamble Hoot Loot On the internet Position: slot...

Mr Vegas Gambling establishment Opinion Private Acceptance Incentive

ArticlesShould i Claim an identical 100 percent free Revolves...