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उदयपुर. गजल जज्बात और अल्फाज का एक बेहतरीन मज्मुआ है। वह आबरू-ए-शायरी भी है जो आम से खास तक हरदिल अजीज है। गजल कई शेर से मुकम्मल होती है, हर शेर में दो पंक्तियां और हर पंक्ति को मिसरा कहते हैं।   इस तरह की कई उपयोगी और आधारभूत जानकारियां गजल अकादमी के बैनर तले चल रहे गजल गायकी शिविर में सरदारपुरा  स्थित महाराणा कुंभा सभागार में दी जा रही हैं।

शिविर में डॉ. प्रेम भंडारी, डॉ. देवेन्द्र हिरण व डॉ. तामिल मोदी में सुबह 9.30 से 11.30 तक सुरों के अभ्यास से लेकर गजल व नज्मों में उर्दू अल्फाजों के तलफ्फुस तथा गजल में शास्त्रीय संगीत के महत्व को समझा रहे हैं।

डॉ. तामिल ने बताया कि गजल का पहला शेर मत्ला, दोनों मिसरों में काफिया और काफिए के बाद जो शब्द आए उसे रदीफ कहा जाता है। गजल के आखरी शेर जिसमें शायर का नाम या उपनाम (तखल्लुस) हो  उसे मक्ता कहा जाता है। एेसे ही शेर की पंक्तियों की लंबाई के हिसाब से गजल की बहर तस की जाती है। गजल का बहतरीन शेर हासिले-गजल कहलाता है और मुशायरे की सबसे उम्दा गजल हासिले मुशायरे के खिताब से नवाजी जाती है।

झीलों की नगरी में गायकी के इस फन को अलहदा मुकाम देने की गरज से पहली बार सजी सुरों और शायरी के अदब की महफिल में 30 से अधिक प्रतिभागियों में स्कूल-कॉलेज स्टूडेंट्स, आयकर अधिकारी, व्यवयायी, समाजसेवी  और संगीत विधा से जुड़े व्याख्याता तक इस विधा के सांगीतिक पक्ष के अलावा साहित्यिक स्वरूप से रूबरू होकर निहाल हो रहे हैं।

गुरुवार को कार्यशाला में उर्दू के मकबूल शायर और समीक्षक डॉ.खलील तनवीर ने गजलों की विकास यात्रा और विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि संगीत को त्रिवेणी इसलिए भी कहा जाता है कि इसमें तीन बातें शब्द, तर्ज और आवाज का बड़ा महत्व होता है। अपनी दिलकश शायरी से लिखने वाले, असरदार संगीत से सजाने वाले और बेहतरीन ढंग से रसिकों तक पहुंचाने वाली मखमूर आवाजें नहीं होतीं तो यह विधा किताबों में दफन ही रह जाती।

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