“एक्ट ऑफ़ गॉड” कह कर लापरवाही से डॉक्टरों ने शिशु का हाथ काट दिया था – अदालत ने लगाया जुर्माना

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उदयपुर. सिजेरियन से हुए प्रसव के बाद लापरवाही बरत कर नवजात की दांयी भुजा कटने और रक्तस्त्राव से मौत के मामले को चिकित्सकों ने रफा-दफा कर इसे “एक्ट ऑफ गॉड” बताया। स्थाई लोक अदालत ने तथ्यों व जांच रिपोर्ट के आधार पर चिकित्सकों की घोर  लापरवाही माना। अध्यक्ष केबी कट्टा व सदस्य शंभूसिंह राठौड़ ने इस कृत्य के लिए राजकीय पन्नाधाय तथा एमबी चिकित्सालय के अधीक्षकों को दोषी माना। न्यायालय ने राज्य सरकार जरिए जिला कलक्टर को आदेश दिया कि वे दो माह के भीतर परिवादिया को 1.25 लाख रुपए दो माह की अवधि में अदा करें।

इस राशि के अलावा पांच हजार रुपए अलग से आवेदन खर्च भी दें। अधीक्षकों के खिलाफ केलवाड़ा (राजसमंद) निवासी रणजीत पुत्र जवाहर मेघवाल व उसकी पत्नी  बबली मेघवाल ने न्यायालय में प्रार्थना पत्र पेश किया था।

यह था मामला 

जनवरी-2010 में बबली को प्रसव पीड़ा पर राजकीय चिकित्सालय केलवाड़ा दिखाया। वहां से जनाना चिकित्सालय रेफर किया गया। यहां 18 जनवरी-2010 को भर्ती किया। अगले दिन चिकित्सकों ने स्थिति गंभीर बताकर ऑपरेशन की आवश्यकता जताई। तीन घंटे बाद बबली ने शिशु को जन्म दिया। उसे नर्सरी में भर्ती किया गया। वहां शिशु की दांयी भुजा में रक्तस्त्राव का पता चला।

ऑपरेशन के दौरान चिकित्सकों ने लापरवाही से उसकी भुजा काट दी। अस्पताल अधीक्षक से निवेदन के बावजूद कोई प्रयास नहीं किए गए। रक्तस्त्राव से हालत गंभीर होती  गई तीन दिन मबाद उसने दम तोड़ दिया। पोस्टमार्टम में मृत्यु का कारण भी भुजा कटने से होना सामने आया।

अपनी लापरवाही को छिपाया 

चिकित्सकों ने लापरवाही से इनकार कर बताया कि परिजनों को ऑपरेशन से पहले बताया था कि नवजात कोख में आड़ा (ट्रांसवर्सलाई) है। उसका हाथ बाहर निकला है व बचने की संभावना कम है। जानकारी देने के बावजूद परिजनों ने लिखित में सहमति दी। कंधे पर घाव होने पर बच्चे का कार्डियोरेसिट सर्जन से इलाज करवाया था।

गुमराह कर झूठ बोला विभाग 

चिकित्सा विभाग की ओर से न्यायालय के समक्ष घटना के वास्तविक तथ्यों, परिस्थितियों के बावजूद आदेश न्यायालय में सही रूप से प्रस्तुत करने में उपेक्षा का भाव रखा गया।

प्रार्थी के अधिवक्ता ने गठित विभागीय जांच कमेटियों की रिपोर्ट को न्यायालय के समक्ष विपक्षी से प्रस्तुत करवाए जाने का आवेदन पेश किया तो विपक्षी ने कहा कि कोई विभागीय जांच कमेटी गठित हीं नहीं हुई।

परिवादी के अधिवक्ता ने बेडहेड टिकट व आंतरिक विभागीय जांच रिपोर्ट के अलावा सूचना के अधिकार के तहत संभागीय आयुक्त एवं डॉ.डीडी सिन्हा के जांच प्रति न्यायालय के समक्ष पेश की।

मामले में जांच से संबंधित चिकित्साधिकारी ने इलाज के दौरान बरती गई व्यक्तिगत लापरवाही को प्रमाणित माने जाने का तथ्य भी अंकित किया गया है जिसे अविश्वनीय माने जाने का कोई कारण न्यायालय के समक्ष नहीं है।

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