दंगा होने के बाद अक्ल आयी प्रशासन को, एक दिन में झगड़े की जड़ को किया समाप्त – समाज के अमन पसंद लोगों ने भी दिखाई समझदारी।

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उदयपुर। एक छोटा सा विवाद जिसको 27 साल तनाव झेलने और सांप्रदायिक दंगा होने के बाद सुलझाया गया जबकि अगर पुलिस प्रशासन और जन प्रतिनिधि या मौजूदा या तत्कालीन सरकार के नुमाइंदे, मंत्री, विधायक चाहते तो आराम से निपटा सकते थे।
हम बात कर रहे है बांसवाड़ा में होने वाले सांप्रदायिक दंगे की जो एक धार्मिक स्थल की वजह से हुआ। बात यह थी कि कालिका माता क्षेत्र में शिव मंदिर के पास ही दरगाह का चिल्ला बना हुआ था जो 1998 में किसी एक परिवार द्वारा स्थापित किया गया था। होना तो यह चाहिए कि जब यह स्थापित किया और अवैध था तो तत्कालीन प्रशासन को उसी वक़्त हटाना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और उसको लेकर पिछले २७ सालों से दोनों समुदाय के बिच बराबर विवाद और तनाव चलता रहा । उदयपुर पोस्ट को मिली जानकारी के अनुसार इस चिल्ले को अन्य जगह शिफ्ट करने के लिए मुस्लिम समाज के लोग व् बांसवाड़ा अंजुमन के पदाधिकारी पहले भी राजी थे। लेकिन प्रशासन या जन प्रतिनिधियों ने इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। अभी माहौल बिगड़ने के कुछ समय पहले ही कुछ संगठनों के लोगों ने चिल्ले का विरोध किया था। विरोध में ज्ञापन दिए थे और प्रशासन ने इस मामले को निपटाने के लिए आश्वासन भी दिया था। लेकिन हमेशा की तरह पुलिस और प्रशासन किसी बड़ी घटना होने का इंतज़ार कर रह थे। आखिर हुआ भी ऐसा इस मंदिर और चिल्ले की वजह से शब् ए बरात की रात को दंगा भड़का और पिछले छह दिनों से बांसवाड़ा शहर कर्फ्यू की सख्ती झेल रहा है। करीब ४० परिवार बेघर हो गए, करोड़ों की संम्पत्ति का नुक्सान हुआ और सबसे बड़ा नुक्सान लोगों के दिलों में नफरत बढ़ने का हुआ है जो जाने कब ख़त्म होगी।

दिलों में नफरत की भरपाई तो कोई कर नहीं सकेगा लेकिन जो आर्थिक नुक्सान हुआ है क्या उसकी उगाही इस दंगे की वजह के जिम्मेदार, नेता, अधिकारी और सांप्रदायिक की आग भड़काने वाले और भाग लेने वालोंहर उस व्यक्ति से करनी चाहिए। 
इतना सब होने के बाद अब प्रशासन ने मुस्लिम समाज के लोगों से बात कर चिल्ले को अन्य जगह शिफ्ट किया। सरकार के मंत्री अब प्रेस कॉन्फ्रेंस में कह रहे है की झगड़े की जड़ को समाप्त किया तो भाईसाहब झगड़े की जड़ को झगड़े से पहले ही समाप्त करने का मन क्यों नहीं किया।
इन सब बातों से फिर वही सवाल खड़े होते है की आखिर क्या पुलिस प्रसाशन और मौजूदा नेता क्या चाहते थे की बांसवाड़ा में सांप्रदायिक दंगा हो ? क्या राजनैतिक फायदे के इंतज़ार में थे ? अगर नहीं चाहते थे तो यह विवाद ख़त्म करने की कोशिश पहले क्यों नहीं की गयी। आज बांसवाड़ा के हर शहरी के मन में यही सवाल है जिस शहरी को हिंसा और साम्प्रदायिकता से कोई लेना देना नहीं कम से कम उसके मन में यह सवाल बार बार उठता है।
खेर उदयपुर पोस्ट बांसवाड़ा के मुस्लिम समाज और प्रशासन को अब भी बधाई देता है और उसका शुक्रगुज़ार भी है की उसने झगड़े की जड़ को ख़त्म किया। क्यों कि अभी हमारे दिलों में ज़हर इतना फैला हुआ है की एक ही जगह मंदिर और मस्जिद देखने की कल्पना तो कर ही नहीं सकते। अगर आम हिन्दुस्तानी यह कल्पना कर भी ले तो कुछ समाज और बाकी आपके और हमारे वोटों के ठेकेदार ऐसा होने नहीं देंगे।

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