अवैध बंदूकबाजों को बाहर निकालने वाला झांसेबाज नटवर लाल अभी भी खाकी की पंहुच से दूर .

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लोकेश आचार्य के सोशल मिडिया पर बड़े नेताओं के साथ लगाये फोटो .

पोस्ट न्यूज़। राजस्थान में जम्मू कष्मीर और नागालैण्ड से अवैध हथियार बनाकर सफेदपोश बंदूकबाजों के काले खेल के बारे में तो आपने सुना ही होगा। एटीएस और पुलिस की पड़ताल में इन दोनों ही राज्यों से करीब 1000 ऐसे बंदूकबाजों को चिन्हित किया गया था, जो अवैध हथियार रखकर राज्य भर में खौफ के कारोबार को बढ़ाने में लगे हुए थे। जैसे – जैसे वीवीआईपी की सूचि में शुमार सफेदपोश बंदूकबाजों के नाम सामने आने लगे तो जेल न जाने और अपने बहुप्रतिश्ठित हो चुके नाम की साख बचाने के लिए इन बंदूकबाजों ने साम दाम दण्ड भेद का सहारा लिया और जा पंहुचे एक ऐसे शख्स के पास जिसे “माण्डवली किंग” कहा जाए तो भी कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी। जीहां सरकार में बैठे बड़े ओहदेदारों के साथ फोटो खींचवाकर और उनके नाम पर राजस्थान के कई विभागों में सेटलमेंट करने का दम्ब भरने वाले उस तथाकथित शख्स का नाम है, लोकेश आचार्य , जो इन दिनों खाकी की नजर में फरार घोषित है। यह वही लोकेष आचार्य हैं जिसने जयपुर सचिवालय के अधिकृत दूरभाष नम्बर से फोन करके उदयपुर के कई रसूखदारों को धमकाया था और यही वजह रही कि बीते दिनों सूरजपोल थाना पुलिस की गिरफ्त में भी आ गया था। उस समय तो खाकी ने उसे जेल भेज दिया। उस पर होटल नेचुरल के मालिक दिलीप शर्मा से पैसे लेेने का आरोप लगा था। जैसे ही इस बात का पर्दाफाश हुआ लोकेश आचार्य से सताए और भी सफेदपोशों के नाम सामने आने लगे। उस समय लोकेश आचार्य खुद को डूंगरपुर के चैरासी विधायक सुशील कटारा का निजी सचिव बताता था और उसके पास से उदयपुर प्रभारी सेवक कटारा के साईन किए हुए सरकारी पत्र भी मिले थे। हम यह सब आपको इसलिए बता रहे हैं कि इतनी कारगुजारियां करने के बाद भी इस नटवर लाल की रीति और नीति नहीं बदली और सींखचों से बाहर आते ही यह फिर राजधानी जयपुर चला गया और सचिवालय में उठ – बैठ शुरू कर दी। इस दरमियान उसको सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने जयपुर किसान मोर्चा का युवा उपाध्यक्ष भी बना लिया। फिर क्या था लोकेश आचार्य की बंद हुई गपलेबाजी की दुकान तो दौड़ने लगी। इस बीच खाकी और एटीएस से भागते छिपते दो ओझा बंधू किसी भी सूरत में अपने नाम को बचाने में लगे हुए थे और उसके लिए वह मुहंमांगी कीमत देने को भी तैयार हो गए। इन स्वजाति बंधुओं के नाम भंवरलाल और श्यामलाल ओझा के रूप में सामने आए थे। जिन्हें खाकी ने दबोच तो लिया, पर दोनो ही 2017 की दिवाली बाहर की देखना चाह रहे थे। इस बीच ओझा बंधुओं के परिजनों का सम्पर्क बीकानेर के शातिर शक्स सम्पत शारस्वत से हुआ। जो जयपुर में बैठे नटवर लाल लोकेश आचार्य का बहुत नजदीकी था। फिर किया था दोनो ही शातिरों ने मिलकर भंवरलाल ओझा को छुडवाने के नाम पर करीब 32 लाख रूपए परिजनों से उठा लिए। इस बीच यह बात उदयपुर की खाकी को पता चल गई और प्रतापनगर थाना पुलिस ने सम्पत सारस्वत सहित दो जनों को पकड़ लिया। जहां पूछताछ में उनसे 20 लाख रूपए की बरामदगी भी हो गई। लेकिन लोकेश आचार्य फरार होने में सफल रहा, जिसके पास माण्डवली के दौरान हुई डील की पहली किष्त 12 लाख रूपए भी थी। इस बीच भंवरलाल ओझा जिसके लिए माण्डवली की जा रही थी उसकी जमानत भी खारिज हो गई और फरार लोकेश आचार्य को भी अब तक हाईकोर्ट से बेल नहीं मिल पाई है। लेकिन इन सबके बीच प्रतापनगर थाना पुलिस ने इतने दिनों में लोकेश आचार्य की धरपकड़ के लिए क्या – क्या किया यह विचारणीय विषय हैं क्योंकि लोकेश आचार्य का इतने बड़े – बड़े ओहदेदारों से सम्पर्क हैं जो सत्ता में बैठे हुए हैं और शायद यही कारण रहा होगा कि पुलिस भी अब इस केस में ढिलाई बरत रही है, वरना जयपुर ज्यादा दूर भी नहीं है । आपको बता दे कि लोकेष आचार्य ने पूरी तरह से अपने प्रचार का माध्यम सोशल मीडिया को बना रखा था और वह अपनी फेसबुक आईडी पर कई प्रदेश सेवकों और भाजपा के बड़े पदाधिकारियों सहित विधानसभा और सचिवालय के बड़े – बड़े पदों पर बैठे ताकतवर अधिकारियों के साथ अपने फोटो शेयर करता आया है। इसी वजह से अब तक इसे पकड़ा नहीं जा सका।

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