संजू फिल्म में असली संघर्ष तो एक बाप के रूप में सुनील दत्त का था …. – फुरकान खान

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संजू फिल्म पर सटीक समीक्षा ” फुरकान खान” की नज़र से

Sanju – फ़िल्म आज देखी ……जी हां लगने के बहुत दिनों बाद
अब तक आप में से कई लोग देख भी चुके होंगें और कई reviews भी पढ़े होंगें । कुछ आलोचना भी सुनी होंगी कि संजय दत्त ऐसे संजय दत्त वैसे, और ये भी कि संजय दत्त गुनहगार हैं या नहीं । कुछ उत्साही मीडिया वालों ने मीडिया को बदनाम करने की बात भी कही और कुछ लोगों ने इसे मीडिया की असलियत सामने वाला भी कहा ।
मेरे लिए ये प्रश्न बेजा हैं क्योंकि संजय दत्त के बारे में न्यायालय फैसला दे भी चुका है और वो सज़ा भुगत भी चुके हैं ।

फिलहाल फ़िल्म को फ़िल्म के रूप में देखकर जो विचार बने वो सांझा करने की कोशिश कर रहा हूँ –
1- फ़िल्म में संजय दत्त की बिगड़ैल जीवन शैली अवश्य दिखाई है लेकिन असली संघर्ष तो एक बाप के रूप में सुनील दत्त का था जिसे फ़िल्म में जगह कम मिली । क्योंकि संजय दत्त को जिस उम्र में जो अच्छा लगा वो करते चले गए सही गलत में जाए बिना जबकि सुनील दत्त को एक ईमानदार और ज़िम्मेदार शहरी के कर्तव्य निभाने के साथ साथ एक बिगड़ैल बच्चे को प्यार करने वाले बाप की ज़िम्मेदारी भी उठानी पड़ी ।असली संघर्ष यही था जिसे फ़िल्म में कुछ ज़्यादा जगह मिलती तो शायद ये फ़िल्म समाज में संदेश देने में सार्थक भूमिका निभाती ।
2- एक storyteller के रूप में राजकुमार हीरानी का कोई जवाब नहीं 2 घंटे 42 मिनट की फ़िल्म कब शुरू कब खत्म पता ही नहीं चला ।आप जो कहना चाह रहे हैं वो कह भी दिया और ज़्यादातर दर्शकों ने उसे ग्रहण भी कर लिया और पता भी नहीं चला कि आपके दिमाग में निदेशक ने कुछ सरका भी दिया है । फ़िल्म Filmcraft के रूप में अद्भुत है और एक उत्तम craft का उत्तम नमूना है । Hats off to Rajkumar Hirani for Such CRAFTSMANSHIP
3 – रणवीर कपूर ने उत्तम एक्टिंग की है लेकिन कमलेश उर्फ कमली के रूप में विक्की कौशल ने भी बहुत प्रभावित किया । मान्यता दत्त के रूप में दिया मिर्ज़ा, लेखिका के रूप में अनुष्का ठीक ठीक हैं लेकिन नरगिस दत्त के रूप में मनीषा कोइराला इन दोनों महिला कलाकारों से कहीं आगे हैं ।
4 – फ़िल्म में परेश रावल एक बाप के रूप में तो ठीक लगे लेकिन सुनील दत्त बिल्कुल भी नहीं लगे । मैंने अपनी एक अल्प मुलाक़ात (6 घंटे एक ही कार में जोधपुर एयरपोर्ट से सिरोही के एक गांव जावाल तक ) में जितना सुनील दत्त साहब को देखा और महसूस किया वो किरदार मुझे परेश रावल के किरदार में नज़र नहीं आया । ये अलग बात है कि एक बिगड़ैल बच्चे के दुखी बाप के किरदार के रूप में ठीक ठीक ही रहे ।
5 – संगीत कोई खास नहीं बस दे दिया ,गाने तो बिल्कुल भी याद ना रहने वाले और ना याद आने वाले ।

मुझे तो Sanju फ़िल्म राजकुमार हिरानी की Amazing Storytelling CRAFT के रूप में याद रहेगी – समीक्षक फुरकान खान 

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