प्रताप स्मारक पर भीलू राणा की धूम

Date:

उदयपुर, श्री राणा पूंजा भील जयंती समारोह के अवसर पर शुक्रवार को यहां महाराणा प्रताप स्मारक समिति मोती मगरी उदयपुर में मेवाड़ के पूर्व सेनानी भीलू राणा की प्रतिमा के समक्ष कार्यक्रम आयोजित किए गए।

मोती मगरी में भीलू राणा जयंती समारोह पर अतिथियों का स्वागत करते हुए समिति के अधिकारी।

महाराणा प्रताप स्मारक समिति मोती मगरी उदयपुर के सचिव युद्धवीर सिंह शक्तावत ने बताया कि मोती मगरी के भीलू राणा पार्क में स्थापित भीलू राणा की प्रतिमा को जयंती पूर्व साफ-सफाई व रंग-रोगन किया गया। शुक्रवार को श्री राणा पूंजा भील जयंती समारोह समिति एवं क्षत्रिय महासभा के पदाधिकारियों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों का समिति द्वारा मोती मगरी के मुख्य द्वार पर माल्यार्पण कर स्वागत किया गया। इसके पश्चात उन्हें ससम्मान रैली द्वारा प्रतिमा स्थल तक ले जाया गया जहां पर माल्यार्पण कर राणा पंूजा के जयकारे लगाए गए। इस अवसर पर मोती मगरी स्मारक समिति द्वारा जगह-जगह पुष्प वर्षा की गई एवं अतिथियों को जलपान कराया गया। कौन थे भीलू राणा: इतिहास में उल्लेख है कि राणा पंूजा भील का जन्म मेरपुर के मुखिया दूदा होलंकी के परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम केहरी बाई था, उनके पिता का देहांत होने के पश्चात 15 वर्ष की अल्पायु में उन्हें मेरपुर का मुखिया बना दिया गया। यह उनकी योग्यता की पहली परीक्षा थी, इस परीक्षा में उत्तीर्ण होकर वे जल्दी ही ‘भोमट के राजा’ बन गए। अपनी संगठन शक्ति और जनता के प्रति प्यार-दुलार के चलते वे वीर भील नायक बन गए, उनकी ख्याति संपूर्ण मेवाड़ में फैल गई।

इस दौरान 1576 ई. में मेवाड़ में मुगलों का संकट उभरा। इस संकट के काल में महाराणा प्रताप ने भील राणा पूंजा का सहयोग मांगा। ऐसे समय में भील मां के वीर पुत्र राणा पंूजा ने मुगलों से मुकाबला करने के लिए मेवाड़ के साथ अपने दल के साथ खड़े रहने का निर्णय किया। महाराणा को वचन दिया कि राणा पूंजा और मेवाड़ के सभी भील भाई मेवाड़ की रक्षा करने को तत्पर है। इस घोषणा के लिए महाराणा ने पूंजा भील को गले लगाया और अपना भाई कहा। 1576 ई. के हल्दीघाटी युद्ध में पंूजा भील ने अपनी सारी ताकत देश की रक्षा के लिए झोंक दी।

हल्दीघाटी के युद्ध के अनिर्णित रहने में गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का ही करिश्मा था जिसे पूंजा भील के नेतृत्व में काम में लिया गया। इस युद्ध के बाद कई वर्षों तक मुगलों के आक्रमण को विफल करने में भीलों की शक्ति का अविस्मरणीय योगदान रहा है तथा उनके वंश में जन्मे वीर नायक पूंजा भील के इस युगों-युगों तक याद रखने योग्य शौर्य के संदर्भ में ही मेवाड़ के राजचिन्ह में एक ओर राजपूत तथा एक दूसरी तरफ भील प्रतीक अपनाया गया है। यही नहीं इस भील वंशज सरदार की उपलब्धियों और योगदान की प्रमाणिकता के रहने उन्हें ‘राणा’ की पदवी महाराणा द्वारा दी गई। अब हमारा राजा पूंजा भील ‘राणा पूंजा भील’ कहलाकर जाने लगे।

केप्शन

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Share post:

Subscribe

spot_imgspot_img

Popular

More like this
Related

Lunar New-year Chinese Dinner Selling

PostsCreate Lenovo betting notebooks service VR gambling?Why should I...

Sobre cómo conseguir dentro del keno en Pharaoh 150 reseñas de giros gratis el casino Colombia

ContentPharaoh 150 reseñas de giros gratis | ¿Sobre cómo...

Juegos sobre Casino con Casino royal vegas Casino el fin de Lucro Positivo Carente Invertir

ContentCasino royal vegas Casino - ¿Nunca se trata de...