ऐ ज़िंदगी गले लगा ले….

Date:

उसकी ना हस्ती न हैसियत है, लेकिन एक दलित रिक्शाचालक बबलू के लिए बेटी नियामत है.

वो पिछले एक माह से अपनी नवजात बेटी को सीने से लगाये भरतपुर शहर में रिक्शा चलाते देखा जा सकता है. क्योंकि उस दूधमुँही के सर से पैदा होते ही माँ का साया उठ गया. घर में कोई और नहीं जो उस नन्ही परी का ख्याल रख सके. लेकिन हवा के थपेड़ो और रिक्शे पर झूलती जिन्दगी की राह ने उस नन्ही परी को बीमार कर दिया.वो दो दिन से भरतपुर के सरकारी अस्पताल में भर्ती है.

रिश्तों का त्रिकोण

बबलू, नन्ही बेटी और रिक्शा इंसानी रिश्तो का ऐसा त्रिकोण बनाते है जो बेटी को बिसारते समाज में उम्मीद की लौ जलाते दूर से ही दिखता है. बबलू और उनकी पत्नी शांति को पिछले माह ही पंद्रह साल की मिन्नत और मन्नतों के बाद पहली संतान के रूप में बेटी नसीब हुई थी.

मगर जल्द ही उस नन्ही परी को माँ के सुख और सानिध्य से वंचित होना पड़ा. बबलू बताता है खून की कमी के सबब शांति की हालत बिगड़ी और वो जच्चा बच्चा दोनों को अस्पताल ले गया. बबलू ने कहा “डॉक्टर ने खून लाने के लिए कहा, मैं खून लेकर आया,लौटा तो पता चला कि शांति की सांस हमेशा के लिए उखड़ गई, मेरी आँखों के आगे अँधेरा पसर गया.”

सो.- बी बी सी -हिंदी

खुद को नवजात बेटी की खातिर संभाला, ये कहते कहते बबलू की आँखे भर आई. वो बताता है कैसे उसने पत्नी के लिए दाह संस्कार के लिए मुश्किल से रूपये जुटाए.

पिता का भी भार

अपनी पत्नी के मौत के बाद नवजात बेटी की परवरिश की जिम्मेदारी बबलू पर आ पड़ी. उसने खुद को संभाला, बेटी को कपडे़ के झूले में सुलाया और झूले को पेड़ की टहनी की तरह गले में लटका लिया.

भरतपुर ने वो मंजर देखा जब बबलू रिक्शे पर,गले मे नवजात बेटी और पीछे सावरिया बैठी. बबलू कहता है ‘हमदर्दी के अल्फाज तो बहुत मिले, लेकिन उसे कोई मदद नहीं मिली. रिश्तेदारों ने भी कोई मदद नहीं की.

बबलू पर बूढ़े हांफते कांपते पिता का भी भार है. वो कहता है “कभी कभी किराये के कमरे पर पिता के साथ बेटी को छोड़ जाता हूँ,बीच बीच में उसे दूध पिलाने लौट आता हूँ. ये शांति की अमानत है , इसलिए मेरी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है.”

कैसी है ज़िन्दगी

बबलू का एक कमरे का घर किराये पर है.वो पांच सो रूपये प्रति माह किराया देता है.फिर हर रोज उसे तीस रूपये रिक्शे के लिए किराया अदा करना पड़ता है. इन मुश्किलों के बीच बबलू रिक्शा चला कर बेटी के लिए बाबुल बना हुआ है.

बबलू का कहना है “शांति तो इस दुनिया में नहीं है,लेकिन मेरी हसरत है ये उसकी धरोहर फूले फले,मेरा सपना है उसे बेहतरीन तालीम मिले. हमारे लिए वो बेटे से भी बढ़ कर है”.

बहुतेरे लोग नवजात कन्या को लावारिस छोड़ जाते है.क्योंकि उन्हें बेटी भार लगती है.लेकिन बबलू की कहानी बताती है बेटी को नवाजने के लिए हस्ती और हैसियत होना जरूरी नहीं.बाबुल की हसरत होना काफी है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Share post:

Subscribe

spot_imgspot_img

Popular

More like this
Related

400% Spielsaal Maklercourtage 2025: Bis zu 400% Einzahlungsbonus

ContentArten bei Bitcoin Kasino BoniHugo CasinoWorauf bezieht zigeunern nachfolgende...

ten Best Real money Online slots games Web sites from 2025

Welcome bonuses can raise your money, providing much more...

Wolf keskittyy mostbet Suomi arvostelu pelipaikkavapaaseen peliin demotoiminnossa

Sisältö+ 50 kannustinkierrosta - mostbet Suomi arvosteluPorttivaihtoehdot: bet365:n korkeat...

300% Casino Prämie? Liste das größten vertrauenswürdigen Casino Boni

ContentAlternative BonusangeboteBonusbedingungen pro den 300% Kasino BonusGenau so wie...