हम सभी ने अब तक के अपने जीवन में महाभारत काव्य को तो जरूर पढ़ा ही होगा। पढ़ा नहीं भी हो पर देखा तो जरूर होगा, हाँ जरूर देखा होगा पिछले साल लगे लॉक डाउन में घर में बंद, हम सभी को उसी ने तो जीवित रखा था।

महाभारत देखते समय हमें कौरवों और पांडवों के बारे में तो पता चल ही गया होगा। साथ ही द्रौपदी जो पांचो पांडवों की पत्नी थी, उसके बारे में भी पता ही होगा। ये भी पता होगा की महाभारत में कौरवों और पांडवों के बीच हुए द्यूत क्रीड़ा में पराजित होने पर पांडवों को बारह वर्ष जंगल में तथा तेरहवाँ वर्ष अज्ञातवास में बिताना था।

पांडवो के जीवन में अज्ञातवास का समय बहुत महत्वपूर्ण था। अपने असली वेश में रहने पर पांडवों के पहचाने जाने की आशंका थी, इसीलिए उन लोगों ने अपना नाम बदलकर और अपना वेश बदलकर मत्स्य देश की ओर निकल पड़े। मत्स्य जनपद की राजधानी विराटनगर में राजा विराट के यहां उनकी सेवा में लग गए।

‘अज्ञातवास’ का अर्थ है- “बिना किसी के संज्ञान में आये किसी अपरिचित स्थान व अज्ञात स्थान में रहना।”

कहते है कि अज्ञातवास के दौरान विराटनगर में रहने के साथ-साथ पांडवों और द्रौपदी थोड़े समय के लिए हमारे शहर उदयपुर में भी रहे थे। उदयपुर जिले के सलूम्बर उपखण्ड से करीब 15 किमी दूर सलूम्बर-बांसवाड़ा मुख्य मार्ग से पूर्व दिशा में करीब तीन किमी अंदर धौलागिरी खेड़ा ग्राम पंचायत के केनर में स्थित धौलागिरी पर्वत पर स्थित पंचमुखी भोले बाबा का मंदिर है। वह मंदिर काफी पुराना व ऐतिहासिक है। इसी मंदिर की पहाड़ियों पर पाण्डवों ने अज्ञातवास गुजारा था।
इस मंदिर में लोग दूर-दूर से श्रद्धा रख कर आते है, अपनी सभी मनोकामनाए पूर्ण करने के लिए। मनोकामना पूर्ण होने पर भक्त पर्वत की तलहटी में स्थित सेरई मेरठ मठ में प्रसादी का आयोजन करते है। हर अमावस्या, पूर्णिमा के अलावा हर सोमवार को भी लोग यहाँ आते है। वही भाद्र पक्ष की अमावस्या को हर साल यहाँ बड़े मेले का आयोजन होता है।

 

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