जानकारी के अनुसार कुराबड़ निवासी मनोहरसिंह (४५) पुत्र लालसिंह राजपूत बीती रात साढ़े 11 बजे रेलमगरा से रेती भरा ट्रेलर लेकर उदयपुर की तरफ आ रहा था। इसी बीच देबारी माताजी मंदिर के पास आरटीओ की फ्लाइंग ने ट्रेलर को रोका और मनोहरसिंह को ओवरलोड ट्रेलर की रसीद कटवाने के लिए कहा। पता चला है कि इस बात को लेकर फ्लाइंग कर्मचारियों और मनोहरसिंह के बीच मारपीट हो गई। मनोहरसिंह डरकर वहां से भागा, तो अंधेर में देबारी पुलिया से नीचे गिर पड़ा।
फ्लाइंग के एक कर्मचारी ने पीछे आ रही ट्रक के ड्राइवर जमनालाल को बताया कि ट्रेलर का ड्राइवर पुलिया से नीचे गिर गया है। जमनालाल ने उसकी ट्रक के मालिक ताराशंकर को यह जानकारी दी। इस पर ताराशंकर मौके पर पहुंचा और रेती एसोसिएशन के अध्यक्ष अंतोष चौधरी व संरक्षक प्रेमसिंह को मौके पर बुलाया। इन लोगों ने रात को पुलिया के नीचे ड्राइवर की तलाश की, लेकिन अंधेरे के कारण कुछ दिखाई नहीं दिया। आज सुबह ग्रामीणों ने पुलिया के नीचे लाश को देखी और पुलिस को सूचना दी।
सुबह लाश मिलने के बाद काफी संख्या में रेती एसोसिएशन के पदाधिकारी व ट्रक ड्राइवर मौके पर एकत्र हो गए। मृतक मनोहरसिंह का बेटा राजेंद्र व किशन, भाई पे्रमसिंह और साला डोलसिंह भी वहां पहुंच गए। इन लोगों ने ग्रामीणों के साथ मिलकर देबारी से गुजर रहे हाइवे और पुलिया के नीचे के रास्तों पर पत्थर व कांटा डालकर जाम लगा दिया। करीब चार घंटे की समझाइश के बाद पुलिस जाम खुलवाने में सफल रही।
मृतक मनोहरसिंह के परिजनों का कहना है कि सुबह उन्होंने शव को एमबी हॉस्पीटल पहुंचाया, जहां से कार्रवाई के लिए वे सभी लोग प्रतापनगर थाने पहुंचे। इसी बीच मनोहर सिंह का शव पोस्टमार्टम के बाद एम्बुलेंस में प्रतापनगर थाने पहुंचाया गया, जहां पर मनोहर सिंह के परिजनों और रेती एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने उनकी बिना मौजूदगी में पोस्टमार्टम होने पर नाराजगी जताई।
आरटीओ के बाद प्रदर्शन : प्रतापनगर थाने से सभी लोग मनोहरसिंह की लाश को लेकर आरटीओ के नये ऑफिस पहुंचे, जहां आरटीओ ऑफिस के बाहर लाश रखकर जोरदार प्रदर्शन किया। यहां इन लोगों ने जमकर नारेबाजी की, लेकिन आरटीओ का कोई अधिकारी बाहर नहीं निकला। इस दौरान प्रतापनगर थानाधिकारी चंद्र पुरोहित और सुखेर थानाधिकारी हरेंद्रसिंह जाब्ते के साथ पहचे और काफी समझाइश के बाद परिजन शव को लेकर गए। मृतक के परिजनों और रेती एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने दस लाख रुपए मुआवजा, मृतक के बेटे को सरकारी नौकरी दिलाने और फ्लाइंग के सभी कर्मचारियों को बर्खास्त करने की मांग की है।
इनका कहना ………..
घटनाक्रम के बाद मैं स्वयं मौके पर जाकर आया। मौके पर लगा जाम खुलवाया। मामले की जांच की जा रही है। अगर आरटीओ की फ्लाइंग होगी तो निश्चित रूप से कार्रवाई की जाएगी।
-भंवरलाल, आरटीओ
आरटीओ के डर से भागे चालक की पुलिया से गिरकर मौत
बेटी शैला खान बनी सेना में लेफ्टिनेंट
जयपुर, तालीम में तेजी से अपना मुकाम बना रहे मुस्लिम समुदाय की बेटी ने सेना में कदम रखकर समाज का नाम रोशन किया है। जयपुर की शैला रईस खान सेना में लेफ्टिनेंट हैं।
महाराणा प्रताप जयंती पर रक्तदान
उदयपुर. महाराणा प्रताप के 475 वीं जयंती के उपलक्ष्य में बुधवार से सात दिवसीय कार्यक्रमों का आगाज महा आरती के साथ हुआ।
शहर के आलोक विद्यालय में प्रताप की प्रतिमा की महा आरती के साथ कार्यक्रमों की शुरुआत हुई।
नगर निगम और मेवाड़ क्षत्रिय महासभा की ओर से शहर में सात दिवसीय कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।
पहले दिन प्रताप की आरती के बाद रक्तदान कार्यक्रम का आयोजन हुआ। कार्यक्रम संयोजक कमलेन्द्र सिंह पंवार ने बताया कि सुबह 10.30 बजे आलोक संस्थान की ओर से गवरी चौक पर महाराणा प्रताप की आरती की गई।
सुबह 11.30 बजे महाराणा प्रताप सेना की ओर से लोक मित्र ब्लड बैंक में रक्तदान शिविर लगाया गया।
हड़ताली रेजीडेंट्स को करो निलंबित!

तेल निकाल रहा मुम्बई का टिकट
उदयपुर. यहां से मुम्बई 900 किलोमीटर का सफर यात्रियों की जेब पर इतना भारी पड़ रहा है कि रेलवे का प्रथम एसी श्रेणी का किराया भी पीछे छूट जाए।
गर्मी की छुट्टियों में मुम्बई के लिए रोडवेज बस नहीं होना, बांद्रा एक्सप्रेस ट्रेन के सप्ताह में केवल तीन दिन होने से खचाखच चल रही है। निजी बस संचालक चांदी काट रहे हैं।
हाल ये हैं कि इन दिनों प्रति यात्री ढाई से तीन हजार रुपए तक वसूले जा रहे है। इधर, किसी तरह केवल सीट मिल जाने को यात्री राहत समझ रहे हैं।
ओवरलोड निजी बसों में मुम्बई जाने के लिए भारी किराया चुकाने के बाद भी चालक के केबिन या सीटों के बीच गैलेरी में रखी मुड्डियों पर बैठकर यात्रा करने को मजबूर हैं।
यात्रियों को हो रही परेशानी की असलियत जानने के लिए निजी बस संचालकों से मुम्बई का टिकट लेने का प्रयास किया तो पहले टिकट उपलब्ध होने से इनकार कर दिया।
लौटने पर बस संचालकों ने आवाज दी कि एक-दो टिकट बाकी हैं, लेकिन महंगे हैं। बाद में वे 3000 रुपए मंे मुम्बई ले जाने के लिए तैयार हो गए। सीट के बजाए केबिन या मुड्डी पर बैठाने के लिए 1500 रुपए मांगे।
बांद्रा एक्सप्रेस भी खचाखच
सप्ताह में तीन दिन चलने वाली उदयपुर-बांद्रा एक्सप्रेस में 18 जून से पहले किसी श्रेणी में टिकट उपलब्ध नहीं हैं। मुम्बई की यात्रा के लिए लोग मजबूरी में बसों की ओर दौड़ रहे हैं।
टे्रन में स्लीपर का किराया 475 रुपए, थर्ड एसी का 1250 रुपए व सैकण्ड एसी का 1785 रुपए किराया है।
परेशान यात्रियों ने बताया कि उदयपुर-बांद्रा सप्ताह के सातों दिन चलने लगे तो लोगों को बड़ी राहत मिल सकती है।
बंद हो गई रोडवेज बस
पहले रोडवेज की एक बस मुम्बई के लिए संचालित थी, लेकिन यात्री भार नहीं होने से बंद कर दी गई।
दरअसल सीजन में तो रोडवेज को जमकर यात्री मिलते हैं, लेकिन जुलाई खत्म होते-होते यात्रियों का टोटा हो जाता है। उस समय निजी बस संचालक 300-350 रुपए में भी मुम्बई ले जाने को तैयार हो जाते हैं।
ख़त्म नहीं हुई है सलमान की कहानी..
सलमान ख़ान में मुझे तीन आदमी नज़र आते हैं या आज की ज़ुबान में कहें तो तीन कैमियो का मिश्रण.
वह बिना किसी जतन के ब्लॉकबस्टर फ़िल्में देते हैं. ऐसा लगता है कि लोग उन्हें चाहते हैं और आलोचक तक उनकी सफलता में कमी निकालने में असहाय महसूस करते हैं.
अमिताभ बच्चन या नसीरुद्दीन शाह अभिनय कर सकते हैं, जबकि सलमान जो हैं उसी के लिए जाने जाते हैं.
वो अपनी सहजता में उतने ही पूरे दिखते हैं, जितना रहमान या इल्लै राजा अपनी प्रतिभा के साथ. फिर भी वो सफल हैं.
धर्माचार्य बने पत्रकार
एक दूसरे सलमान हैं: टीवी कार्यक्रम ‘बिग बॉस’ वाले सलमान. वो बड़े भाई की भूमिका निभाते हैं, जो समझदार है और कॉमन सेंस वाला होस्ट है और उनकी मौजूदगी से ही कार्यक्रम चल जाता है.
इसमें ज़्यादातर अभिनेता दूसरे दर्जे के हैं जो पहले दर्जे का होना चाहते हैं या ऐसा जताते हैं. सलमान दूसरे दर्जे के हैं और ऐसे ही रहकर ख़ुश हैं.
तीसरे सलमान वो खुद हैं: एक प्यारा आदमी जो एक चैरिटी चलाता है, अर्जुन कपूर को कई किलो वजन कम कर स्टार बनने के लिए मनाता है और एक ऐसा आदमी जो अब भी इंसान है, जिसकी सीमाएं हैं.
बुधवार को सलमान पर आए फ़ैसले से बॉलीवुड और मीडिया बावला सा हो गया और हर छोटा-मोटा वकील और पत्रकार धर्माचार्य की तरह उपदेश देने लगा.
पीड़ित के परिवार की प्रतिक्रिया यह थी कि, न्याय तो ठीक है, लेकिन मुआवज़ा मिलता तो बेहतर रहता. एक स्तर पर तो फ़ैसले के साथ मामला शांत हो गया, लेकिन दूसरी ओर इससे नई मुश्किलों का पिटारा खुलने की आशंका है.
क़ानून पर कोई सवाल नहीं उठा रहा है, लेकिन लगता है कि फ़ैसले से कुछ लोग संतुष्ट नहीं हैं. ऐसा लग रहा है कि जैसे यह कहानी ठीक तरीक़े से आगे नहीं बढ़ पाई.
महज़ स्टार नहीं
पहली समस्या तो मामले के इतना लंबा चलने से है. अगर राजनीति में एक हफ़्ता लंबा समय है तो क़ानूनी मामलों में एक दशक अनंतकाल जैसा है.
मैं मानता हूं कि इसमें थोड़ा पाखंड है. मुझे नहीं लगता कि फ़ुटपाथ पर जीने और मरने वाले पीड़ित और उसके परिवार के बारे में किसी ने थोड़ी देर को सोचा भी होगा.
अब जब इंसाफ़ हो चुका है, सलमान न सिर्फ़ ख़बरों में हैं बल्कि चिंता भी उन्हीं की जा रही है.
आप उन्हें एक अमीर बिगड़ा हुआ स्टार कहकर ख़ारिज़ नहीं कर सकते, जो अपनी लंबी ‘जवानी’ के बावजूद पचास के क़रीब पहुंचता जा रहा है.
वो एक परिपक्व आदमी हैं और उन्हें अपनी ज़िंदगी को लेकर कुछ पछतावा तो ज़रूर ही होगा. ज़ेल से उनका करियर मोटे तौर पर ख़त्म ही हो जाएगा. पांच साल में वह बॉलीवुड की याद बनकर रह जाएंगे, जिनकी जगह स्क्रीन का कोई अन्य कम चमकदार पहलवान ले लेगा.
आपको अहसास होता है कि वर्ग विश्लेषण से कुछ नहीं होगा. लोग उनके चाहने वाले हैं. कई बार तो उन लोगों को भी उनमें कुछ दमदार नज़र आता है जो मानते हैं कि वो एक ख़राब अभिनेता हैं.
ऐसा लगता है कि एक दशक लंबी चली सुनवाई के दौरान वो कुछ परिपक्व हुए हैं और लोगों में भी उनके प्रति प्रेम बढ़ा है. अगर दुर्घटना के कुछ ही महीनों के अंदर मुक़दमा चलता और फ़ैसला होता तो सलमान के लिए रोने वाले काफ़ी कम होते.
तब वह सिर्फ़ एक स्टार होते न कि जनता के बीच के एक लेजेंड, जो कि वो अब हैं.
भुलाए नहीं जाएंगे
मैं ज़रा एक ऐसी बात बताऊं जिसमें बॉलीवुड के रंग तो हैं ही, लेकिन यह उससे कहीं बढ़कर है. यह नैतिक मरम्मत (ethical repair) का विचार है.
नैतिक मरम्मत एक ऐसी क्रिया है जिसमें अपराधी अपने अपराध का पश्चाताप करता है और उस परिवार के लिए कुछ करता है जिसका उसने नुक़्सान किया है.
मैं ख़ैरात की नहीं बल्कि असली योगदान की बात कर रहा हूँ जिसमें दरअसल सलमान फुटपाथ पर रहने वालों के लिए कुछ करते हैं, समाजसेवा के लिए नहीं बल्कि सचमुच इंसानियत के नाते, वंचित समुदाय के लिए.
यह एक ऐसी शहरी घटना है जिस पर बॉलीवुड की कई पटकथाएं आधारित रही हैं. मुझे लगता है कि सलमान ख़ान में कुछ है जो इसके काबिल है
मुझे उम्मीद है कि यह कोई ऐसी पटकथा नहीं बनेगी जिसे उनके प्रशंसकों पर बम की तरह फेंका जाएगा.
लेकिन मुझे लगता है कि सलमान खान की कहानी अभी ख़त्म नहीं होने जा रही. वो हमारे अंदर इस क़दर हिस्से बन चुके हैं कि उन्हें आसानी से नहीं भुलाया जा सकता.
मुफ़्ती हूं, चरमपंथी नहीं: मुफ़्ती क़य्यूम
गुजरात के अक्षरधाम मंदिर पर हुए चरमपंथी हमले के आरोप में 11 सालों तक जेल में रहने के बाद मुफ़्ती अब्दुल क़य्यूम पिछले साल रिहा हुए.
सुप्रीम कोर्ट से बाइज़्ज़्त बरी होने वाले मुफ़्ती अब्दुल क़य्यूम का कहना है कि इन 11 सालों में एक मौक़ा ऐसा भी आया जब उनकी पत्नी ने आत्महत्या करने की कोशिश की थी.
मुफ़्ती क़य्यूम के अनुसार इन सब के बावजूद भारत की न्यायपालिका पर उनका यक़ीन कभी कम नहीं हुआ और उन्हें पूरा भरोसा था कि उन्हें अदालत से रिहाई मिल जाएगी.
सुनें मुफ़्ती अब्दुल क़य्यूम से पूरी बातचीत
दिल्ली में मुफ़्ती क़य्यूम की लिखी किताब ’11 साल सलाख़ों के पीछे’ का विमोचन हुआ.
बीबीसी संवाददाता इक़बाल अहमद ने इस मौक़े पर मुफ़्ती क़य्यूम से बात की.
क़य्यूम ने जो कहा
अगर मेरी इस किताब के बाद कोई एक आदमी भी ज़ुल्म से बच जाएगा तो मुझे सबकुछ मिल गया.
मुझे अल्लाह पर हमेशा ही यकीन और ईमान था. सुप्रीम कोर्ट पर भी मुझे भरोसा था. इसलिए मैंने पहले से ही कई चीज़ें नोट करके रखी थीं.
हालांकि कई ऐसे मौक़े आए जब ऐसा लगता था कि मुझे मार दिया जाएगा. जैसे एक बार मुझे ‘एनकाउंटर’ के लिए ले गए.
‘देश के क़ानून के भरोसे रहा जेल में ज़िंदा’
इस केस के बारे में आपको एक अजीब बात बताऊँ कि अभियोजन पक्ष के पास सत्ता है, ताक़त है लेकिन उनका सारा केस गड्डमड्ड है…
उन्होंने बार-बार लिखा है…उसके कुछ दिनों बाद…उसके कुछ दिनों बाद. कहीं किसी तारीख वगैरह का कोई ज़िक्र नहीं है. लेकिन मैंने सारी बातें तारीख के साथ लिखी हैं.
तीन महीने में लिखी क़िताब
मैंने सारी चीज़ें ख़ासकर तारीखें दिमाग़ में बैठाए रखीं कि अगर मैं रिहा हो गया तो मैं लिखूँगा. और मेरा एक ही मक़सद था कि आइंदा किसी के साथ ऐसा जुल्म या अन्याय न हो.
मैंने 2-3 महीने में किताब पूरी कर ली थी. लेकिन इसके बाद उसमें सुधार होता रहा. अब भी कुछ ग़लतियाँ रह गई हैं लेकिन हम उसे अगले संस्करण में सही कर लेंगे.
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का मैंने गुजराती में अनुवाद किया है. वकील इरशाद हनीफ़ ने इसका उर्दू अनुवाद किया है.
जहां तक पुलिस और प्रशासन का अनुभव है, मेरे साथ जानवरों जैसा मेंटल टॉर्चर किया गया. मेरी पत्नी ने खुदकुशी की कोशिश की, मैंने भी कई बार आत्महत्या के बारे में सोचा.
हिंदू ग़रीब
सौराष्ट्र का एक ग़रीब हिंदू कैदी था, जिसे साढ़े छह सौ ग्राम अनाज चोरी करने को लेकर उसे 10 साल की सज़ा दी गई और उसके पास इतने पैसे नहीं हैं कि वो हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से इंसाफ़ मांग ले और बरी हो जाए.
गुजरात में एक आदिवासी को सिर्फ पचास रुपए की लूट के लिए 38 साल तक ज़ेल में रहना पड़ा था.
इस अन्याय का शिकार तो केवल मुसलमान ही नहीं बल्कि गैर मुस्लिम भी हैं.
मेरे केस में तो सुप्रीम कोर्ट ने गृह सचिव और सरकार को फटकार भी लगाई है और मैं समझता हूं कि यह जजमेंट एक मिसाल बनने वाला है.
हमने पहले भी कोई ग़लत काम नहीं किया था. हम तो गोधरा कांड के बाद उजड़े हुए मुसलमानों को मदद पहुंचाने और सहारा देने का काम कर रहे थे.
उस दौरान भी हमने कोई ग़लत काम नहीं किया और आगे भी नहीं करेंगे.
हम क़ानून के दायरे में रहकर अपने हक़ की लड़ाई लड़ेंगे.
कानून के कद्रदान – गुलाब चंद कटारिया
मंत्री हो तो राजस्थान के गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया जैसे जो बोलते हैं तो बड़ी बेबाकी से। बोलते समय विरोधी तो विरोधी, अपनों को भी नहीं बख्शते।
जयपुर में एक सरकारी समारोह में बोले कि जो नियमों का उल्लंघन करे उसे उल्टा लटका दो। कटारिया ये भी बोले कि हमारे यहां रिश्वत देकर बेकार गाड़ी का प्रमाणपत्र भी आसानी से बन जाता है। लोगों का दिल-दिमाग ठीक करने के लिए कानून का डंडा भी जरूरी है।
कटारिया जो कुछ बोले, दिल से बोले। बात सोलह आने सच है कि कानून तोड़ने वाले को उल्टा लटका दो। वो तो सुधर ही जाएगा, उसका हश्र देखकर दूसरे भी तौबा कर लेंगे लेकिन अच्छा होता गृहमंत्री ये भी बता देते कि कानून तोड़ने वालों को उल्टा लटकाएगा कौन? रिश्वत देकर फर्जी फिटनेस प्रमाणपत्र बनवाने वालों को रोकेगा कौन? सस्ती वाहवाही लूटने के लिए भाषण देना जितना आसान है, कहे को करके दिखाना उतना ही मुश्किल।
ये बात कटारिया या राजस्थान तक सीमित नहीं है बल्कि हर राज्य में ऐसे नेता मिल जाएंगे जो व्यवस्था को सुधारने के लिए न जाने क्या-क्या बोल जाते हैं।
बीते कुछ सालों के उदाहरणों पर नजर डाली जाए तो साफ हो जाता है कि देश में कानून तोड़ने वालों में नेता-अफसर सबसे आगे रहते हैं।
भ्रष्टाचार-घोटाले हों तो नेता-अफसरों के ही नाम सामने आते हैं। सांसद-विधायक अपने सरकारी आवास किराए पर उठाते हुए मिल जाते हैं तो पैसे लेकर सवाल पूछने में भी ये पीछे नहीं रहते। देश में कानून तोड़ने वालों को सबक सिखाना जरूरी है लेकिन सिर्फ भाषणों से नहीं। इसके लिए कुछ विशेष करने की जरूरत नहीं सिर्फ कानून की पालना ही पर्याप्त होगी।
भाषणों में आदर्श और नैतिकता की बातें करने वाले यही नेता कानून तोड़ने वालों के बचाव में खड़े नजर आ जाते हैं। हमारी परेशानी ये है कि राजनेता हर काम राजनीतिक तराजू में रखकर तौलते हैं। हर राजनीतिक दल कहे कुछ भी लेकिन हकीकत यही है कि सत्ता में आते ही अपने उन कार्यकर्ताओं से मुकदमे हटाने का काम करता है जिन्होंने विपक्ष में रहते कानून तोड़ने का काम किया था। जाहिर है इससे पुलिस और प्रशासन में संदेश अच्छा नहीं जाता।
देश में कानून का राज लागू करना मुश्किल नहीं लेकिन जरूरत हौसला दिखाने की और जरूरत पड़ने पर झूठ को झूठ कहने का साहस दिखाने की भी। अपने-अपनों को बचाने के फेर में कानून की रोज धज्जियां उड़ती हैं। कानून की पालना के मामले पर राजनीतिक दल एक हो जाएं तो राजस्थान के गृहमंत्री का सपना जरूर पूरा हो सकता है लेकिन ऐसा होगा इसकी उम्मीद शायद ही किसी को हो।
देश में कानून का राज लागू करना कतई मुश्किल नहीं लेकिन जरूरत हौसला दिखाने की और जरूरत पड़ने पर झूठ को झूठ कहने का साहस दिखाने की भी है।
दही कब खाएं, कब न खाएं?
अक्सर लोगों के मन में यह दुविधा रहती है कि दही किस मौसम में खाएं, कब खाएं और किस रोग में न खाएं। आयुर्वेद की चरक संहिता में दही के लिए दधी: कल्पतरू लिखा गया है यानी दही खाना कल्पतरू के समान है जिससे शरीर के सारे रोग नष्ट हो जाते हैं। दही खाते समय इन बातों का ध्यान रखें।
इस मौसम में खाएं
आयुर्वेद विशेषज्ञ वैद्य पदम जैन के अनुसार हालांकि आम धारणा बारिश के मौसम में दही को नहीं खाने की है लेकिन 16वीं शताब्दी के वनौषधि ग्रंथ भावप्रकाश में दही को बारिश और गर्मी में खाना उपयोगी बताया गया है। सर्दी में खाने की मनाही है। दही ठंडा व भारी होता है इसलिए शीत ऋतु में खाने से मांसपेशियों व नसों में रुकावट आकर नर्व सिस्टम व चेतना कमजोर होने लगती है जिससे व्यक्ति में थकान, निद्रा और आलस जैसे लक्षण होने लगते हैं।
डिनर में न लें
आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. रमाकांत शर्मा के अनुसार दोपहर में 2-3 बजे से पहले दही खाना लाभकारी है। डिनर में लेने से यह फेफड़ों में संक्रमण, खांसी-जुकाम के अलावा जोड़ों की तकलीफ बढ़ाता है।
इन रोगों में लाभकारी
इसे खाली पेट सुबह के समय खाने से अल्सर, एसिडिटी, हाथ-पैरों के दर्द, नेत्र जलन व आंतों के रोगों में आराम मिलता है। एक समय में 250 ग्राम दही खाया जा सकता है।
ऐसे करें प्रयोग
जिन्हें शरीर में कमजोरी, वजन न बढऩे, अपच या भूख न लगने की समस्या हो उन्हें भोजन के बाद एक कटोरी मीठा दही खाना चाहिए। दही को दूध व दूध से बनी चीजों के साथ न खाएं वर्ना अपच की समस्या हो सकती है।