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उदयपुर . अभिनेता अनुपम खेर का बचपन दादी के किस्से सुनते हुए शिमला में बीता। उसका चाचा सातवीं कक्षा में आठ बार फेल हुआ। दादाजी अंग्रेजों के जमाने के ईमानदार सिविल इंजीनियर थे। किशोर जीवन में ही उन्हें अभिनय में दिलचस्पी बढ़ी और युवावस्था में फिल्मों की तरफ कदम बढ़ा दिया। अभिनेता ने अपनी यह कहानी जुबानी नहीं बताई, बल्कि नाटक ‘कुछ भी हो सकता है के माध्यम से दिखाई। मौका था पीआई इंडस्ट्रीज के स्थापना दिवस का। नाटक के निर्देशक फिरोज अब्बास खान थे। अशोक सिंघल और सलिल सिंघल ने सभी का आभार व्यक्त किया। संयोजन रागिनी पानेरी ने किया।

नाटक मंचन के दौरान अनुपम खेर जैसे-जैसे अपने जीवन सफर का मंचन करते गए, सूत्रधार की भूमिका भी निभाते रहे। कहानी आगे बढ़ती है जिसमें अनुपम खेर को किशोर जीवन में ‘राधा का तथा युवावस्था में ‘मीरा का साथ रहा। इसके बाद नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा का जीवन, फिर फिल्म इंडस्ट्री में उतार-चढ़ाव वाली जिंदगी दिखाई गई। वे कभी चंचल बच्चे बने, कभी छिछोरे किशोर, तो कभी मस्तमौला युवा। जीवन के उतार-चढ़ाव को स्टेज पर उतारते खेर के प्रभावी अभिनय का कमाल था कि दर्शक ढाई घंटे तक जमे रहे।

पत्नी को सच्चा साथी

इस दौरान अनुपम खेर अपने साथियों और समर्थकों को शुक्रिया कहना नहीं भूले। बचपन के साथी विजय मल्होत्रा उनके किस्सों में कई बार आए तो आठ साल दोस्त रहने के बाद जीवनसाथी बनी किरण खेर को उन्होंने अपना सच्चा साथी बताया। दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन को उन्होंने महान प्रेरणा स्त्रोत कहा तो महेश भट्ट, सुभाष घई, माधुरी दीक्षित, श्री देवी और मनमोहन देसाई का जिक्र भी कई बार आया। इस दौरान एक स्क्रीन पर दिखाए गए उनकी पहली फिल्म ‘सारांश दिलीप कुमार के साथ फिल्म ‘कर्मा के दृश्य, अपनी टीवी प्रोडक्शन कंपनी की शुरुआत के दौर के दृश्य भी विशेष आकर्षक रहे।

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