विश्व एड्स दिवस पर सामुदायिक केंद्र साकरोदा में व्याख्यानमाला

उदयपुर. एड्स एक धीमी और जानलेवा बिमारी है। इसका असर श्वेत रक्त कोशिकाओं में संक्रमण के दस वर्षों बाद सामने आता है। तब तक यह रोग पूरे शरीर में फैल चुका होता है। वैज्ञानिक स्तर पर इसके प्रति सावधानी रखना आवश्यक है, साथ ही लोगों को इस बिमारी के प्रति जागरुक करना भी आवश्यक हो चुका है। यह जानकारी राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत ने दी। अवसर था, सामुदायिक केंद्र साकरोदा में विश्व एड्स दिवस पर आयोजित एक दिवसीय व्याख्यानमाला का। इस अवसर पर आदिवासी महिलाओं ने ढोल नगाड़ो के साथ रैली निकाली तथा लोगों को इस रोग के प्रति सचेत रहने का आह्वान किया। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि एवं महिला अध्ययन केंद्र की निदेशक डॉ. मंजू मांडोत थीं तथा अध्यक्षता डॉ. ललित पांडे ने की। इस अवसर पर एमबी अस्पताल की डॉ. नीरा सामर ने प्रमुख वक्ता के रूप में विषय पर गहन जानकारी उपलब्ध करवाई।

सावधानी से ज्यादा जागरुकता जरूरी : एमबी अस्पताल की डॉ. नीरा सामर ने इस अवसर पर कहा कि रोग के प्रति सावधानी जितनी जरूरी है, उतनी ही जरुरत जागरुकता की भी है। एड्स रोगी के प्रति सहानुभूति रखना बेहद जरूरी है। उसे यह रोग किस कारण से हुआ है, वो अहम है। इस अवसर पर डॉ. सामर ने रोग के होने के कारण, निवारण और उसके प्रति रखी जाने वाली जानकारी की भी जानकारी दी।

आदिवासी महिलाओं ने लिया संकल्प : कार्यक्रम के दौरान साकरोदा के आसपास के 15 गांव की 60 महिलाओं ने एड्स की सावधानी और जागरुकता के प्रति अपने परिवार से पहल करने का संकल्प लिया। महिलाओं ने कहा कि वे अपने घर से ही इस रोग के प्रति शुरूआत करेंगी। साथ ही इस रोग की जागरुकता एवं सावधानियों के लिए भी नियमित संकल्पबद्ध रहेगी। कार्यक्रम का संचालन जनता कॉलेज के सहायक आचार्य चितरंजन नागदा ने किया तथा धन्यवाद साकरोदा जनभारती केंद्र के प्रभारी राकेश दाधीच ने किया। स्वागत भाषण हरिश गंधर्व, डॉ. संजीव राजपुरोहित ने भी विचार व्यक्त किए।

 

Previous articleकलर्स पर खोज परक धारावाहिक शैतान-ए क्रिमनल माइंड शुरू
Next articleगुजरात चुनाव की तीन देवियाँ
Contributer & Co-Editor at UdaipurPost.com

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here