मरीज को मौत के मूंह से खिंच लाये डॉ मनीष छापरवाल – जिसका इलाज एम्स में संभव ना हो सका उसको नयी ज़िन्दगी दी मेवाड़ हॉस्पिटल ने।

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Udaipur Post. आपने कई बार लोगो को ये कहते हुए सुना होगा की डॉक्टर धरती के भगवान होते है और कई बार कुछ लोग इस कहावत को सत्य साबित भी कर जाते है। इन डॉक्टरों के द्वारा कई बार ऐसे चमत्कार कर दिया जाते है। जो लगभग असम्भव होते प्रतीत होते है। ऐसा ही एक चमत्कार कर दिखाया है मेवाड़ ओर्थपेडीक हॉस्पिटल के डॉ. मनीष छापरवाल ने ,जब उन्होंने और उनकी टीम ने एक ऐसे मरीज़ का इलाज कर दिया जिसके इलाज के लिए भारत के सबसे बड़े अस्पताल एम्स ने भी हाथ खड़े कर दिए। यही नहीं इस शख्स के इलाज के लिए गुजरात के अहमदाबाद में भी सभी नामी गिरामी अस्पताल के दरवाजे बंद ही दिखाई दिए। उन्हें यह तक कह दिया गया की वे अब 20 दिन से ज्यादा जीवित नहीं रहेंगे।
जानकारी के अनुसार सिरोही निवासी राजकुमार जोकि पैर के ट्यूमर से पीड़ित थे। इनका एम्स द्वारा पैर की हड्डी का प्रत्यारोपण किया था लेकिन बाद में इनके पैर में ट्यूमर हो गया जो बढ़ते बढ़ते इनके वजन के बराबर हो गया। राजकुमार पूरी तरह चलने फिरने में नाकाम हो चुके थे यहाँ तक कि एम्स के डॉक्टरों ने भी इनको जवाब देदिया था। बिस्तर पकड़ लेने के कारण तीन पुत्रियों व् एक पुत्र का पिता यह व्यक्ति अपने रोजमर्रा के कार्य और रोजीरोटी के लिए भी मोहताज हो गया। जब राजकुमार और उनके परिजनों ने हर एक अस्पताल की खाक छाननी शुरू की बड़े दुःख की बात है की बड़े बड़े दावे करने वाले राज्य ही नहीं देश के सबसे बड़े अस्पताल जहा कई सेलिब्रिटीज तक का इलाज होता है वह भी इस शख्स का इलाज करने की हिम्मत न जूटा सका और इन्हे वहां से ये कहकर बेरंग लौटा दिया गया की आपका इलाज संभव नहीं। डॉ. ने यहाँ तक कह दिया कि अब आपके पास मात्र दो माह का समय है।
डॉ मनीष छापरवाल ने बताया कि एक ngo के कार्यकर्त्ता ने मीडिया के सहयोग से अपील की की यदि कोई डोक्टर या हॉस्पिटल इस मरीज राजकुमार का इलाज कर सके तो वह आगे आये। ऐसे में एम्स से नकारे व्यक्ति के इलाज की चुनौती स्वीकार करना टेढ़ी खीर थी। परन्तु ऐसे में यह चुनौती स्वीकारी मेवाड़ हॉस्पिटल के डॉ. मनीष छापरवाल ने। डॉ, मनीष छापरवाल के अनुसार जब यह व्यक्ति उनके पास आया तो सबसे बड़ी चुनौती जो उसके इलाज करने को लेकर थी उससे भी बड़ी चुनौती उस व्यक्ति को ये समझाना था की वह अभी भी जी सकता है और वह ठीक हो सकता है। उन्होंने एक पिता की तरह उस मरीज का विशवास जीतकर उसे इस इलाज केलिए राजी किया। दो से तीन घंटे सिर्फ उसकी कॉउंसलिंग में लगे एवं उसके बाद शुरू हुआ उसका इलाज। पैर का ट्यूमर जोकि अबतक पेट तक पहुंच चूका था। उसे जटिल शल्य चिकित्सा के द्वारा हटाया गया जिससे उसको तुरंत ही राहत मिली। अब मरीज़ स्वस्थ होकर खाना पीना सुचारु रूप से कर पा रहा है।मरीज़ की राहत का पता उसके चेहरे की मुस्कान से ही लगाया जा सकता है। मरीज़ यहाँ अपने बड़े भाई के साथ आया है एवं वे दोनों ही डॉ. मनीष अग्रवाल को किसी मसीहा से कम नहीं मानते। आइये मरीज और उसके भाई की जुबानी

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