फिल्म समीक्षा

निर्माता : अजय देवगन, श्री अष्टविनायक फिल्म्स

निर्देशक : रोहित शेटटी

गीत : शब्बीर अहमद, फरहाद साजिद

संगीत : हिमेश रेशमिया, अजय अतुल

कलाकार : अजय देवगन, अभिषेक बच्चन, असिन, प्राची देसाई, अर्चना पूरणसिंह, असरानी, कृष्णा अभिषेक और गेस्ट रोल में अमिताभ बच्चन

तिन घंटे फूल इंटरटेनमेंट मनोरंजन का पूरा मसाला अभिषेक का गोलमाल और अजय देवगन की अंग्रेजी ने पूरी फिल्म में समां बंधे रखा है । बोल बच्चन रोहित शेट्टी की फिल्म है जहां आपको सिवाय हंसने के और कुछ नहीं मिल सकता है। ऋषिकेश मुखर्जी की गोलमाल से प्रेरित होकर बनाई गई यह फिल्म हंसी का फव्वारा है, लेकिन ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म के सामने फीकी है। इसके बावजूद अपने चिरपरिचित अंदाज में रोहित ने इसमें हर वो मसाला डाला है जिसके लिए वे जाने जाते हैं। दर्शक फिल्म देखता है, हंसता है, दिल खोलकर हंसता है और जरूरत पडने पर जोर के ठहाके भी लगाता है।

 

रोहित शेट्टी की फिल्म बोल बच्चन उनकी पुरान हास्य प्रधान फिल्मों की कडी में हैं। इस बार उन्होंने गोलमाल का नमक डालकर इसे और अधिक हंसीदार बना दिया है। बेरोजगार अब्बास अपनी बहन सानिया के साथ पिता के दोस्त शास्त्री के साथ उनके गांव रणकपुर चला जाता है। पितातुल्य शास्त्री ने आश्वस्त किया है कि पृथ्वीराज रघुवंशी उसे जरूर काम पर रख लेंगे। गांव में पृथ्वीराज रघुवंशी को पहलवानी के साथ-साथ अंग्रेजी बोलने का शौक है। उन्हें झूठ से सख्त नफरत है।

 

घटनाएं कुछ ऎसी घटती हैं कि अब्बास का नाम अभिषेक बच्चन बता दिया जाता है। इस नाम के लिए एक झूठी कहानी गढी जाती है और फिर उसके मुताबिक नए किरदार जुडते चले जाते हैं। गांव की अफलातून नौटंकी कंपनी में शास्त्री का बेटा रवि नया प्रयोग कर रहा है। वह गोलमाल फिल्म का नाट्य रूपांतर पेश कर रहा है। फिल्म के एक दृश्य में टीवी पर आ रही गोलमाल भी दिखाई जाती है। एक ही व्यक्ति को दो नामों और पहचान से पेश करने में ही गोलमाल की तरह बोल बच्चन का हास्य निहित है। रोहित के साथ लगातार आठवीं फिल्म में काम कर रहे अजय देवगन का अभिनय जहाँ बेहद लाउड रहा है वहीं अभिषेक बच्चन ने अपनी अदाकारी से बॉलीवुड और उन दर्शकों के मुंह पर ताला लगाने में कामयाबी पायी है जो यह कहते हैं कि उन्हें अभिनय नहीं आता। इस फिल्म को देखते हुए उनकी दोस्ताना की याद जरूर आती है। कामेडी दृश्यों में उनकी टाइमिंग गजब की है। रोहित और अभिषेक का साथ कुछ वैसा ही नजर आया जैसा कभी डेविड धवन और गोविन्दा का हुआ करता था। फिल्म में असिन और प्राची दो नायिकाएँ हैं लेकिन उनके करने के लिए कुछ नहीं है।

फिल्म पूर्ण रूप से पुरुष प्रधान हे महिला पात्रों में अर्चना पूरण सिंह ने अपनी चाप छोड़ी हे कृष्ण कोमेडी सर्कस की फ्रेम से बहार नहीं निकल पाए । एक्शन द्रश्य बहुत प्रभावी है ।

लगभग पौने तीन घंटे लम्बी इस फिल्म में अभिषेक बच्चन का पात्र मध्यान्तर के बाद दर्शकों पर अपनी गहरी छाप छोडता है।अजय देवगन हमेशा की तरह अछे अभिनय के साथ फिल्म में नज़र आये है ।उनकी अंग्रेजी की चीरफाड दर्शकों को बेसाख्ता हंसने पर मजबूर करती है। लेखक और निर्देशक ने यह सावधानी जरूर रखी है कि हंसी की लहरें थोडी-थोडी देर में आती रहें। कभी-कभी हंसी की ऊंची लहर आती है तो दर्शक भी खिलखिलाहट से भीग जाते हैं। चुटीली पंक्तियां और पृथ्वीराज रघुवंशी की अंग्रेजी हंसी के फव्वारों की तरह काम करती हैं। ऎसे संवाद बोलते समय सभी कलाकारों की टाइमिंग और तालमेल उल्लेखनीय है। खासकर गलत अंग्रेजी बोलते समय अजय देवगन का विश्वास देखने लायक है।

 

फिल्म का छांयाकन उम्दा है। कैमरामैन ने फिल्म के स्वभाव के मुताबिक पर्दे पर चटख रंग बिखेरे हैं। एक्शन दृश्यों और हवेली के विहंगम दृश्यों में उनकी काबिलियत झलकती है। हिमेश रेशमिया और अजय अतुल द्वारा दिये गये संगीत में सिर्फ दो ही गीत बोल बोल बच्चन और चलाओ ना नैनों के बाण रे दर्शकों की कसौटी पर खरे उतरते हैं।

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