उदयपुर, नगर निगम का घमासान अब सड़कों पर आने की तय्यारी में है। महापौर के खिलाफ विरोधियों ने खुले तौर पर मौर्चा खोल दिया है, और विरोधि खेमे के असंतुष्ट पार्षदों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है। विरोधी पार्षद विपक्ष से मिल कर महापोर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का मन बना चुके है। महापोर के तिरस्कार और वार्डों में काम नहीं करने की प्रवर्ती के चलते सत्ता पक्ष के १८ से अधिक पार्षद महापोर के विरोध में खड़े हो गए है।इधर सूत्रों के अनुसार निगम आयुक्त ने भी जाते जाते बैठक के पांचवे प्रस्ताव “समितियों के गठन” में नोट डाल दिया कि इस पर आम सहमती नहीं बन पायी और अधिकतर पार्षद इस प्रस्ताव के विरोध में है । इस नोट से महापोर कि मुसीबत और बढ गयी है ।
आ सकता है अविश्वास प्रस्ताव :
महापोर कि मुसीबत आने वाले दिनों में बढ सकती है। क्योंकि विरोधियों के तेवर कम पड़ते नहीं दीखते, उनके पास अब बहुमत लगभग सिद्ध हो गया है। और अविश्वास के लिए सिर्फ एक कदम दूर है। कुल ५५ पार्षदों में से सत्ता पक्ष के १६ और विपक्ष के १९ पार्षद मिलकर ३५ पार्षद स्पष्ट तौर पर विरोध में है। अविश्वास प्रस्ताव के आवेदन के लिए आधे पार्षदों कि सहमती चाहिए और सिद्ध करने के लिए एक तिहाई बहुमत चाहिए जो विरोधियों को उम्मीद है कि पूरा कर लेगे।
महापोर लगी मानाने में :
महापोर अपने पे आये संकट को देख मंगलवार को दिन से रात देर तक अपनी पार्टी के पार्षदों को मानाने में लगी रही और घर घर जा कर पार्षदों कि मान मनव्वल का दौर चलता रहा लेकिन सूत्रों के अनुसार अधिकतर पार्षदों ने खास कर महिला पार्षदों ने महापौर को बेरंग यह कह कर लोटा दिया कि साड़े तिन साल तक आपने हमारा तिरस्कार किया है और हमारे वार्ड में काम नहीं कराया अब क्यों हम आप का साथ दे ।
तिरस्कार और तानाशाही से है परेशान:
भाजपा के अधिकतर पार्षदों ने खुले तौर पर कहा है, कि महापौर ने पिछले साडे तिन साल तक उनका तिरस्कार किया वार्डों में कोई काम नहीं किया। जनता ने हमे चुन कर भेजा है, हम जन प्रतिनिधि है । जनता के सामने किस मुह से जायेगे । महापोर के तानाशाही रवय्ये से हम अब परेशान हो चुके है ।
अब बस भाई साहब का सहारा :
महापोर व् एनी उनके सहयोगियों को अब गुलाब चंद कटारिया के आने का इंतज़ार है उनका मानना है कि भाई साहब ही आकर अब बिगड़ी स्थिति को संभालेगे । कटारिया मुम्बई अपनी पेशी से आज दिन तक लोटेगे ।
पार्टी किसी व्यक्ति विशेष कि नहीं है और किसी कि मनमर्जी नहीं चलेगी लोकतंत्र है सबको अधिकार है अगर जरूरत पड़ी तो अविश्वास प्रस्ताव भी ला सकते है । महापोर के रवय्ये से नाराज़ कई भाजपा के पर्धाद हमारे साथ है ।… उप महापौर .. महेन्द्र सिंह शेखावत
नगर परिषद् में पार्षदों कि साड़े तीन साल से सुनवाई नहीं हो रही है, वार्डों में काम नहीं हो रहे है , नगर निगम कि महा पौर किसी कि सुनवाई नहीं करती उनके खिलाफ अविश्वाश बढ़ता जा रहा है …. प्रति पक्ष नेता , दिनेश श्रीमाली ।
महापोर पार्षदों का तिरस्कार और अपमान करती है सालों तक होने वाले कार्यों कि फ़ाइल दबा कर बैठी रहती है और पुरियो तरह भ्रष्टा चार में लिप्त है । अविश्कास प्रस्ताव आना क्घहिये जिससेव शहर के विकास में महापोर बाधा नहीं हो …. अजय पोरवाल .. पार्षद
सत्रह साल की उम्र में मां-बाप को सैलाब में खो देना और उस दर्द को समेटना निश्चित ही बेहद मुश्किल है.
देवकी रानी शायद उन चंद लोगों में से एक हैं जिन्होंने यह दर्द झेला है. और अब बाक़ी ज़िन्दगी भी केदारनाथ में क़यामत की वो रात उन्हें सताती रहेगी.
उन्होंने रात के अँधेरे में एकाएक शांत से उस तीर्थ स्थल में कोलाहल सुना.
धर्मशाला से बाहर निकलीं तो देखा पूरे क्लिक करें केदारनाथ के लोग मंदिर की ओर क्यों भाग रहे हैं भला.
माता-पिता साथ-साथ बाहर को दौड़े, देखा लोग भाग रहे हैं और चिल्ला रहे हैं, “मंदिर के अन्दर भागो, नहीं तो बचोगे नहीं.”
सैलाब की ख़बर मिलते ही लोग मंदिर में शरण लेने भाग रहे थे. देवकी रानी भी अपनी पड़ोसी के साथ मंदिर की ओर भागीं. मंदिर पहुँचने के बाद जब उन्होंने पलटकर देखा तो उन्हें माँ-बाप कहीं नज़र नहीं आ रहे थे.
बदहवास देवकी ने उन्हें खोजने की जो भी कोशिश की वो नाक़ामयाब रही. वे उस कई फ़ुट ऊँचे सैलाब में बह चुके थे. देवकी का सहारा उस सैलाब की भेंट चढ़ गया.
इसी दौरान पीछे से किसी की आवाज़ आई, “हे भगवान, क्यों बुलाया था यहाँ.”
‘नाता टूट गया’
राजस्थान के बाड़मेर के पास की देवकी रानी हिंदी नहीं बोल पाती हैं और गमों के पहाड़ से दबीं उनके पास कहने के लिए कुछ है भी नहीं.
देवकी की ये आपबीती उनके साथ बस में मौजूद एक और महिला यात्री ने मुझे बताई. सवालों का जवाब देवकी ने अपनी भाषा में उन्हीं सहयात्री को दिया.
उन्होंने कहा, “उस रात भगवान से मेरा नाता टूट गया. क्या सोच के गए थे और क्या हो गया.”
देवकी रानी के लिए दुनिया मानो खत्म हो चुकी है. वो कहती हैं, “अब मेरे लिए दुनिया में कुछ भी नहीं बचा है.”
राजस्थान से बद्रीनाथ और केदारनाथ की यात्रा पर उनकी बस में कुल 42 लोग आए थे.
जब केदारनाथ में ये हादसा हुआ तब उनकी बस गौरीकुंड के पास खड़ी थी. उसके बाद से क्लिक करें ड्राइवर का भी कोई पता नहीं है.
‘चमत्कार ने बचाया’
32 यात्री ही अब तक ऋषिकेश में राजस्थान सरकार के सहायता कैम्प में पहुँच सके हैं.
यहाँ पर उनकी प्रदेश सरकार ने बस के ज़रिए इन सभी बचे हुए यात्रियों को घर पहुंचाने का बीड़ा उठाया है.
इनमें से कई तो ऐसे हैं जो यात्रा को अपने लिए चमत्कार से कम नहीं मानते.
ज़ाहिर है वे एक ऐसे सैलाब से निकल कर आए हैं जहाँ से वापस पहुंचना बहुत मुश्किल था.
लेकिन देवकी रानी जैसे भी तमाम हैं जिन्हें अब ज़िन्दगी में अँधेरे के सिवाय कुछ नज़र नहीं आ रहा.
देहरादून। उत्तराखंड में लोगों की मदद के लिये उड़ान भरने वाले हेलीकॉप्टरों में से एक एमआई-17 मंगलवार की दोपहर क्रैश हो गया। इस विमान में 19 लोग सवार थे, जिसमें से सभी की मौत हो गई। पहले इस हादसे में मरने वालों की संख्या 8 बतायी जा रही थी। लेकिन बाद में वायुसेना ने 19 मौतों की पुष्टि की। हादसे में एनडीआरएफ के एक टूआईसी की भी मौत हो गई है। इस हेलीकॉप्टर में हादसे के समय नौ एनडीआरएफ के, छह आईटीबीपी के और चार आईटीबीपी के लोग इस हेलीकॉप्टर में मौजूद थे। यह हादसा गौरीकुंड में हुआ। हेलीकॉप्टर केदारनाथ से लौट रहा था। उधर लखनऊ में आपदा में उत्तर प्रदेश के लापता व्यक्तियों के संबंध में सूचना संकलित करने एवं आवश्यक सहायता कार्य के समन्वय के लिए राज्य सरकार ने एक प्रकोष्ठ का गठन किया है और गृह विभाग के सांप्रदायिकता नियंत्रण प्रकोष्ठ को तात्कालिक प्रभाव से यह दायित्व सौंपा है।उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव (गृह) आऱ एम़ श्रीवास्तव ने मंगलवार को संवाददाताओं को बताया कि अशोक कुमार सिंह को सांप्रदायिकता नियंत्रण प्रकोष्ठ का विशेष कार्याधिकारी बनाया गया है।
उन्होंने बताया कि यह प्रकोष्ठ राज्य स्तर पर लापता व्यक्तियों के बारे में प्राप्त सूचना संकलित कर विवरण (डाटाबेस) तैयार करेगा और उसका सत्यापन संबंधित जिलाधिकारी से कराएगा, ताकि किसी व्यक्ति द्वारा पूछे जाने पर प्रकोष्ठ द्वारा लापता व्यक्ति के बारे में उपलब्ध सूचना के आधार पर जानकारी दी जा सके। यह प्रकोष्ठ उत्तराखंड राज्य से समन्वय भी करेगा। श्रीवास्तव ने बताया कि जिला स्तर पर लापता व्यक्तियों के संबंध में सूचना संकलन, सत्यापन, समन्वय व सहायता कार्य जिलाधिकारी द्वारा अपने अधीन कार्यरत ‘जिला पारपत्र प्रकोष्ठ’ को उत्तरदायी बनाते हुए किया जाएगा। प्रकोष्ठ के प्रभारी अधिकारी का नाम, पदनाम, प्रकोष्ठ का विवरण, फोन, फैक्स और ई-मेल आदि विवरण जनसामान्य की जानकारी के लिए प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से तत्काल प्रचारित-प्रसारित कराया जाएगा। जिलाधिकारी लापता व्यक्तियों के संबंध में प्राप्त सूचना का सम्यक डाटाबेस तैयार कराएंगे तथा सत्यापित सूचनाओं का विवरण प्रतिदिन आगामी 15 दिनों तक राज्यस्तरीय प्रकोष्ठ को उपलब्ध कराएंगे। उन्होंने कहा कि जिलों में नदी और नहर से बरामद होने वाले किसी शव के बारे में यदि कोई परिजन दावा नहीं करेगा तो ऐसे शव के फोटाग्राफ सहित अन्य उपलब्ध विवरण संबंधित जिलाधिकारी राज्यस्तरीय प्रकोष्ठ को उपलब्ध कराएंगे।
उदयपुर। पड़ौसी राज्य गुजरात से करीब डेढ़ सौ लड़कियां शहर में आई हुई हैं, जो महंगी कारों के आगे खड़ी होकर भीख मांगती नजर आ रही है, लेकिन वास्तव में इनका पेशा वेश्यावृत्ति का है, जब कोई व्यक्ति इन लड़कियों को साथ चलने का ऑफर देता है, तो ये तैयार हो जाती है। दिखने में बार बालाओं जैसी ये लड़कियां शहर के कई इलाकों में देखी जा रही है।
बेदला की नई पुलिया पर सोमवार को जब इन लड़कियों का एक समूह रिपोर्टर की कार के सामने आया, तो करीब १० से ज्यादा लड़कियां जींस-पेंट पहने सड़क पर खड़ी हो गई। इन लड़कियों ने कहा कि वे काफी गरीब है और भूखमरी के कारण गुजरात से पलायन कर यहां आई हैं। ये लड़कियां भीख में भी सौ या दो सौ रुपए से कम नहीं मांगती है। जब क्रमददगारञ्ज रिपोर्टर ने भीख देने से इनकार कर दिया, तो ये लड़कियां गंदे इशारे करने लगी और अच्छे रूपए देने पर साथ चलने की पेशकश भी कर दी। बातचीत में इन लड़कियों ने बताया कि ये अहमदाबाद के पास के ग्रामीण इलाके से हैं और संख्या में करीब डेढ़ सौ हैं।
जब इन लड़कियों से और बातचीत की गई, तो बोलचाल से ये लड़कियां मुंबई में रही हुई प्रतीत हुई है, जिससे लगता है कि इन लड़कियां का पेशा बार में डांस करने के साथ ही जिस्मफरोशी का है। पता चला है कि शहर के बाहरी इलाकों बलीचा, प्रतापनगर, भुवाणा, बेदला, बडग़ांव सहित आसपास के इलाकों में ये लड़कियों इन दिनों चार पहिया वाहनों को रोककर इस तरह से भीख मांगने के बहाने जिस्मफरोशी का धंधा कर रही है। :मुझे इस प्रकार की कोई जानकारी नहीं है। इस मामले की जांच की जाएगी। -हरिप्रसाद शर्मा, एसपी उदयपुर
उदयपुर। सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में अग्रिम जमानत पर चल रहे राज्य विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष और पूर्व गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया की जमानत अवधि बढ़ाने को लेकर मुंबई के सेशन कोर्ट में मंगलवार को बहस पूरी हो गई।
भाजपा सह जिला के मीडिया प्रभारी चंचल अग्रवाल ने बताया कि कटारिया की जमानत अवधि को लेकर कोर्ट में बहस हुई जिसमें कटारिया के वकील ने कटारिया का पक्ष रखते हुए जमानत अवधि को बढ़ाने की मांग की। हालांकि कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैसला 27 जून तक के लिए सुरक्षित रख लिया।
गौरतलब है कि सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में सीबीआई ने भाजपा नेता गुलाबचंद कटारिया को आरोपी बनाया है। इससे पहले कटारिया 23 जून तक जमानत पर थे। इसके बाद 24 जून को भी सेशन कोर्ट में मामले की सुनवाई होनी थी जो कि किन्हीं कारणों से नहीं हो सकी।
उदयपुर।एक और तो गर्मी और उमस से लोग परेशां ऊपर से आपातकालीन रख रखाव
को लेकर शहर भर में बिजली दिन भर बंद रहने से घर और कार्यालयों में काम ठप्प रहा तो घरों में लोग गर्मी से परेशां रहे ।गौरतलब है कि लाइनों की मरम्मत और रखरखाव को लेकर मंगलवार को सुबह 9 बजे 10.30 और दोपहर 2 से 5 बजे तक लाइट बंद रखने का निर्णय विभाग ने लिया।
पानी चढ़ाना मुश्किल हो गया: बिजली के बंद रहते मोती मगरी, पंचवटी, दैत्य मगरी, हजारेश्वर कॉलोनी, प्रतापनगर, विश्वविद्यालय मार्ग, खरोल कॉलोनी क्षेत्रों में लोगों ने परेशानी बताई। इन क्षेत्रों के अधिकतर भवनों में बिजली के अभाव में पानी की मोटर नहीं चल पाई। ऐसे में कुछ लोगों ने टैंकर का सहारा लिया।
कार्यालय, दुकान, शोरूम में दिनभर चला जेनरेटर: शहर के प्रमुख कार्यालयों में जहां पब्लिक डीलिंग रहती है। उनमें नगर विकास प्रन्यास, आबकारी विभाग, इनकम टैक्स में सुबह से शाम तक जेनरेटर चला। शहर के बड़े शोरूम सहित दुकानों में भी जेनरेटर चलाना पड़ा।
ऑनलाइन आवेदन में परेशानी: बिजली बंद का प्रभाव मीरा कन्या महाविद्यालय सहित सरकारी महाविद्यालयों में प्रवेश के लिए ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया में देखने को मिला।
बिजली के बंद रहते एमजी कॉलेज में फर्स्ट ईयर, सेकेंड ईयर और थर्ड ईयर में प्रवेश लेने वाली छात्राओं को ऑनलाइन आवेदन के लिए शहर में भटकना पड़ा। कॉलेज में बिजली के बंद होने से छात्र छात्राएं ऑनलाइन प्रवेश के लिए साइबर कैफे तलाशते रहे।
इन क्षेत्रों में बिजली ठप रही: 132 केवी जीएसएस सुखेर से संबंधित क्षेत्र मधुबन, भुवाणा गांव, बडग़ांव, हॉस्पिटल, चित्रकूट नगर, पोलोग्राउंड, फील्ड क्लब, हजारेश्वर, सुखाडिय़ा सर्कल, दैत्य मगरी, मोती मगरी, यूआईटी, सर्किट हाउस, डाक बंगला, पंचवटी, न्यू फतहपुरा, चेतक सर्किल, हाथीपोल रोड, लोहा बाजार, शिक्षा भवन, चमनपुरा, गुमानियावाला, सरदारपुरा, सहेली नगर, शोभागपुरा, पुलां क्षेत्र, मॉडल कॉम्पलेक्स, अहिंसापुरी, रेलवे ट्रेनिंग स्कूल, बेदला, समता नगर, महावीर कॉलोनी, चिकलवास, देवाली, खारोल कॉलोनी, वीबीआरआई, पंचरत्न कॉम्प्लेक्स, नवरत्न कॉम्पलेक्स, साइफन, आदिनाथ नगर, बोहरावाड़ी, मंडी, अश्वनी बाजार, होटल राज-दर्शन, भोईवाड़ा,घंटाघर, मोचीवाड़ा, धोलीबावड़ी, रूपनगर कच्ची बस्ती, दिल्ली पब्लिक स्कूल, यूथ हॉस्टल, खेल गांव एवं संबंधित क्षेत्र।
132 केवी जीएसएस प्रतापनगर से संबंधित क्षेत्र: प्रतापनगर, आईटी पार्क, सेक्टर-4 से संबंधित क्षेत्र, मादड़ी का कुछ भाग,आकाशवाणी क्षेत्र, सुंदरवास, खेमपुरा, ढीकली, ट्रांसपोर्ट नगर, बेड़वास, विश्वविद्यालय कैंपस, बोहरा गणेश जी, आयड़, न्यू केशव नगर, आरटीओ, जयश्री कॉलोनी, पुरोहितों की मादड़ी, यूसीसीआई, मादड़ी रोड नंबर 12, यूआईटी कॉलोनी, काला भाटा, सेक्टर 3, 4,5 व 6, पानेरियों की मादड़ी, नौ खा एवं संबंधित क्षेत्र।
उक्त कार्य के तहत उदयपुर सिटी का क्षेत्र और सुखेर, अंबेरी, डबोक, घनोली, बिछड़ी, साकरोदा, झरनों की सराय, कुराबड़, बंबोरा, जगत, गुडली से संबंधित क्षेत्र एवं 132 केवी गोगुंदा एवं झाड़ोल से संबंधित आंशिक क्षेत्र में भी बिजली बंद रहने से कामकाज प्रभावित रहा।
उदयपुर। राजकीय मीरा कन्या महाविद्यालय में प्रथम वर्ष में ऑनलाइन प्रवेश की अंतिम तिथि 21 जून से बढ़ाकर 26 जून कर दी गई है। कॉलेज निदेशालय ने विद्यार्थियों के हित को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया है।
जानकारी के मुताबिक विश्वविद्यालयों द्वारा अब तक द्वितीय एवं तृतीय वर्ष के परीक्षा परिणाम जारी नहीं किए गए हैं, इसके बावजूद कॉलेज शिक्षा निदेशालय ने अगली कक्षाओं के लिए ऑनलाइन आवेदन करने की छूट दी है।
जुलाई के पहले सप्ताह से कक्षाएं नियमित प्रारंभ हो सके, इस दिशा में द्वितीय वर्ष व तृतीय वर्ष की छात्राओं को अपने प्रथम वर्ष की अंक तालिका के आधार पर प्रवेश दिया जा रहा है।
कॉलेज प्रशासन से मिली जानकारी के अनुसार द्वितीय एवं तृतीय वर्ष की नियमित छात्राओं के लिए प्रवेश आवेदन की अंतिम तिथि 29 जून कर दी गई है।
प्रथम वर्ष में प्रवेश 26 जून तक
तकनीकी नोडल अधिकारी डॉ. अजय कुमार चौधरी ने बताया कि महाविद्यालय में प्रथम वर्ष के प्रवेश आवेदन की अंतिम तिथि बढ़ाकर 26 जून कर दी गई है। उन्होंने इसके लिए छात्राओं को ऑनलाइन प्रवेश करने में आ रही परेशानी और बार-बार बिजली आपूर्ति बंद रहने को कारण बताया।
उदयपुर,मोहन ललाल सुखाडिया वि.वि. में पीछे १५ से २० वर्ष से संविदा पर सेवा देने वाले शैक्षिणिक व् गेर शैक्षणिक कर्मचारी व् चतुर्थ श्रेणी कर्म चारियों को सेवा से हटाये जाने पर विश्व विद्यालय के सहायक व् शैक्षणिक कर्म चारियों ने मंगल वार को वि.वि. के प्रशाशनिक भवन के गेट पर धरना प्रदर्शन किया ।
सुविवि कर्मचारी संघ के अध्यक्ष भरत व्यास ने कहा कि लंबे समय से विश्वविद्यालय में कनिष्ठ लिपिक और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की सेवाओं से हटाया जाना अनुचित है। पंद्रह से बीस वर्षों से कार्यरत कर्मचारी जिनके परिवार का भरण पोषण विश्वविद्यालय की मामूली पगार से चल रहा है उसे सेवा से हटाया जाना अमानवीय कृत्य है।
सरकार एक ओर जहां लंबे समय से संविदा पर कार्यरत कर्मचारियों को नियमित कर रही है वहीं विवि प्रशासन इस दिशा में लंबे समय तक सेवा देने वाले कर्मचारियों को बेदखल करने पर तुला है।
कर्मचारी संघ की महामंत्री हंसा हिंगड़ ने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन को चाहिए कि ऐसे कर्मचारियों को हटाए जाने के बजाए प्राथमिकता के आधार पर नियमित किया जाए।
आंदोलन की राह पर उतरे चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों ने कहा कि अब हम कहां जाए? विवि से बेदखल किए गए सहायक शैक्षणेत्तर कर्मचारी और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के समर्थन में स्थायी कर्मचारियों ने आंदोलन में भाग लेकर कामकाज का बहिष्कार किया।
महापोर रजनी डांगी हंगामे और विरोध को नज़र अंदाज़ कर ऐसे माहोल में राष्ट्र गान करते हुए ।
उदयपुर मोका था नगर निगम में बोर्ड की बैठक का चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष पुरे सदन ने राष्ट्र गान का जो अपमान किया की मनो राष्ट्र का सम्मान मन जाने वाला हमारा गीत जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों के बिच अपमानित हो कर रह गया और ये जनता के चुने हुए प्रतिनिधि उसकी खिल्ली उड़ाते हुए चल दिए। नगर निगम में बोर्ड की बैठक के दौरान समितियों की घोषणा के बाद आधे से ज्यादा पार्षदों ने हंगामा शुरू कर दिया इसी बिच पार्षद पारस सिंघवी ने समिति प्रस्ताव पास करने का एलान किया और इसी हंगामे के बिच मेयर रजनी डांगी ने राष्ट्रगान शुरू कर दिया पुरे सदन में हो हल्ला हो रहा था सब लोग जम कर हंगामा कर रहे थे, और मेयर अपनी जिद्द पर अड़ी हुई राष्ट्रगान कर रही थी, सदन में मोजूद ५३ पार्षदों में से एक ने भी राष्ट्रगान के सम्मान में चुप रहना या सावधान खड़ा होना मुनासिब नहीं समझा। जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों ने भरे सदन में राष्ट्रगान को एक मजाक बना कर रख दिया
नदियों के फ्लड वे में बने गाँव और नगर बाढ़ में बह गए.
आख़िर उत्तराखंड में इतनी सारी बस्तियाँ, पुल और सड़कें देखते ही देखते क्यों उफनती हुई नदियों और टूटते हुए पहाड़ों के वेग में बह गईं?
जिस क्षेत्र में भूस्खलन और बादल फटने जैसी घटनाएँ होती रही हैं, वहाँ इस बार इतनी भीषण तबाही क्यों हुई?
उत्तराखंड की त्रासद घटनाएँ मूलतः प्राकृतिक थीं. अति-वृष्टि, भूस्खलन और बाढ़ का होना प्राकृतिक है. लेकिन इनसे होने वाला क्लिक करें जान-माल का नुकसान मानव-निर्मित हैं.
अंधाधुंध निर्माण की अनुमति देने के लिए सरकार ज़िम्मेदार है. वो अपनी आलोचना करने वाले विशेषज्ञों की बात नहीं सुनती. यहाँ तक कि जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के वैज्ञानिकों की भी अच्छी-अच्छी राय पर सरकार अमल नहीं कर रही है.
वैज्ञानिक नज़रिए से समझने की कोशिश करें तो अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इस बार नदियाँ इतनी कुपित क्यों हुईं.
नदी घाटी काफी चौड़ी होती है. बाढ़ग्रस्त नदी के रास्ते को फ्लड वे (वाहिका) कहते हैं. यदि नदी में सौ साल में एक बार भी बाढ़ आई हो तो उसके उस मार्ग को भी फ्लड वे माना जाता है. इस रास्ते में कभी भी बाढ़ आ सकती है.
लेकिन क्लिक करें इस छूटी हुई ज़मीन पर निर्माण कर दिया जाए तो ख़तरा हमेशा बना रहता है.
नदियों का पथ
नदियों के फ्लड वे में बने गाँव और नगर बाढ़ में बह गए.
केदारनाथ से निकलने वाली मंदाकिनी नदी के दो फ्लड वे हैं. कई दशकों से मंदाकिनी सिर्फ पूर्वी वाहिका में बह रही थी. लोगों को लगा कि अब मंदाकिनी बस एक धारा में बहती रहेगी. जब मंदाकिनी में बाढ़ आई तो वह अपनी पुराने पथ यानी पश्चिमी वाहिका में भी बढ़ी. जिससे उसके रास्ते में बनाए गए सभी निर्माण बह गए.
क्लिक करें केदारनाथ मंदिर इस लिए बच गया क्योंकि ये मंदाकिनी की पूर्वी और पश्चिमी पथ के बीच की जगह में बहुत साल पहले ग्लेशियर द्वारा छोड़ी गई एक भारी चट्टान के आगे बना था.
नदी के फ्लड वे के बीच मलबे से बने स्थान को वेदिका या टैरेस कहते हैं. पहाड़ी ढाल से आने वाले नाले मलबा लाते हैं. हजारों साल से ये नाले ऐसा करते रहे हैं.
पुराने गाँव ढालों पर बने होते थे. पहले के किसान वेदिकाओं में घर नहीं बनाते थे. वे इस क्षेत्र पर सिर्फ खेती करते थे. लेकिन अब इस वेदिका क्षेत्र में नगर, गाँव, संस्थान, होटल इत्यादि बना दिए गए हैं.
यदि आप नदी के स्वाभाविक, प्राकृतिक पथ पर निर्माण करेंगे तो नदी के रास्ते में हुए इस अतिक्रमण को हटाने के बाढ़ अपना काम करेगी ही. यदि हम नदी के फ्लड वे के किनारे सड़कें बनाएँगे तो वे बहेंगे ही.
विनाशकारी मॉडल
पहाडं में सड़कें बनाने के ग़लत तरीके विनाश को दावत दे रहे हैं.
मैं इस क्षेत्र में होने वाली सड़कों के नुकसान के बारे में भी बात करना चाहता हूँ.
पर्यटकों के लिए, तीर्थ करने के लिए या फिर इन क्षेत्रों में पहुँचने के लिए सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है. ये सड़कें ऐसे क्षेत्र में बनाई जा रही हैं जहां दरारें होने के कारण भू-स्खलन होते रहते हैं.
इंजीनियरों को चाहिए था कि वे ऊपर की तरफ़ से चट्टानों को काटकर सड़कें बनाते. चट्टानें काटकर सड़कें बनाना आसान नहीं होता. यह काफी महँगा भी होता है. भू-स्खलन के मलबे को काटकर सड़कें बनाना आसान और सस्ता होता है. इसलिए तीर्थ स्थानों को जाने वाली सड़कें इन्हीं मलबों पर बनी हैं.
ये मलबे अंदर से पहले से ही कच्चे थे. ये राख, कंकड़-पत्थर, मिट्टी, बालू इत्यादि से बने होते हैं. ये अंदर से ठोस नहीं होते. काटने के कारण ये मलबे और ज्यादा अस्थिर हो गए हैं.
इसके अलावा यह भी दुर्भाग्य की बात है कि इंजीनियरों ने इन सड़कों को बनाते समय बरसात के पानी की निकासी के लिए समुचित उपाय नहीं किया. उन्हें नालियों का जाल बिछाना चाहिए था और जो नालियाँ पहले से बनी हुई हैं उन्हें साफ रखना चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं होता.
हिमालय अध्ययन के अपने पैंतालिस साल के अनुभव में मैंने आज तक भू-स्खलन के क्षेत्रों में नालियाँ बनते या पहले के अच्छे इंजीनियरों की बनाई नालियों की सफाई होते नहीं देखा है. नालियों के अभाव में बरसात का पानी धरती के अंदर जाकर मलबों को कमजोर करता है. मलबों के कमजोर होने से बार-बार भू-स्खलन होते रहते हैं.
इन क्षेत्रों में जल निकास के लिए रपट्टा (काज़ वे) या कलवर्ट (छोटे-छोटे छेद) बनाए जाते हैं. मलबे के कारण ये कलवर्ट बंद हो जाते हैं. नाले का पानी निकल नहीं पाता. इंजीनियरों को कलवर्ट की जगह पुल बनने चाहिए जिससे बरसात का पानी अपने मलबे के साथ स्वत्रंता के साथ बह सके.
हिमालयी क्रोध
भू-वैज्ञानिकों के अनुसार नया पर्वत होने के हिमालय अभी भी बढ़ रहा है
पर्यटकों के कारण दुर्गम इलाकों में होटल इत्यादि बना लिए गए हैं. ये सभी निर्माण समतल भूमि पर बने होते है जो मलबों से बनी होती है. नाले से आए मलबे पर मकानों का गिरना तय था.
हिमालय और आल्प्स जैसे बड़े-बड़े पहाड़ भूगर्भीय हलचलों (टैक्टोनिक मूवमेंट) से बनते हैं. हिमालय एक अपेक्षाकृत नया पहाड़ है और अभी भी उसकी ऊँचाई बढ़ने की प्रक्रिया में है.
हिमालय अपने वर्तमान वृहद् स्वरूप में करीब दो करोड़ वर्ष पहले बना है. भू-विज्ञान की दृष्टि से किसी पहाड़ के बनने के लिए यह समय बहुत कम है. हिमालय अब भी उभर रहा है, उठ रहा है यानी अब भी वो हरकतें जारी हैं जिनके कारण हिमालय का जन्म हुआ था.
हिमालय के इस क्षेत्र को ग्रेट हिमालयन रेंज या वृहद् हिमालय कहते हैं. संस्कृत में इसे हिमाद्रि कहते हैं यानी सदा हिमाच्छादित रहने वाली पर्वत श्रेणियाँ. इस क्षेत्र में हजारों-लाखों सालों से ऐसी घटनाएँ हो रही हैं. प्राकृतिक आपदाएँ कम या अधिक परिमाण में इस क्षेत्र में आती ही रही हैं.
केदारनाथ, चौखम्बा या बद्रीनाथ, त्रिशूल, नन्दादेवी, पंचचूली इत्यादि श्रेणियाँ इसी वृहद् हिमालय की श्रेणियाँ हैं. इन श्रेणियों के निचले भाग में, करीब-करीब तलहटी में कई लम्बी-लम्बी झुकी हुई दरारें हैं. जिन दरारों का झुकाव 45 डिग्री से कम होता है उन्हें झुकी हुई दरार कहा जाता है.
कमज़ोर चट्टानें
कमजोर चट्टानें बाढ़ में सबसे पहले बहती हैं और भारी नुकसान करती हैं.
कमजोर चट्टानें बाढ़ में सबसे पहले बहती हैं और भारी नुकसान करती हैं.
वैज्ञानिक इन दरारों को थ्रस्ट कहते हैं. इनमें से सबसे मुख्य दरार को भू-वैज्ञानिक मेन सेंट्रल थ्रस्ट कहते हैं. इन श्रेणियों की तलहटी में इन दरारों के समानांतर और उससे जुड़ी हुई ढेर सारी थ्रस्ट हैं.
इन दरारों में पहले भी कई बार बड़े पैमाने पर हरकतें हुईं थी. धरती सरकी थी, खिसकी थी, फिसली थीं, आगे बढ़ी थी, विस्थापित हुई थी. परिणामस्वरूप इस पट्टी की सारी चट्टानें कटी-फटी, टूटी-फूटी, जीर्ण-शीर्ण, चूर्ण-विचूर्ण हो गईं हैं. दूसरों शब्दों में कहें तो ये चट्टानें बेहद कमजोर हो गई हैं.
इसीलिए बारिश के छोटे-छोटे वार से भी ये चट्टाने टूटने लगती हैं, बहने लगती हैं. और यदि भारी बारिश हो जाए तो बरसात का पानी उसका बहुत सा हिस्सा बहा ले जाता है. कभी-कभी तो यह चट्टानों के आधार को ही बहा ले जाता है.
भारी जल बहाव में इन चट्टानों का बहुत बड़ा अंश धरती के भीतर समा जाता है और धरती के भीतर जाकर भीतरघात करता है. धरती को अंदर से नुकसान पहुँचाता है.
इसके अलावा इन दरारों के हलचल का एक और खास कारण है. भारतीय प्रायद्वीप उत्तर की ओर साढ़े पांच सेंटीमीटर प्रति वर्ष की रफ्तार से सरक रहा है यानी हिमालय को दबा रहा है. धरती द्वारा दबाए जाने पर हिमालय की दरारों और भ्रंशों में हरकतें होना स्वाभाविक है.