डायन बताकर वृद्धा पर कूंट से हमला

imagesउदयपुर। जावर माइंस थाना क्षेत्र के बोवस फलां डाबला में एक वृद्धा को डायन बताते हुए पड़ौसी ने कूंट से हमला कर दिया। इससे वृद्धा की कलाई और एक कान कट गया। यह घटना सोमवार सुबह हुई। वारदात के बाद से आरोपी फरार है, जिसको पुलिस तलाश कर रही हैै।

पुलिस के अनुसार बोवस फलां डाबला निवासी संतू (४८) पत्नी जीवा मीणा सोमवार सुबह मकान के पीछे बाड़े में काम कर रही थी।

इसी दौरान उसका पड़ोसी भैरा मीणा पुत्र होमा मीणा कूंट लेकर आया और संतू को डायन बताते हुए उस पर कूंट से हमलाकर दिया। उसने संतू के हाथ, गले और शरीर के अन्य हिस्सों पर वार किए। इससे संतू के एक हाथ की कलाई और कान कट गए। वारदात के बाद आरोपी भैरा मीणा वहां से फरार हो गया। इस संबंध में संतू के पति की तरफ से जावर माइंस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई है। संतू को एमबी अस्पताल में प्राथमिक उपचार के बाद छुट्टी दे दी गई। पुलिस आरोपी की तलाश कर रही है।

बहनों के लिए ‘भाई’ से बढ़कर ‘दूजा’ न कोई

photo (11) (1)उदयपुर। दीपावली त्योहार की कड़ी में मंगलवार को खास तौर पर भाई दूज मनाई गई। भाई बहन के स्नेह के प्रतीक भाई दूज पर अधिकांश घरों में उत्साह का माहौल बना रहा। इस खास दिन के मौके पर बहनों ने भाई को उपहार देकर भाई दूज की शुभ कामनाएं दी।

पांच दिवसीय दीपोत्सव के तहत पहले दिन धनतेरस, दूसरे दिन रूप चौदस, तीसरे दिन दीपावली, चौथे दिन अन्नकूट और पांचवें दिन भाई दूज मनाई जा रही है। इस मौके पर अधिकांश भाई, अपनी बहनों के घर पहुंचे। जहां बहनों ने उनका मुंह मीठा कराया, आरती उतारी और उनके सम्मान में उन्हें उपहार भेंट किए। कई घरों में तो रक्षा बंधन की तरह कलाई पर स्नेह का धागा भी बांधा गया। भाई दूज मनाने का दौर सुबह से शुरू हो गया। ऐसे में हर घर में उत्साह का माहौल रहा।

यह फर्क है ‘राखी’ और ‘भाई दूज’ में :

रक्षा बंधन और भाई दूज। दोनों ही भाई-बहन के स्नेह का पर्व है। रक्षा बंधन पर शादी शुदा बहनें पीहर (भाइयों के घर) जाती है। कलाई पर राखी बांधी जाती है। बदले में भाई, अपनी बहनों को उपहार देकर रक्षा वचन देता है। भाई दूज में भाई बहन के घर जाता है, जहां पर पूजा अर्चना के बाद बहन भाई को उपहार देती है।

महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन

 

Photo1उदयपुर,दीपावली के शुभ अवसर पर यहां भट्टियानी चौहट्टा स्थित महालक्ष्मीजी के मंदिर में दर्शनार्थ सपरिवार पहुंचे महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर के अध्यक्ष एवं प्रबंध न्यासी श्रीजी अरविन्द सिंह मेवाड़।

 

लेक सिटी में पर्यटकों कि बहार

DSC_0026उदयपुर. दिवाली के साथ ही लेकसिटी में गुजराती पर्यटकों कि बहार आ गयी है। दिवाली के चलते विदेशी पर्यटकों कि तादाद भी बड़ी है| लेकिन देसी गुजराती पर्यटकों से शहर इन दिनों गुलज़ार हो रहा है । सभी पर्यटक स्थल पर पर्यटकों कि खासी भीड़ नज़र आ रही है । इस खासी भीड़ के चलते । शहर कि सभी होटलें लगभग फुल चल रही है।

DSC_0036 DSC_0017 DSC_0033दिवाली के साथ ही गुजारत में हफ्ते भर कि छुट्टियां शुरू हो जाती है लेकसिटी में इन पर्यटकों कि बहार शुरू हो जाती है। फतहसागर पर बोटिंग और स्पोर्ट्स बोट के लिए तो सुबह से लाइन लगना शुरू हो जाती है। सहेलियों की बाड़ी दूध तलाई, रोप वे, सिटी पैलेस में पर्यटकों की भीड़ सुबह से लगी हुई थी। इस बार सारी झीलें लबालब होने से पर्यटकों के लिए लेकसिटी खासा आकर्षण है। शहर की सड़कों की हालत यह है कि जो गाडिय़ां दौड़ रही हैं, उनमें से सबसे ज्यादा गुजरात नंबर प्लेट वाली हैं। और इन वाहनों कि वजह से गुलाब बाग़ रोड, जगदीश चोक पर दिन से जाम की स्थिति बन रही है। पर्यटकों की भारी तदाद के चलते पर्यटन क्षेत्र से जुड़े हर व्यवसाय के लोगों के चेहरे पर ख़ुशी कि लहर है ।

आज से प्रत्याशी नामांकन पात्र दाखिल कर सकेगे

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अधिसूचना के साथ ही शुरू हो गया नाम निर्देशन पत्रा दाखिल करने की प्रक्रिया
उदयपुर, विधानसभा आमचुनाव के तहत 14 वीं विधानसभा चुनाव के लिए अधिसूचना मंगलवार को जारी की गई। अभ्यर्थियों द्वारा 5 से 12 नवम्बर तक प्रातः11 बजे से अपराह्न 3 बजे तक (कार्य दिवसों में) संबंधित विधानसभा क्षेत्रा के रिटर्निंग अधिकारी को नाम निर्देशन पत्रा प्रस्तुत किये जा सकते है।
जिला निर्वाचन अधिकारी ने बताया कि जारी कार्यक्रम के अनुसार 13 नवम्बर को प्रातः 11 बजे से नाम निर्देशन पत्रों की संवीक्षा की जायेगी। अभ्यर्थी 16 नवम्बर को अपराह्न 3 बजे तक नाम वापस ले सकेंगे तथा इसी दिन अपरान्ह 3 बजे पश्चात उम्मीद्वारों को विधानसभा स्तर पर चुनाव चिन्हों का आंवटन किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि यदि आवश्यक हुआ तो मतदान 1 दिसम्बर (रविवार) को प्रातः 8 से सायं 5 बजे तक सम्पन्न होगा। मतगणना 8 दिसम्बर को जिला मुख्यालय पर प्रातः 8 बजे से शुरू होगी।उन्होंने बताया कि 10 नवम्बर को रविवार का सार्वजनिक अवकाश होने के कारण अभयर्थियों द्वारा नामांकन पत्रा दाखिल नहीं किया जा सकेगे और ना ही रिटर्निंग अधिकारी द्वारा स्वीकार किये जा सकेगे।

दीवाली कि रात दुल्हन बनी लेकसिटी

DSC_0653उदयपुर। सुख समृद्धि का त्यौहार दीपावली पर्व शहर में पूरी धूम धाम और खुशियों से मनाया गया। पूरा शहर दुल्हन कि तरह सजाया गया बाज़ारों की रोनक अपने पुरे योवन पर रही वहीँ घरों में रौशनी और दीप जला कर दीपावली का दिल खोल कर स्वागत किया गया। सभी समाजों ने एक दूसरे को दिवाली कि बधाई दी। महालक्ष्मी मंदिर में लक्ष्मी जी के दर्शन के लिए अल सुबह से लम्बी लाइने लगी रही। घरों में प्रतिष्ठानों पर लक्ष्मी जी कि पूजा अर्चना कि गयी । मिठाइयों और मिलने मिलाने का दौर सुबह से ही चल पड़ा। बाज़ारों कि रौशनी देखने के लिए सारा शहर उमड़ पड़ा ।

शहर बाज़ार सजे दुल्हन कि तरह :

दीपावली पर शहर के बाज़ार घर प्रतिष्ठान रौशनी से लद कद नज़र आये। शहर के अन्दर और बहार के सभी बाज़ारों में सजावट कि गयी चहुओर रोशनी अँधेरे को मिटाती रौशनी का राज रहा। दीवाली कि रात को रौशनी देखने के लिए सारा शहर बाज़ारों में उमड़ पड़ा बापूबाजार, सूरजपोल, भटियाणी चोहट्टा में खासी भीड़ नज़र आयी शहर के बाहर के बाज़ार, हिरन मगरी, सविना , फतहपुरा, सविना आदि जगह भी बाज़ारों में अच्छी सजावट कि गयी। चेम्बर ऑफ कॉमर्स उदयपुर डिवीजन की ओर से बाजार सजावट प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया। बाजारों को जहां संगठनों की ओर से सजाया गया था वहीं अपने अपने संस्थानों को भी सजाने में व्यापारियों ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।

दिन भर रहा लक्ष्मी की पूजा के नाम :

दीवाली के दिन सुबह जल्दी से लोग लक्ष्मी की मान मनव्वल में लग गए। महिलायें पुरुष सुबह जल्दी महालक्ष्मी मंदिर पहुच गए लक्ष्मी मंदिर में सुबह से कतार लगी रही लोग घंटों लाइन में खड़े रह कर लक्ष्मी के दर्शन किये और फूलों कि माला अर्पित कि। लक्ष्मी मंदिर में भी लक्ष्मी का विशेष श्रृंगार किया गया। मंदिर में दर्शन के लिए कतार देर रात तक लगी रही।

लोगों ने अपने घर पर भी लक्ष्मी की पूजा के लिए विशेष आयोजन भी किये। और शाम और दिन के शुभ मुहर्त में पुरे अपने परिवार के साथ प्रतिष्ठानों पर जाकर लक्ष्मी जी की पूजा की।

आतिशी नज़ारों से आसमान रहा रोशन :

दिवाली कि रात आतिशी नज़रों और धमाकों ने आसमान को आबाद रखा । शहर वासियों के लिए नगर निगम ने निगम प्रांगण में आतिशबाजी का विशेष आयोजन रखा गया था। जिसको देखने के लिए शहरवासी उमड़ पड़े आतिशी झूले,झरने रंग बिरंगी आतिशी रौशनी से बनाया गया स्वागत द्वार ख़ास आकर्षण रहा। करीब एक घंटे तक चली इस आतिश बाजी से आसमान में रंग बिरंगे सितारे बिखरते रहे। दूसरी और बच्चों ने अपने अभिभावकों और परिवार जनों के साथ मिल कर घरों के बहार कॉलोनी मोहल्लों में पटाखे चलाये जिसका दौर देर रात तक चलता रहा ।

मनाया खेखरा हुई गोवर्धन पूजा :

सोमवार के दिन खेखरा मनाया गया घरों में गोवर्धन पूजा कि गयी जिसमे गायों, बछड़ों, और बैलों की पूजा की गयी। पशुओं को स्नान करवा कर उनके शरीर पर रंग के थापे लगाये गए। व्यापारिक दृष्टि से कल से नया साल भी माना जाता है| लोगों ने अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान की समृद्धि के लिए एक दूसरे को बधाई दी।

अन्नकूट महोत्सव कि शुरुआत :

खेखरे के साथ ही शहर के विभिन्न मंदिरों में अन्नकूट महोत्सव कि शुरू हो गयी जिसमे भगवान् को विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का भोग चढ़ा गया । इस दिन नाथद्वारा के श्रीनाथ जी मंदिर में अन्नकूट महोत्सव का विशेष आयोजन किया गया। कई दर्शनार्थी इस अन्नकूट महोत्सव आयोजन को देखने के लिए आये। ग्वालों ने गायों के साथ गो क्रीड़ा का आनंद भी लिया ।

वाट्सअप, फेसबुक, मेसेज पर बधाइयों का दौर :

दिवाली कि सुबह से लोगों ने दूर बेठे अपने मित्रों को वाट्सअप मेसेंजर पर तरह तरह के मैसेज और फ़ोटो भेज कर बधाई दी | वाही फेसबुक पर भी बधाइयों से और आतिशी नज़रों के फ़ोटो व् दीयों और लक्ष्मी के वालपेपर लोगों का वाल भरा रहा। दिवाली कि बधाई देने और लेने में हर समाज के लोग एक ही दिखे।

 

आंखों के नीचे काले घेरे से छुटकारा पाने के उपाय – nicc beauty tips

NICC Director, Sweeti Chhabra
NICC Director, Sweeti Chhabra

सौंदर्य समस्याओं में आँखों के काले घेरों की समस्या भी एक प्रमुख और आम समस्या है । आँखों के काले घेरे देखने में बिलकुल भी अछे नहीं लगते तथा अच्छे – भले सौंदर्य को नष्ट कर देते है । यह काले घेरे खराब स्वास्थ्य को दर्शते है । यह प्रायः शरीर में कैल्शियम तथा लोह तत्वों की कमी के कारण तो कभी पुरी नींद न लेने के कारण होते है । इनके समाधान के लिए nicc कि डायरेक्टर स्वीटी छाबड़ा लेकर आयी है कुछ स्पेशल टिप्स —

 

 

 

 

 

 

 

काले घेरे होने के कारण

अपर्याप्त नींद आँखों के काले घेरों की समस्या का प्रमुख कारण है ।
खराब स्वास्थ्य के कारण भी आँखों के नीचे काले घेरे पद जाते है ।
विटामिन ‘ ए ‘ की कमी भी काले घेरे की समस्या को उत्पन्न करती है ।
आँखों को प्रति असावधानी रखना भी इस समस्या को उत्पन्न करती है ।
आँखों का नियमित रूप से व्यायाम न करना भी इस समस्या का कारण बनाता है ।
आनुवांशिक कारणों से भी यह समस्या उत्पन्न हो जाती है ।
अध्ययन करते समय पर्याप्त प्रकाश न होना भी काले घेरों की समस्या का प्रमुख कारण है ।
भावनात्मक दबाव , चिंता और तनाव भी इस समस्या का प्रमुख कारण है ।
अधिक और घटिया कालिती के सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग भी आँखों के काले घेरों की समस्या का प्रमुख कारण है ।

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क्या करें

.प्राप्ती नींद लें ।

.पानी का अधिक सेवन करें ।

.दूध और अंडे का सेवन करें ।

.लाल पके टमाटरों का नियमित सेवन करें ।

.आँखों का नियमित व्यायाम करें ।

.व्यर्थ की चिंता और तनाव से बचे ।

.गाजर के रस का नियमित सेवन करें ।

.शराब व धूमपान के सेवन से बचें ।

.ताजा गुलाब के फूलों से बने गुलकंद का सेवन करें ।

.बादाम और शहद को सामान मात्रा में मिलाएं और आँखों के चारों और इस मिश्रण को लगाकर हलके हाथों से मसाज करें और लगभग आधा घंटे बाद चहरे को धोले ।

.आँखों पर खीर का रस भे लगाएं ।

.आँखों के काले घेरों को साफ कने के लिए आलू के रस को आँखों के चारों ओर लागातार हलके हाथों से मसाज करें ।

क्या वनडे क्रिकेट में गेंदबाज़ ख़तरे में हैं?

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zaheerअंतरराष्ट्रीय वनडे क्रिकेट के शुरुआती दिनों में 50 ओवरों में 250 रनों को भी अच्छा स्कोर माना जाता था.irfan-pathan-2013

पीछा करते वक़्त जब जीत के लिए ज़रूरी रन रेट एक ओवर में छह रन से ऊपर चला जाता तो इसे हासिल करना असंभव मान लिया जाता.
आजकल अधिकतर मैदानों पर तीन सौ रन औसत स्कोर हैं, 350 के स्कोर को अच्छा माना जाता है और जब तक ज़रूरी रन रेट आठ रन प्रति ओवर के अंदर होता है तब तक जीत मुमकिन मानी जाती है.

तो क्या क्रिकेट ने तरक्की की है या फिर उसका उलटा हुआ है? क्या वनडे क्रिकेट में क्लिक करें बल्लेबाजी इतनी अच्छी होती जा रही है कि वनडे के लिए ही ख़तरा बन गई है? क्या खेल के नियम बनाने वालों ने इस फ़ॉर्मेट को ख़त्म करने के बीज बो दिए हैं?

टेस्ट और वनडे

यदि क्लिक करें ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच हुई सिरीज़ में तीन बार सात सौ से ज़्यादा रन बनाए गए तो सिर्फ़ खेल के नियमों पर ही आरोप मत मढ़िए.

हमें यह स्वीकारना होगा कि दो तरह के गेंदबाज़ निराशाजनक रूप से औसत दर्ज़े के हैं.

क्लिक करें भारत के मध्यक्रम को दो बार नेस्तनाबूद करने वाले मिशेल जॉनसन ने भी दो मौक़ों पर बेहद ख़राब गेंदबाज़ी की. कभी बहुत शॉर्ट और कभी बहुत ज़्यादा तेज़ या वाइड.

नागपुर में क्लिक करें ऑस्ट्रेलिया के 350 रनों का पीछे करके भारत के जीतने के एक दिन बाद ही शारज़ाह में पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका के बीच हुए मैच की दोनों पारियों का स्कोर 365 रहा.

इस मैच में वनडे क्रिकेट के नियमों ने छक्कों और चौकों की बौछार नहीं होने दी क्योंकि गेंदबाज़ी जबरदस्त थी.
टेस्ट मैचों को गेंदबाज़ जिताते हैं जबकि वनडे मैचों को बल्लेबाज जिताते हैं. क्रिकेट के इन दो फॉर्मेट में यही बुनियादी फ़र्क है.

वनडे में शुरुआत से ही मौक़े गेंदबाज़ों के ख़िलाफ़ रहे हैं क्योंकि माना जाता रहा है कि दर्शक गेंद को विकेटकीपर के हाथों में जाते देखने के बजाए छक्के-चौकों की बरसात देखने आते हैं.

जब टी-20 क्रिकेट के फॉर्मेट विकसित हुआ तब टेस्ट और फटाफट क्रिकेट के बीच के इस फॉर्मेट के टी-ट्वेंटी जैसा होने की संभावना ज़्यादा थी.

खिलाड़ी फिट

सीमित ओवरों के मैच में टेस्ट क्रिकेट की लय और बहाव की उम्मीद रखना भी अवास्तविक ही है.

हाल ही में भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की गेंदबाज़ों के अप्रासंगिक होने की शिकायत करना न सिर्फ़ इसलिए चौंकाने वाला है कि यह एक बल्लेबाज़ ने की है बल्कि इसलिए भी क्योंकि वनडे क्रिकेट अपने समय की टी-ट्वेंटी थी. लंबे शॉट, तेज रन और अपनी खास तकनीक इसकी विशेषता थी.

दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यह हमेशा से ऐसा ही था.

वनडे क्रिकेट के नए नियमों, जिनमें हर पारी में दो नई गेंदों का इस्तेमाल और घेरे से अधिकतम चार क्षेत्ररक्षकों का बाहर होने शामिल है, ने बड़े स्कोर संभव किए हैं. लेकिन न टीवी शिकायत कर रहा है, न दर्शक शिकायत कर रहे हैं और न ही किसी ने प्रायोजकों की ही कोई शिकायत सुनी है.

भारत और ऑस्ट्रेलिया जब बेंगलुरु में अंतिम वनडे मैच खेलने उतरीं तो दोनों ही टीमें दो-दो मैच जीतकर बराबरी पर थीं. किसी ने इससे ज़्यादा क्या माँगा होता?

वनडे क्रिकेट से न सिर्फ़ नतीज़े देने की उम्मीद की जाती है बल्कि यह भी उम्मीद की जाती है कि नतीज़ा जितना संभव हो उतनी देर से निकले.

पिछले कुछ दशकों में अच्छे स्कोर का भी सफलतापूर्वक पीछा करना इसलिए मुमकिन हुआ है क्योंकि बल्लेबाज़ी में गेंदबाज़ी के मुकाबले तकनीक का ज़्यादा विकास हुआ है.

ये बल्लों की गुणवत्ता में हुए सुधार की ही नतीज़ा है कि आज ख़राब खेले गए शॉट पर भी गेंद छह रन के लिए सीमा रेखा से बाहर चली जाती है. आज स्वीप स्पॉट का क्षेत्र पहले से बड़ा है और इस सब के ऊपर खिलाड़ी भी पहले से ज़्यादा फिट और ताक़तवर हैं.
चार दशक पहले वनडे क्रिकेट की शुरुआत से अब तक गेंदबाज़ी में सिर्फ़ दो ही खोजें हुई हैं, ‘रिवर्स स्विंग’ और ‘दूसरा’.

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नई तकनीक का तोड़

कई साल पहले जब दो गेंदों इस्तेमाल करने की शुरुआत हुई थी तब इसलिए कोई शिकायत नहीं की गई क्योंकि उस वक़्त रिवर्स स्विंग भी नहीं होती थी.

यह सच है कि नए नियम गेंदबाज़ों के ख़िलाफ़ हैं लेकिन उतने नहीं जितना कि कहा जा रहा है.

क्या सिर्फ़ एक क्षेत्ररक्षक से फ़र्क पड़ सकता है? हाँ, वे फ़र्क ला सकता है, जब आपके पास नौ ही क्षेत्ररक्षक हों और जिनमें से पाँच सिर्फ़ घेरे के अंदर हों.

गेंदबाज़ों को यह तय करना होगा कि वे अपनी ताक़त या बल्लेबाज़ की कमज़ोरी में से किस पर गेंदबाज़ी करते हैं और यह चुनाव दिलचस्प होगा.

हालांकि यह स्वीकार करना भी मुश्किल है कि इस विचार ने ही यॉर्कर को एक हथियार के रूप में ख़त्म कर दिया.

किसी भी खेल का विकास किसी एक पक्ष द्वारा नई तकनीक या नीति को विकसित करने और दूसरे पक्ष द्वारा उसकी काट खोजने और उसके आगे अपनी नई नीति जोड़ने से होता है.

डब्ल्यूजी ग्रेस के समय में गेंदबाज़ों को बैकफुट शॉट की काट खोजनी पड़ी तो सचिन के समय में अपर-कट की. बल्लेबाज़ों को पहले आउटस्विंग का तोड़ खोजना पड़ा तो बाद में ‘दूसरे’ का. यह खेल का प्राकृतिक विकास है.

कभी-कभी नियम बनाने वालों ने उस पक्ष की ओर हो गए जो खेल में हावी था.

यदि जल्द ही गेंदबाज़ों और कप्तानों ने बल्लेबाज़ों की नई तकनीकों का तोड़ नहीं खोजा तो फिर संभवतः तकनीकी समिति को ही कुछ करना पड़े. लेकिन हाथ खड़े करना अभी जल्दबाज़ी है. गेंदबाज़ों की रचनात्मक प्रतिक्रिया को भी एक मौका दिया जाना चाहिए.

जर्मनी में ‘भयंकर’ मूंछों की विश्व चैंपियनशिप

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जर्मनी में सैंकड़ों की तादाद में प्रतियोगी विश्व दाढ़ी एवं मूंछ चैंपियनशिप में हिस्सा लेने के लिए जुटे. इस अनोखी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए क़रीब 20 देशों से लोग आए.

चेहरे के सबसे अच्छे बाल की इस विश्व प्रतियोगिता में हिस्सा लेने आए लोगों की अजीबो-गरीब दाढ़ी-मूंछ दर्शकों के आकर्षण का केंद्र बनी रही.
इस प्रतियोगिता के आयोजक ने कहा कि उन्हें उम्मीद से बेहतर प्रतिक्रिया मिली है. वह कहते हैं, “दुनिया के कई देशों से हिस्सा लेने के लिए लोग यहां आए हैं. ”

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एक प्रतियोगी ब्रैंडन बिगिंस का कहना है, “मैंने एक बार अमरीका में इस तरह की प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था और अब मैं अपनी दाढ़ी को दुनिया से रूबरू कराना चाहता हूं. मैं यहां देखूंगा कि मेरी दाढ़ी के लिए दर्शकों की कैसी प्रतिक्रिया मिलती है.”
इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए 300 लोग आ चुके हैं जो उम्मीद से कहीं ज्यादा है.
इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने आए निक थॉमस कहते हैं कि उन्हें इस प्रतियोगिता की जानकारी ऑनलाइन और फेसबुक के जरिए मिली.
वह कहते हैं, “मैंने सोचा कि मैं इस प्रतियोगिता में शामिल होकर देखूं कि क्या होता है और शायद मैं अपनी दाढ़ी और बढ़ा सकता हूं.”

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हमेशा के लिए जुदा हुईं ‘लंबी जुदाई’ वाली रेशमा

[ad type=”300×250″ src=”http://www.udaipurpost.com/wp-content/uploads/2013/11/shahi-green-copy.jpg” link=”” align=”” adsense=””]Pakistani-Singer-Reshmaउनकी मखमली आवाज जब फ़िज़ा में गूंजती थी तो थार मरुस्थल का ज़र्रा-ज़र्रा कुंदन सा चमकने लगता… वे राजस्थान के शेखावाटी अंचल के एक गांव में पैदा हुईं थीं लेकिन उनका गायन कभी सरहद की हदों में नहीं बंधा.

अपने ज़माने की मशहूर पाकिस्तानी गायिका क्लिक करें रेशमा ‘लम्बी जुदाई’ का गाना सुनाकर हमेशा के लिए जुदा हो गई. रेशमा के निधन की ख़बर उनके जन्म स्थान राजस्थान में बहुत दुःख और अवसाद के साथ सुनी गई.
संगीत के कद्रदानों के लिए पिछले कुछ समय में ये दूसरा दुःख भरा समाचार है. पहले शहंशाह–ग़ज़ल क्लिक करें मेहंदी हसन विदा हुए और अब रेशमा ने भी दुनिया को अलविदा कह दिया.

रेशमा राजस्थान में रेगिस्तानी क्षेत्र के चुरू जिले के लोहा में पैदा हुई और फिर पास के मालसी गाव में जा बसी. भारत बंटा तो रेशमा अपने परिवार के साथ पाकिस्तान चली गई. लेकिन इससे ना तो उनका अपने गांव से रिश्ता टूटा न ही लोगों से.

मिट्टी से रिश्ता
रेशमा को जब भी मौका मिला वो राजस्थान आती रहीं और सुरों को अपनी सर-ज़मी पर न्योछावर करती रहीं. लोगों को याद है जब रेशमा को वर्ष 2000 में सरकार ने दावत दी और वो खिंची चली आईं तब उन्होंने ने जयपुर में खुले मंच से अपनी प्रस्तुति दी और फ़िज़ा में अपने गायन का जादू बिखेरा.

रेशमा ने न केवल अपना पसंदीदा ‘केसरिया बालम पधारो म्हारे देश’ सुनाया बल्कि ‘लम्बी जुदाई’ सुनाकर सुनने वालो को सम्मोहित कर दिया था.

इस कार्यक्रम के आयोजन से जुड़े अजय चोपड़ा उन लम्हों को याद कर बताते हैं जब रेशमा को दावत दी गई तो वो कनाडा जाने वाली थीं और कहने लगी उनको वीसा मिल गया है.

मगर जब उनको अपनी माटी का वास्ता दिया गया तो रेशमा भावुक हो गईं. अजय चोपड़ा बताते हैं कि रेशमा को उनकी माटी के बुलावे का वास्ता दिया वो ठेठ देशी मारवाड़ी लहजे में बोलीं, “अगर माटी बुलाव तो बताओ फेर मैं किया रुक सकू हूं?”

ये ऐसा मौका था जब क्लिक करें राजस्थान की माटी में पैदा पंडित जसराज, क्लिक करें जगजीत सिंह, मेहंदी हसन और रेशमा जयपुर में जमा हुए और प्रस्तुति दी.

इस वाकये के बारे में अजय चोपड़ा बताते हैं होटल में रेशमा ने राजस्थानी ठंडई की ख्वाहिश ज़ाहिर की तो ठंडई का सामान मंगाया गया और रेशमा ने खुद अपने हाथ से ठंडई बनाई.

अजय ने बताया, ”वो अपने गांव, माटी और लोगों को याद कर बार-बार जज़्बाती हो जाती थीं. रेशमा ने मंच पर कई बार अपने गांव- देहात और बीते हुए दौर को याद किया और उन रिश्तों को अमिट बताया.”

विनम्र स्वभाव
राजस्थानी गीत संगीत को अपनी रिकॉर्डिंग के काम से ऊंचाई देने वाले केसी मालू का गांव रेशमा के पुश्तैनी गांव से दूर नहीं है.

केसी मालू को मलाल है रेशमा की चाहत के बावजूद भी वो उनके गीत गायन को रिकॉर्ड नहीं कर सके. खुद रेशमा ने उनसे ‘पधारो म्हारे देश’ गीत रिकॉर्ड करने को कहा था.

केसी मालू कहते हैं, “हमने राजस्थान की लोक गायकी और पारम्परिक गीतों की कोई चार हज़ार रिकॉर्डिंग की हैं मगर हमें आज अफ़सोस है हम रेशमा के सुर रिकॉर्ड नहीं कर सके. उनकी रेकॉर्डिग के बिना हमारा संकलन अधूरा सा लगता है.”

अरसे पहले ये नामवर गायिका अपने परिजनों के साथ जोधपुर आईं तो उनके साथ रेशमा के जेठ भी थे. वे रेशमा की भूरि-भूरि प्रंशसा कर रहे थे.

उन्होंने बताया, ” रेशमा बहुत बड़ी गुलकार हैं मगर घर-परिवार में छोटे-बड़े का अदब करना कभी नहीं भूलतीं.”

उनके जेठ ने बताया कि उनके घर में जीवन, रस्मों-रिवाज़ और व्यवहार वैसा है जैसा राजस्थान में रहते था.

संगीत से जुड़े श्री मालू कहते हैं रेशमा अपने गांव से बहुत लगाव रखती थीं. वे बताते हैं, “उस वक्त उनका गांव सड़क से नहीं जुड़ा था. रेशमा को इसका बहुत दर्द था. उनकी इस बात को सरकार तक पहुंचाया और सड़क बन गई तो रेशमा बहुत खुश हुईं.”

रेशमा अब नहीं रहीं. दमादम मस्त कलंदर सुनाकर वो चली गईं. आखिरी बार जब रेशमा ने जयपुर में ‘लम्बी जुदाई’ सुनाया तो कौन जानता था कि ये जुदाई बहुत लम्बी होने वाली है, इतनी लंबी कि फिर न मिले.

रेशमा न सही मगर फिज़ा में बिखरे उनके बोल उनकी मौजूदगी की गवाही देते रहेंगे.
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