फेस बुक का दंगा , शांत शहर में आग और निर्दोष युवा जेल में

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शनिवार को सदभावना एवं कौमी एकता के प्रतीक शांत उदयपुर शहर की शांति भंग करने का दुष्प्रयास किया गया लेकिन यहां के परिपक्व वाशिन्दों ने इसे अपनी समझ एवं सुझबुझ से कुचल दिया। इस घटना ने जिला प्रशासन की व्यवस्था एवं खुफिया पुलिस की कार्य प्रणाली पर एक बार फिर सवालिया निशान लगा दिए हैं।अमन के दुश्मन असामाजिक तत्वों को छोड़ पुलिस द्वारा बेगुनाहों को जेल में डालने से पुलिस के रवैये पर एक समुदाय में बढ रहा है आक्रोश

2घटना की शुरूआत परिस्थिति शनिवार सुबह से ही हो गई थी। इसकी सुगबुगाहट पुलिस एवं प्रशासन के कानो तक पहुंच चुकी थी लेकिन दोनो ही व्यवस्थाओं ने इसे बहुत हल्के मे लिए परिणामस्वरूप शहर के हिस्से की शांति को पलीता लग गया। झगडे की जड तथा कथित सोशल नेटवर्क साइट ’फेसबुक’ एक सप्ताह पूर्व ही प्रदेश के एक जिले में भी तबाही दोहरा चुकी है। वहां सरकारी सम्पत्ति को भारी नुकसान हुआ जिसका खामियाजा आमजन को भुगतना है किसी नेता या अधिकारी को नही।

इसी फेसबुक ने शहर मे भी पलिता लगाने का प्रयास किया जब प्रशासन को पूर्व ही जानकारी मिल चुकी थी तो प्रशासन ने संबंधित व्यक्ति के विरूद्घ कार्रवाई क्यों नही की। यदि ऐसा कदम उठा लिया जाता तो संभव है कि इस घटना की क्रियान्विति ही न होती। लेकिन लापरवाह प्रशासन सांप निकल जाने के बाद लकीर पीटने का अभ्यस्त है और इस घटना में भी वही हुआ। फेसबुक की तथा कथित टिप्पणी से आक्रोशित जब एक तबका ज्ञापन देने जिला कलेक्ट्रेट पहुंचा तो वहां कोई भी सक्षम अधिकारी ज्ञापन लेने के लिए मौजुद नहीं था। ऐसी स्थिति में आक्रोश भडकना स्वाभाविक है। इधर जब कलेक्ट्रेट पहुंचे प्रतिनिधि मण्डल को कोई समाधान नहीं नहीं आया तो इसमें शामिल कुछ तत्वों ने मल्लातलाई पहुंच कर घटना को अंजाम देने की ठानी। इसकी जानकारी कलेक्ट्रेट से संबंधित थानाधिकारी को हो चुकी थी लेकिन उन्होंने इस संबंध में न तो अपने उच्च अधिकारियों को सूचित किया और न ही अम्बामाता थाना को इस संभावना से अवगत कराया । यदि ऐसा हो जाता तो घटना ही नहीं होती। हालाकि इस प्रसंग पर बाद में आई.जी.टी.सी.डामोर ने उक्त थानाधिकारी को तलाडा लेकिन तब तक तीर कमान से निकल चुका था। कुछ असामाकि तत्वों ने मल्लातलाई स्थित एक रेस्टारेंट पर तोडफ़ोड और कथित रूप से मारपीट कर डाली।

 

बेकसूर राहगीरों को मर मासूम बच्चों को भी बनाया शिकार

परिणाम स्वरूप दूसरे तबके ने इसे हाथों हाथ लेते हुए राह जाते समुदाय विशेष के परिवार पर हमला कर दिया कुछ ही पल में चिंगारी शोला बन गई और दोनो ही समुदायों की ओर से पथराव एवं मारपीट की घटनाएं होने लगी। मासूम बच्चों को भी इस त्रासदी ने अपना शिकार बनाया, पिता के साथ जाते मासूम बच्चे भी चोट ग्रस्त हुए। जो इस हादसे से ही अनजान थे। फिर रूटीन रेस्क्यू ऑपरेशन आंरभ हुआ बेमतलब समझाईश मे वक्त जाया कर पहले किया जाने वाला कार्य दूसरे चरण मे किया वह था भीड को तितरबितर करनरा अब तक शहर में अफवाहों का दौर आंरभ हो चुका था। कहीं हत्या होने की बात सुनने मिली तो किसी ने फायरिंग होने की घटना की अफवाह फैलाई। सम्पूर्ण शहर भयग्रस्त था। शहर के एक कोने में हुई इस वारदात ने पूरे शहर को स्तब्ध कर दिया। देर शाम अम्बामाता थाने से खदेडे हिन्दू संगठनों के कुछ कार्यकर्ताओं ने चेटक एवं बापू बाजार में बंद कराने का प्रयास किया लेकिन विफल रहे।

 

नंबर बढाने के लिए पुलिस ने बेकसूरों को जेल में डाल दिया

इस बीच पुलिस ने राह जाते युवकों को दबोच अपने नम्बर बढाने की कार्रवाई आंरभ की। समुदाय विशेष की कॉलोनी के घरों में घुस कर वहां से युवाओ को उठा a1लिया गया और थाने की हवालात में ठूंस दिया। सूत्रों ने बतायाकि असामाजिक तत्व स्थानीय नहीं थे वे घटना को अंजाम दे कर फ रार हो गये और निर्दोष लोगो को गिरफ़्त में लेकर पुलिस ने वाह वाही लूटी।

लेकिन पुलिस को समझना चाहिए कि इस झूठी वाह वाही से उन्हें राहत नहीं मिलेगी उनकी समाज मे छवि और भी विकृत हो गयी। इसलिए उसे अपने खुफियातंत्र को मजबूत करते हुए ऐसी घटनाओं के वास्तविक कारणों तक पहुंचने की जहमत उठानी पडी।

 

 

हमको समझना होगा…..

इधर एक समुदाय विशेष को भी समझना होगा परिस्थितियों को ।फेस बुक पर हमारे मुल्क का नियंत्रण नहीं है इस पर किसी भी प्रकार के पोस्ट रोकने के लिए हमारे पास कारगर उपाय नहीं है। बनारस से डाली पोस्ट उदयपुर में दंगा करा दे। यह हास्यास्पद तो है ही शर्मनाक भी। शर्मनाक इस मायने में कि कई बार इस साइट के जूजर्स समझ में नहीं आने के उपरान्त भी लाइक या कमेंट कर देते है उन्हे इसके परिणामो की अथवा यथार्थ की जानकारी नहीं होती। इसे तुल देने की बजाय इसे मौके पर ही समझाईश कर खत्म करने के प्रयास होने चाहिए। लेकिन ऐसा न कर इसे तुल देते हुए एक शांत शहर के अमनचैन को पलीता लगाने की कार्रवाई आंरभ हो जाती है। इसे रोका जाना चाहिए। कुछ समय पूर्व किसी विवादित पोस्ट को लेकर कुछ हिन्दू संगठन भी कलेक्ट्रेट में ज्ञापन गए थे। उन्होंने भी ज्ञापन दिया शांति पूर्वक प्रशासन ने उनकी बात को सुना ओर उन्हे आश्वस्त कर भेजा। तब कोई माहौल नहीं था। समझाईश से राहे मिल जाती है लेकिन राह बताने वालो को भी नियत पवित्र होनी चाहए।

 

अब निर्दोष युवाओं को झेलनी पड़ेगी प्रताड़ना

इस पूरे घटनाक्रम के 24 घंटे बाद भी अल्पसंख्यक समुदाय के संरक्षण का ढोंग करने वाली कांग्रेस का एक भी नुमाइंदा पीड़ितों से नहीं मिला। न कोई एमएलए उन निदोष युवाओ के आंसू पौंछने पहुंचा जो बेवजह थाने में ढंस दिए और एक लम्बी कानूनी प्रक्रिया की प्रताडना उनके परिवारो को झेलनी है। इस समुदाय को अपने रहनुमाओं की पहचान कर अपना अगला कदम उठाना चाहिए। इधर मुस्लिम महासभा ने इस संबंध में पुलिस के रवैये को गैर लोकतांत्रिक बताते हुए सोमवार को जिला प्रशासन को ज्ञापन देने का निर्णय लिया है । महासभा सूत्रों का कहना है कि इससे भी राहत नहीं मिली तो आगामी दिनों में प्रस्तावित कांग्रेस की संदेश यात्रा को काले झण्डो का सामना करना पडेगा।

उदयपुर पोस्ट उम्मीद करता है कि ऐसी नौबत नहीं आए और समझाईश और समझदारी से इस शांत शहर का अमन चैन पुन: लौट आए

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