सियासत के लिए शांत शहर में न करें सौहार्द तोडने का प्रयास

Date:

head

उदयपुर। प्रतापगढ जिले के एक छोटे से गांव में बीती 14 जनवरी को जो कुछ हुआ वह निंदनीय है। कोई भी सभ्य समाज ऐसे दंगों का समर्थक नहीं हो सकता। दंगे की परिणिती में दोनों ओर से चली गोलियों ने तीन घरों के चिराग बुझा दिए, लाखों रूपयों की सम्पत्ति को फूंका गया। जो कुछ भी हुआ उसकी भर्त्सना की जानी चाहिए लेकिन ऐसे संवेदनशील अवसरों पर वाणी और शब्दों पर संयम की नितांत आवश्यकता है। हिंसा का दौर मानसिक उबाल का परिणाम होता है, उसके लिए दोनों पक्ष जिम्मेदार होते है। घटना के जिम्मेदारों को चिन्हित कर उन्हें निश्चित रूप से दण्डित भी किया जाना चाहिए। लेकिन ऐसे अवसरों का राजनीतिक लाभ हथियाने की चेष्टा करना दुर्भाग्यपूर्ण है। उनकी यह कुचेष्टा माहौल को हवा देने में तात्कालिक रूप से सफल हो सकती है, लेकिन उसके परिणाम समाज एवं देश को वर्षों तक झेलने पडते है।
हाल ही की घटना पर उदयपुर शहर के जिम्मेदार भाजपा के प्रवक्ता ने भाजपा के वरिष्ठ जनप्रतिनिधियों के हवाले से एक विज्ञप्ति जारी कर पुरे मुस्लिम समाज को कटघरे में खडे करते हुए कह दिया कि  “उदयपुर शहर सहित अन्य स्थानों पर समुदाय विशेष द्वारा त्यौहार के अवसर पर अराजकता का प्रदर्शन किया गया”

क्या ऐसा कह कर ये अन्य समाजों को जबर्दस्ती मुस्लिम समाज के विरोध में करने की राजनीति नहीं कर रहे है ?

क्या उन्हें उदयपुर शहर और अन्य शहरों की शांति अच्छी नहीं लग रही ?

क्या वे लोकसभा चुनाव के करीब आने से दंगों की राजनीति नहीं करना चाह रहे है ?
शहर के इन जिम्मेदार लोगों ने ही नहीं अन्य सभी ने देखा कि उदयपुर शहर में ईद मिलादुन्नबी के मोके पर निकले गए जुलूस में 70 से 80 हजार लोग आये थे और इतनी भारी तादाद में लोग जुलुस के रूप में खुशियां मनाते हुए निकले लेकिन कहीं से भी कोई अवांछित या अप्रिय घटना नहीं हुई । जहाँ इन जिम्मेदार वोटों की राजनीति करने वालों को शहर के लोगों की तारीफ करनी चाहिए कि अन्य जगह के तुलना में यहाँ इतनी भारी संख्या में मुस्लिम समाज के लोग निकले लेकिन कही से कोई अप्रिय घटना नहीं हुई। जबकि जुलूस हर मौहल्ले से होकर गुजरता है। उसकी जगह यह और उकसाने का काम कर रहे है । ऐसे में ये अपने आपको जनप्रतिनिधि कहने वाले खुद के शहर के लोगों में ही भेद भाव की भावना पैदा कर रहे है ।
आराजकता किसको कहते है, शायद यह भी इन जिम्मेदारो को नहीं मालूम। जहाँ कोई कानून ना हो किसी को कानून की पडी ना हो । ईद मिलादुन्नबी की पूर्व संध्या पर मुस्लिम बाहुल्य खांजीपीर में भी साज सज्जा और रौशनी देखने के करीब 30 से 40 हजार लोग आये और सबसे बडी बात यह कि वहां एक भी पुलिस का जवान तैनात नहीं था फिर भी वहाँ के नौजवानो के पुख्ता इंतजाम के चलते बिना कोई अप्रिय घटना के सारा कार्यक्रम शांतिपूर्वक हो गया, तो क्या यह आराजकता होती है ? ईद मिलादुन्नबी का जुलूस ही नहीं कोई भी धार्मिक जुलूस को चाहे भगवान् जगन्नाथ की रथ यात्रा हो, गुरु गोविन्द सिंह साहेब की शोभायात्रा हो, चेटीचंड पर निकाली जाने वाली यात्रा या शिवरात्रि पर निकाले जाने वाली यात्रा हो हर यात्रा अपने आप में एक शांति और धर्म पर चलने का पैगाम लिए होती है। जिसमे लोग भक्ति भाव और दिल से जुडते है। पिछले सौ साल का इतिहास उठा कर देख ले तो इक्का दुक्का घटना को छोड कर कभी किसी यात्रा में कोई अप्रिय घटना नहीं हुई ।
धार्मिक जुलूस किसी भी धर्म का हो उसमे भाग लेने वाले लोग कभी आराजकता पैदा नहीं करते। हां खुशी के आलम में कुछ अनुशासनहीनता हो सकती है जो हर समाज के मोतबीर लोगों को ध्यान रखना चाहिए लेकिन आराजकता नहीं हो सकती। धार्मिक जुलूस कोई राजनैतिक पार्टियों की रैली या हडताल के जुलूस की तरह नहीं होते जहाँ लोगों को खरीदकर बुलाया जाता है। और आराजकता का माहोल बनाया जाता है ।
ऐसे माहोल में ऐसे जिम्मेदार लोग अपने वोट और सीट की चिंता करने वाले लोग जो खुद को जनप्रतिनिधि कहते है वे लोग इस तरह से समाजों में घृणा पैदा करके कुछ वक्त के लिए जरूर जीत जायेगे लेकिन ऐसे लोग ही इन दंगों की राजनीति और साप्रदायिकता के घोडे पर सवार होकर पहले इस शहर को और फिर देश को गर्त में ले जायेगें।

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Share post:

Subscribe

spot_imgspot_img

Popular

More like this
Related

Mastering the Art of Aviamasters Port Machines

The Surge of Aviamasters Slot Machines Aviamasters slot machines have...

Aviamasters Real Cash Port Game

Start an exciting journey with the skies with Aviamasters!...

Casibom Resmi Giri Sayfas – 2025 Casibom casino.11641

Casibom Resmi Giriş Sayfası - ​2025 Casibom casino ...