कैसी दिखती है इंटरनेट की ‘काली दुनिया’?

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इंटरनेट का एक स्वरूप हम देखते हैं जिसमें गूगल, याहू, फेसबुक, ट्विटर और अन्य अनगिनत वेबसाइटें होती है जिसे हर कोई खोल सकता है, लेकिन इंटरनेट में एक दुनिया और बसी है, जिसे ‘डीप वेब’ कहते हैं.

डीप वेब यानी इंटरनेट की इस काली दुनिया में कई ग़ैरकानूनी बाज़ार सजते हैं. कई ऐसी मादक, ख़तरनाक चीज़ें ख़रीदी-बेची जाती हैं, जिन्हें बेचना या ख़रीदना जुर्म माना जाता है.
पैसे की बजाय वर्चुअल मनी, बिटकॉइन से पेमेंट होता है.

ऐसी ही एक ऑनलाइन बाज़ार ‘सिल्क रोड’ को पिछले साल अमरीका की एफ़बीआई ने बंद करवाया था.

इन वेबसाइटों से खरीदारी करने पर पहचान छुपी रह जाती है, इसलिए आपराधिक गतिविधियों में इनका इस्तेमाल ज़्यादा होता रहा है.

‘डीप वेब’ कितना गहरा?

एंटीवायरस बनाने वाली कंपनी मैकअफ़े की सार्क देशों की इकाई के प्रबंध निदेशक जगदीश महापात्रा ने बीबीसी को बताया कि डीप या डार्क वेब g1359052878880586331हमें सार्वजनिक तौर पर दिखने वाले इंटरनेट से तीन गुना बड़ा हो सकता है.

उन्होंने कहा, “टॉर के ज़रिए डार्क वेब तक लोग पहुंचते हैं. इसे रक्षा सेवाओं के लिए प्रयोग किया जाता था, लेकिन जैसा ज़्यादातर तक़नीकों के साथ होता है, इसे वो लोग भी इस्तेमाल करने लगे जिन्हें यहां नहीं होना चाहिए था. साइबर अपराधी तमाम ग़ैरकानूनी गतिविधियों के लिए इसका इस्तेमाल करने लगे.”

सरकारी या ग़ैरसरकारी जासूसी, ड्रग्स बेचने से लेकर पॉर्न का कारोबार और मानव तस्करी तक, सब कुछ इंटरनेट की इस काली दुनिया में खुलेआम होता है.

काफ़ी समय तक इंटरनेट पर एफ़बीआई और डीप वेब संचालकों के बीच चोर-पुलिस के खेल के बाद बीते साल बंद किए गए ‘सिल्क रोड’ ने इस दुनिया की जो तस्वीर पेश की, वो कई विशेषज्ञों की सोच से ज़्यादा खतरनाक थी.

अपराधियों का ‘आश्रय’

आमतौर पर सार्वजनिक इंटरनेट पर ग़ैरकानूनी काम करने वालों तक सुरक्षा एजेंसियां आसानी से पहुंच जाती हैं, लेकिन डीप वेब में साइबर अपराधी बड़े आराम से ग़ैरकानूनी गतिविधियां करते हैं, क्योंकि उनके पकड़े जाने का खतरा वहां कम होता है.

क्या है टॉर (TOR)?
टीओआर यानी द ऑनियन रूटर इंटरनेट का ही एक हिस्सा है, जहां पर आम ब्राउज़र से नहीं पहुंचा जा सकता. इसके लिए फ़ायरफॉक्स ब्राउज़र के एक खास किस्म के ज़रूरत होती है.
इसे अमरीकी नेवी रिसर्च लैब ने बनाया था ताकि इंटरनेट पर बिना ट्रैक हुए अनॉनिमस ब्राउज़ किया जा सके.
ये दो तरह से काम करता है. एक तो यह कि किसी साइट को खोलने पर जो डिजिटल चिह्न पीछे छूटते हैं, ये उन्हें समझ पाना इतना कठिन बना देता है ब्राउज़िंग लगभग अनॉनिमस हो जाती है.
दूसरा यह कि टॉर में कई साइट डॉट कॉम की जगह डॉट ऑनियन एक्सटेंशन में खुलता है. ये साइट छुपी होती हैं और सिर्फ टॉर पर ही दिखती हैं. गूगल और बिंग जैसे सर्च इंजन पर भी ये लिस्ट नहीं होतीं.
इसका प्रयोग पॉर्नोग्राफ़ी या आपराधिक गतिविधियों के लिए ही नहीं बल्कि पत्रकारिता और गोपनीय जानकारी भेजने के लिए भी किया जाता है.

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