राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले के दक्षिण में तालाब की तलहटी के नीचे दीपनाथ महादेव विराजित हैं। यहां पर एक गणेश मंदिर भी है। जिसकी विशेषता यह है कि यहां चिंता हरण खड़े गणपति का मंदिर उदयपुर संभाग में सिर्फ एक ही है। बाकी सभी जगहों पर गणेशजी प्रतिमाओं में विराजित है।
इतिहास के पन्नों में इस मूर्ति और मंदिर की कई रोचक जानकारियां हर किसी को अपने तरफ आकर्षित करती है । माना जाता है कि इस तरह का मंदिर जिस में खड़े गणपति के साथ रिद्धि और सिद्धि भी उनके साथ खड़ी अवस्था में मौजूद है। कई लोगों का मानना है कि यहां पर तीव्रता से सुनवाई होती है और मन्नत मांगने वालों का तत्काल काम होता है।
यह मूर्ति और मंदिर 18 वीं सदी के यानी कि करीब 200 साल पुराने है।
इसे गुजरात से आए 5 टकीवाल ब्राह्मण समाज की ओर से बनाया गया था। जिनके वंशज आज भी प्रतापगढ़ में रहते हैं। इस कारण आज भी यहां गणपति जी की प्रतिमा के श्रृंगार के दौरान काजू बादाम के साथ सिक्के भी काम में लिए जाते हैं। गणेशजी और पूजा अर्चना के लिए तो यह मंदिर खास है ही लेकिन अब जिले सहित आसपास व अन्य क्षेत्रों के लोगों के लिए मन्नतों के पूरी हो जाने पर पूजा अर्चना करने के लिए भी यह मंदिर अपनी एक अलग पहचान बना चुका है।

मंदिर का इतिहास –
दीपेश्वर महादेव मंदिर महारावत सावंतसिंह के कुंवर दीपसिंह ने बनवाया। अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में महारावत प्रतापसिंह ने प्रतापगढ़ शहर की सुरक्षा के लिए आठ दरवाजे और शहर के चारों ओर परकोटा बनवाया था। महारावत प्रतापसिंह के वंशज महारावत सालमसिंह ने चांदी व तांबे के सिक्के ढलवाने के लिए टकसाल की शुरुवात के लिए गुजरात से पांच कुशल ब्राह्मण परिवार को प्रतापगढ़ बुलवाया। इस परिवार के यह कार्य करने के कारण यह टकीवाल ब्राह्मण कहलाए। जिनके वंशज आज भी प्रतापगढ़ में रहते हैं। इन पांच परिवारों ने भगवान गणेश के प्रति अटूट आस्था के कारण दीपनाथ में खड़े गणपति, नवग्रह मंदिर तथा श्री चंद्र शेखर महादेव मंदिर का निर्माण करवाया। जिनकी सेवा पूजा लगभग पिछले दो सौ वर्षों से हो रही है।
खबर – दीपक शाह, प्रतापगढ़