उदयपुर, 21 जनवरी। भारतीय ओषधि निर्माण उद्योग अपने अंशधारियों के लिए पर्याप्त संपदा का सृजन कर रही है। यह निष्कर्ष शोध छात्रा श्रीमती कल्पना भाणावत ने अपने शोध प्रबंध ओषधि-निर्माण उद्योग में अंशधारियों के संपदा का मुल्यांकन में दिया है। श्रीमती भाणावत ने यह शोध प्रबंध डॉ. दरियावसिंह चुण्डावत के निर्देशन में पूरा किया जिस पर उन्हें सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय के वाणिज्य एवं प्रबंध अध्ययन महाविद्यालय के व्यावसायिक प्रशासन विभाग की ओर से विद्या वाचस्पति की उपाधि प्रदान की गई।

श्रीमती कल्पना ने अपने अनुसंधान में यह बताया कि इस उद्योग की सनफार्मा इकाई ने सर्वाधिक अंशधारियों की संपदा का सृजन किया है किंतु फाईजर कंपनी ने न केवल न्यूनतम संपदा का सृजन किया है अपितु कुछ वर्षों में संपदा का विनाश भी किया है। इस संपदा का मापन ‘‘आर्थिक मूल्य जोड़ (श्वष्टह्रहृह्ररूढ्ढष्ट ङ्क्ररुश्व ्रष्ठष्ठश्वष्ठ)’’ अवधाराणा के आधार पर किया गया है। ओषधि निर्माण उद्योग ने औसत रूप से एक रूपये के विनियोग पर अंशधारियों के लिए 11.091 रूपये का आर्थिक मूल्य जोड़ का उत्पादन किया है। अध्ययन अवधि में अंशाधारियों ने औसत रूप से 27.42 प्रतिशत आय प्राप्त की है जबकि बैंक से प्राप्त औसत प्रत्याय दर 9 प्रतिशत ही है।

 

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