post news.प्राइवेटअस्पताल अब सर्जरी में इस्तेमाल होने वाली मेडिकल डिवाइस की मनमानी कीमत नहीं वसूल सकेंगे। मेडिकल डिवाइस के लिए ‘मेडिकल डिवाइस रुल्स-2017’ के तहत लेबल पर एमआरपी के साथ डिवाइस का ब्यौरा भी लिखना होगा। लेबल पर निर्माता कंपनी का नाम पता, निर्माण तिथि, लाइसेन्स नंबर, एक्सपायरी डेट, बैच नंबर, वजन, वोल्यूम एवं मात्रा लिखना जरूरी होगा। गौरतलब है कि राजस्थान समेत देशभर में 250 निर्माण यूनिट हैं। हालांकि इसमें कार्डियक स्टेंट आर्थोपेडिक्स इंप्लांट की तरह कीमत का निर्धारण नहीं हो सकेगा।
नए कानून के तहत इन्हें अलग-अलग चार कैटेगरी ए, बी, सी डी में बांटा गया है।
ड्रगकंट्रोलर (सैकंड) अजय फाटक के अनुसार कानून के तहत डिवाइस को 4 कैटेगरी (लो रिस्क), बी (लो मोडरेट रिस्क), सी (मोडरेट हाई रिस्क) तथा डी (हाई रिस्क) में रखा है। पेशेंट केयर सुरक्षा के हिसाब से अंतरराष्ट्रीय स्तर के मापदंड तय किए हैं। बी कैटेगरी को लाइसेंस हर तरह से जांच के बाद स्टेट ऑथोरिटी तथा सी डी के लिए संेंट्रल लाइसेंसिंग ऑथोरिटी देगी।
फार्माएक्सपर्ट वीएन वर्मा का कहना है कि ‘मेडिकल डिवाइस रुल्स-2017’ एक जनवरी 2018 से प्रभावी हैं। राज्यों में पहले से कार्यरत ड्रग कंट्रोल ऑफिसरों सहायक औषधि नियंत्रक को मेडिकल डिवाइस ऑफिसर के लिए नोटिफाइड करना होगा जिससे आसानी से कार्यवाही की जा सकेगी। जांच करने वाले को मेडिकल डिवाइस टेस्टिंग ऑफिसर के नाम से जाना जाएगा। इसके अलावा किसी तरह की गड़बड़ी, साइड इफेक्ट होने पर डिवाइस के लिए अलर्ट जारी होगा।
ये है मेडिकल डिवाइस | इंट्रायूटेराइन डिवाइस, डिस्पोजेबल हाइपोडर्मिक सिरिंज नीडिल, डिस्पोजेबल परफ्यूजन सेट, इन विट्रो डायग्नोस्टिक किट फॉर एचआईवी तथा एचसीवी, कार्डियक स्टेंट, ड्रग इल्यूटिंग स्टंट, कैथेटर्स, इंट्रा ऑक्यूलर लैन्सेज, आईवी कैन्यूला, बोन सीमेन्ट, हार्ट वाल्व, इंटरनल प्रोस्थेटिक रिप्लेसमेंट, स्केल्प वेन सेट, आर्थोपेडिक इंप्लांट तथा एब्लेशन डिवाइस है।

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