पोस्ट न्यूज़। एक तरफ किसानों की मुसीबते कम होने का नाम नहीं ले रही दूसरी तरफ किसानों की समस्याओं को लेकर प्रदेश भर में राजनीति का दौर जोरों पर है। सरकार के मंत्री किसानों के जख्मों पर मरहम लगाने के बजाय नमक छिड़कने का काम कर रहे है। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य राज्यमंत्री बंशीधर बाजिया ने किसानों के कर्ज माफ़ी को लेकर विवादित बयान देदिया और कह दिया कि कर्ज माफ़ करने से किसान पंगु हो जाते है। जिससे विभिन्न मांगों को लेकर व्यथित किसान और उनसे जुड़े संगठन नाराज हो गए
बाजिया ने भाजपा के जन सुनवाई कार्यक्रम में कहा कि कर्ज माफ करने से किसान कभी खुशहाल नहीं होता है, बल्कि पंगु ही होता है। बाजिया के इस बयान को लेकर किसान नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली। संगठनों ने साफ कह दिया कि मंत्री अपने बेतुके बयान के लिए माफी मांगे।

अखिल भारतीय किसान महासभा के नेता और पूर्व एमएलए अमराराम ने राज्यमंत्री बाजिया के बयान को किसान हित विरोधी बताया है। अमराराम का कहना है कि कर्ज माफी करके सरकार किसानों के पूरे नुकसान की भरपाई नहीं कर सकती है। सरकार की वादाखिलाफी के कारण ही किसान कर्ज में डूबा है। जब किसान की उपज की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य तक पर नहीं की जाती है तो उसे मजबूर होकर औने पौने दामों पर अपनी उपज बेचनी पड़ती है। सरकार के मंत्रियों को ऐसी बयानबाजी से बचना चाहिए
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट का कहना है कि किसान कभी कर्जमाफी चाहता ही नहीं है, बल्कि किसान चाहता है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को देशभर में अक्टूबर 2007 से लागू किया जाए। किसान को उपज की लागत का डेढ गुणा मूल्य मिलना चाहिए। सरकार ने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश लागू नहीं की और न ही न्यूतनम समर्थन मूल्य पर उपज की खरीद की। इससे देश में किसानों को पिछले दस साल में करीब 15 लाख करोड़ रुपए का घाटा हुआ है, जबकि किसानों पर 12.7 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। सरकार के मंत्रियों को ऐसी बयानबाजी करने की बजाय किसान हित में किसान को लागत का डेढ गुणा मूल्य दिलवाने के लिए प्रयास करना चाहिए

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