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दिल्ली में विधानसभा चुनाव से पहले लगातार जीत का दम भरने वाली बीजेपी को बुरी तरह से शिकस्त का सामना करना पड़ा। दिल्ली चुनाव के नतीजों ने पीएम मोदी के विजय रथ पर ब्रेक लगा दिया है। चुनाव के बाद आए नतीजों में बीजेपी को महज तीन सीटों पर जीत मिल सकी। वहीं केजरीवाल की पार्टी आप को चुनाव में 67 सीटों पर जीत मिली है।
गौरतलब है कि 2013 में हुए चुनावों में बीजेपी को 32 सीटें मिली थी। बीजेपी की इस हार के बाद पार्टी के अंदर और बाहर हार के कारणों पर समीक्षा की जाने लगी है। इसी क्रम में हम आपको बता रहे हैं कि वो कौन से कारण हैं जिनकी वजह से बीजेपी को इतनी शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा।

किरण बेदी को सीएम उम्मीदवार प्रोजेक्ट करना –
बीजेपी नेतृत्व ने चुनाव में किरण बेदी को भले ही दिल्ली के सीएम पद के लिए उपर्युक्त उम्मीदवार समझा हो लेकिन दिल्ली की जनता ने उन्हें सिरे से खारिज कर दिया। बीजेपी नेतृत्व द्वारा प्रदेश के शीर्ष पदाधिकारियों को नजरअंदाज कर किरण बेदी को पार्टी उम्मीदवार घोषित करना नेताओं और कार्यकर्ताओं के गले नहीं उतारा। जिससे नाराज नेता और कार्यकर्ता चुनाव प्रचार के दौरान ज्यादा सक्रिय नहीं दिखाई दिए। जिस वजह से बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। पिछला विधानसभा चुनाव बीजेपी ने हेल्थ मिनिस्टर हर्षवर्धन के नेतृत्व में लड़ा था और सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। इस बार पार्टी ने हर्षवर्धन को दरकिनार करते हुए बेदी को चुनाव मैदान में उतारा।

विधानसभा चुनाव कराने में देरी –
दिल्ली में विधानसभा चुनाव कराने में की गई देरी ने भी बीजेपी को काफी नुकसान पहुंचाया है। 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सातों सीटों पर जीत दर्ज करने के बाद पार्टी को अतिआत्मविश्वास के कारण लगा की वो कभी भी चुनाव जीत सकती है। अगर बीजेपी लोकसभा चुनावों के समय दिल्ली में विधानसभा चुनाव करवाती तो शायद हाल कुछ और ही होते। गौरतलब है कि 2014 में केजरीवाल के इस्तीफा देने के बाद से दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ था।

दूसरे दल से आए नेताओं को टिकट देना –
बीजेपी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में बाहरी उम्मीदवारों पर बड़ा दांव खेला था। पार्टी ने जमीनी कार्यकर्ताओं और नेताओं को नजरअंदाज कर दूसरे दलों से आए नेताओं को टिकट दिया। इनमें आम आदमी पार्टी से आए विनोद कुमार बिन्नी, एमएस धीर के अलावा कांग्रेस से आईँ पूर्व केंद्रीय मंत्री कृष्णा तीरथ शामिल है।

सस्ती बिजली और पानी –
दिल्ली के पूर्व सीएम और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने अपनी 49 दिनों की सरकार में सस्ती बिजली और मुफ्त पानी की सौगात दिल्ली की जनता को दी थी। इससे काफी तादाद में लोगों को फायदा हुआ। लोगों को इस बार भी उम्मीद थी केजरीवाल के आने से उन्हें इसी तरह की सौगात मिल सकती है। जिस कारण से इस चुनाव में उन्हें वोट देने वालों की तादाद बढ़ गई।

विकास का एजेंडा पिछड़ा –
बीजेपी जो हर चुनाव में विकास को अपना मुख्य एजेंडा घोषित करती है। इस बार अपने एजेंडे को प्रोजेक्ट करने में पिछड़ गई। बीजेपी ने इस चुनाव में विकास से ज्यादा केजरीवाल के खिलाफ नकरात्मक प्रचार करने में ज्यादा फोकस किया। जिसका परिणाम उसे इस चुनाव में देखने को मिला। बीजेपी की सीएम कैंडिडेट किरण बेदी से लेकर पीएम नरेंद्र मोदी तक ने केजरीवाल के खिलाफ जमकर नकरात्मक भाषण दिए।

कांग्रेस के वोटों में सेंधमारी –
दिल्ली विधानसभा चुनावों में रेस से बाहर कांग्रेस पार्टी के वोट बैंक रहे दलितों और मुसलमानों को अपने पक्ष में करने में आम आदमी पार्टी और केजरीवाल कामयाब रहे। दलितों और मुसलमानों को बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक माना जाता था। इस चुनाव में कांग्रेस की निष्क्रियता से ये वोट बैंक केजरीवाल के खातें में चला गया।

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