peshawar taliban atteck

उदयपुर, जब पेशावर के आर्मी स्कूल पर हमले की ख़बर सुनी तो सबसे पहले उन बच्चों की फिक्र हुई, जो उस स्कूल में थे और उन मां-बाप की, जिन के जिगर के टुकड़ों पर अचानक यह मुसीबत आ गई। और जब न्यूज़ में तस्वीरें देखीं तो आंखें भर आईं…”यार बस करो अब…. खुदा का वास्ता है”। “20-20 साल मां-बाप ने मेहनत कर बच्चों को पाला और उनको मारने में इन्हें 20 सेकेंड भी नहीं लगा”… ये अल्फ़ाज़ उस लाचार पिता के थे, जो सुबह अपने बच्चों को स्कूल छोड़कर गया था। जैसे ही पता चला पेशावर के आर्मी स्कूल पर हमला हुआ है, स्कूल पहुंचे तो जिन्हें सुबह हंसता-मुस्कुराता छोड़ गए थे… उनकी लाशें मिलीं… यूं तो आए दिन पाकिस्तान से इस तरह की ख़बरें आती रहती हैं, लेकिन इस ख़बर ने हिला दिया। लगा तालिबानी अपने वजूद को लेकर इतने डरे हुए हैं कि अपना आपा मनवाने के लिए उन्हें इन मासूम बच्चों की जान का सहारा लेना पड़ा, जो अपनी हिफ़ाज़त के लिए हर वक़्त एके 47 हाथों में लिए घूमते हैं, आज वो अपना खौफ़ पैदा करने के लिए इतनी बुज़दिली पर उतर आए हैं कि मासूमों का खून बहाने से भी नहीं चूके।

इस हमले से यह बात साफ़ हो जाती है कि आज तालिबान खुद अपने वजूद को ख़तरे में मान रहा है। बच्चों पर हुए इस हमले की हर ओर से निंदा हो रही है, लेकिन तहरीक-ए-तालिबान अपनी इस बुज़दिली का श्रेय ले रहा है कि हां, ये क़ायराना हरकत हमने की है। जो दर्द हमें दिया गया, हमने उसका बदला लिया है।

लेकिन उन मासूम बच्चों और उनके घरवालों के दर्द का क्या… वे मासूम जिनकी आंखों में अपने आने वाले कल के लिए हज़ारों सपने थे। उन सपनों का दर्द जो सारी ज़िंदगी उनके घरवालों को सताता रहेगा, जो बच्चे इस हमले में बच भी गए हैं, क्या वे इस हादसे को कभी भूल पाएगें। भूल पाएंगे कि उनके दोस्तों को सिर्फ इसलिए मार दिया गया कि कुछ लोगों का खौफ़ देश और दुनिया में बना रहे। तालिबान कह रहा है कि अपने दर्द का बदला लिया है। तो क्या यह मान लेना चाहिए कि पाकिस्तानी फ़ौज सचमुच अब आंतकवाद के सफ़ाए में लगी है। मतलब की जिस पौधे को उसने खाद पानी देकर सींचा, अब उसे काटने की कोशिश की जा रही है। क्या सचमुच तालिबानी इतने डरे हुए हैं कि स्कूल पर हमला करके दुनिया को बताना चाहते है कि वे कितने ख़तरनाक हैं।

क्या सचमुच तालिबानी इतने घबराए हुए हैं कि स्कूल को हमले के लिए चुना, जहां बंदूक देखते ही बच्चे डर गए होंगे….वहां चार आंतकियों ने खुद को उड़ा लिया, कार को आग लगा दी गई, तालिबान की यह कैसी ताक़त है, जो मासूम और कमज़ोरों पर हमला कर के तालिबान को खौफनाक बनाती है। क्या सचमुच तालिबान अपने वजूद को बचाने की लड़ाई लड़ रहा है या ये तालिबान के ख़ात्मे की शुरुआत है?

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