आरएसएस की सोच यह है कि 2019 में मोदी के नेतृत्व में भाजपा “2014 के चरम” के आसपास भी नहीं पहुंच पाएगी।

Date:

रमणा स्वामी-राष्ट्दूत दिल्ली ब्यूरो की सटीक रिपोर्ट 

post रिपोर्ट. गुजरात चुनाव के नतीजों में आरएसएस क्या देख रही है? नरेन्द्र मोदी व अमित शाह के लिए इस बात का महत्व किसी भी अन्य, चाहे वे दोस्त हों या दुश्मन, के अनुमानों या टिप्पणियों से अधिक है। मीडिया की चकाचौंध से दूर रहने वाले इन भगवा रणनीतिज्ञों की प्रतिक्रिया, यदा कदा ही सार्वजनिक की जाती है। लेकिन नागपुर के हेडगेवार भवन तथा दिल्ली के झंडेवालान स्थित केशव कुंज से रिसकर आई जानकारी से साफ है कि आरएसएस नीतिकार जानते थे कि ऐसा होने जा रहा है। अंदरूनी लोग कहते हैं कि आरामदायक बहुमत के साथ सत्ता में वापस लौटने में भाजपा सरकार की
असफलता कोई आश्चर्यजनक घटना नहीं है। झडेवालान में विश्लेषक कई महीनों से केन्द्र में भाजपा के समग्र प्रदर्शन पर निगाह रखे हुए थे और मूल्यांकन कर रहे थे तथा विभिन्न राज्यों से शाखा स्तर से प्रतिक्रियाएं और जानकारियां प्राप्त करते रहे हैं।

हिमाचल प्रदेश और गुजरात के लिए चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा होने के हफ्तों पहले आरएसएस देश में धरातल की स्थिति को स्पष्ट रुप से समझ चुकी थी। एक तो, प्रधानमंत्री की निजी लोकप्रियता घट रही है दूसरे भाजपा की सीटों की संख्या 2014 के लोकसभा चुनाव में चरम पर पहुंच चुकी है, तथा इसका विधानसभा चुनाव में गिरना तय है। गुजरात के चुनाव परिणामों ने ये दोनों ही आकलन सही सिद्ध कर दिये हैं। जहां तक स्वयं मोदी का सम्बन्ध है उनके घोर प्रयासों के बावजूद, मोदी का करिश्मा राज्य की जनता के कुछ नाराज़ वर्गों को पुन: आश्वस्त करने तथा उनके वोट प्राप्त करने के लिए पर्याप्त नहीं था। वैसे भी प्राकृतिक नियम है कि किसी भी चीज का बार-बार उपयोग किया जाए तो उसकी उपयोगिता कम हो जाती है।
2019 के आम चुनावों के दृष्टिकोण से जो बात अधिक चिंताजनक है वह यह कि भाजपा गुजरात में जितने भी मत खींच पाई वे राज्य में उसके बोट प्रतिशत से कम हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को मोदी के गृह राज्य में 63 प्रतिशत वैध मत प्राप्त हुए थे। हाल ही में समाप्त हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की मतों में हिस्सेदारी में भारी गिरावट हुई और यह 49 प्रतिशत रह गयी। 2014 में भाजपा 165 विधानसभा क्षेत्रों में आगे रही थी। इस बार पार्टी को 100 से भी कम मात्र 99 सीटें मिली हैं।
किन्तु आरएसएस के गणना करने वाले नीतिकारों को 2019 में संसद के लिए होने वाले की चिंता अधिक है। उन्हें विश्वास है कि भाजपा 2014 के “चरम बिन्दु” तक पुन: नहीं पहुंच पाएगी। इसका तर्क यह है किपश्चिमी हिन्दी भाषी राज्यों से सांसदों की संख्या बढ़ने की गुंजाइश नहीं है। यही कारण हैं कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को पूर्वी तथा दक्षिणी राज्यों में पहुंचकर भाजपा का आधार बढ़ाने के निर्देश दिए गये।

अभी तक ऐसे कोई संकेत नहीं हैं कि पूर्व में पश्चिमी बंगाल तथा दक्षिण में केरल जैसे राज्यों में पैठ बनाने की आक्रामक गतिविधि से चुनावों के संदर्भ में कोई लाभदायक परिणाम मिले हैं। आरएसएस के विश्लेषकों ने आखिल भारतीय राज्यवार चार्ट तैयार किया है। इसमें 2014 में जीती गयी संसदीय सीटों तथा 2019 में होने वाली संभावित हानि या लाभ को सूचीबद्ध किया गया है।

जितना संभव हो सकता है उतने आशावादी किन्तु कड़वी सच्चाई के साथ पूर्वानुमान उपलब्ध कराने के लिए कई आर्थिक सामाजिक तथा राजनैतिक घटनाक्रमों तथा प्रवृतियों को भी ध्यान में रखा गया हैं।

राज्यवार चार्ट में भाजपा द्वारा- 2014 में जीती गयी सीटें तथा उसके बाद 2019 की यथार्थवादी संख्या दी गयी है। गुजरात में गत बार 26 सीटें जीती गयी थीं, अगले लोकसभा चुनाव में यह 20 रह जाएगी। हरियाणा में 7 से 5, हिमाचल में 4 से 3, दिल्ली में 7 से घटकर 5, पंजाब में 2 से 1 , जम्मू एवं कश्मीर में मौजूदा तीन कायम रहेंगी, महाराष्ट्र में 41 से 35, उत्तर प्रदेश में 73 से 50 (या 30 भी), मध्यप्रदेश में 26 से 18 तथा उससे भी कम, छत्तीसगढ़ में 10 से 8 या 9,राजस्थान में 25 से 15 या कम, बिहार में 3 से बढ़कर 30 तक संभवत, झारखंड में 4 से बढ़कर 8 या 10 भी हो सकती हैं। पश्चिम बंगाल में अभी दो सीटें, दाजीलिंग और आसनसोल भाजपा के पास हैं जो छिन सकती हैं, और गिनती शून्य रह सकती है। ओडिशा में अभी एक सीट हैं जो बढ़कर 7 या 8 हो सकती है। कर्नाटक की 18 सीटें यथावत बनी रहने की संभावना है। तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और केरल में कोई लाभ होने का अनुभव नहीं हैं।
यदि अनुमानित हानि और लाभ को जोड़कर देखा जाए तो 19 वीं लोकसभा में भाजपा सांसदों की संख्या उनको वर्तमान संख्या से 40 या 50 तक भी कम रह सकती हैं। वास्तविक आंकड़े कुछ भी रहें, महत्वपूर्ण मुद्दा यही है कि आरएसएस की सोच यह है कि मोदी के नेतृत्व में भाजपा “2014 के चरम” के आसपास भी नहीं पहुंच पाएगी।
मत दिलाने वाले के नेता के रूप में मोदी के फीके पड़ते करिश्मे और राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के पुनर्जीवित होने के संकेतों के साथ भगवा खेमे के लिए चिंतित होने का उचित कारण हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Share post:

Subscribe

spot_imgspot_img

Popular

More like this
Related

Lapalingo Spielsaal 10 Provision gratis! Freispiele & BonusCode

ContentMr Green Treuebonus bloß ferner via EinzahlungBestandskunden Boni as...

Better On line Black-jack Internet sites Us Play Blackjack On line

Concurrently, web based casinos provide lucrative subscribe incentives you...

iWild Spielbank über 50 kostenfrei Spins: Nachfolgende ausführlicher Testbericht

ContentDie beliebtesten Blackjack SpieleLuckyElf Spielsaal Erfahrungen: Wie gleichfalls über...