उदयपुर के सबसे प्रसिद्द और प्राचीन मंदिर बोहरा गणेश जी जहाँ हर भक्त श्रद्धा और विश्वास से अपनी मनोकामना के साथ आता है। यह ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर लगभग 350 साल पुराना है। बोहरा गणेश के नाम से यह भव्य मंदिर पहले तो शहर की सीमा से बाहर बनाया गया था लेकिन जैसे-जैसे शहर का विस्तार होता गया मंदिर शहर की सीमा के अंदर आता गया। यह मंदिर अब इतना लोकप्रिय हो चूका है की लोग इसके आस पास के क्षेत्रों को भी बोहरा गणेश जी के नाम से ही जानते है।
आइए अब जानते है इस मंदिर के नाम के पीछे की कहानी के बारे में –
आज से लगभग से 70-80 साल पहले जब किसी व्यक्ति को अपने घर में शादी समारोह या व्यावसाय के लिए धन की आवश्यकता पड़ती तो वो अपनी इच्छा को एक कागज़ की पर्ची पर लिख देते और भगवान के सामने रख देते थे। बोहरा गणेश किसी भी रूप में उनके लिए धन की व्यवस्था जरूर करते थे। कई सारे लोगों का यह भी कहना है की मंदिर उस व्यक्ति को पैसा उपलब्ध करवाता था केवल इस शर्त पर की उसे वह पैसा ब्याज समेत वापस लौटाना होगा। पुराने समय में यह काम बोहरा लोग करते थे, इसलिए इनका नाम बोहरा गणेश जी पड़ गया। पुराने समय में इस मंदिर को “बोरगनेश” के नाम से भी जाना जाता था।

पौराणिक इतिहास की बात की जाए तो यहां की प्रतिमा त्रेता युग कालीन है। कालांतर में जैसे-जैसे राजा महाराजा गण आते गए वैसे-वैसे वो अपना योगदान इसमें देते रहे। इस मंदिर की खासियत यह है की यहां से जो भी भक्त प्रार्थना करता है, हाजरी करता है वो यहां से कभी खाली हाथ नहीं जाता है क्योंकि इस मंदिर के साथ-साथ कई सारे अवतारों का भी वर्णन है। जैसे त्रेता युग में भगवान् श्री राम इस मंदिर के साक्षी है। स्वयं महाबली रावण इस मंदिर के साक्षी है। पांचो पांडव इस मंदिर के साक्षी है। द्वापर युग के भगवान् श्री कृष्णा भी इस मंदिर के साक्षी है और एक समय में यहां का जो इलाका था ताम्बावती नगरी के नाम से विख्यात था।

यहां पर मुख्य मेला गणेश चतुर्थी को लगता है। इसमें उदयपुर से, राजस्थान के कोने कोने और भारत के कोने कोने से यहां तक की विदेशों से भी काफी लोग भगवान् के दर्शन करने आते है। यहां भक्तों की भगवान के ऊपर बहुत ही ज्यादा आस्था है।
गणेश चतुर्थी के दिन रात्रि जागरण होता है, फिर भगवान् की आरती होती है, आरती होने के पश्चात गणेश चतुर्थी लागू हो जाती है फिर प्रातःकाल भगवान का पंचा अभिषेक किया जाता है। उसके पश्चात भगवान का वागा अर्थात श्रृंगार की प्रगति चालु होती है जो षोडशो उपचार की विधि से संपन्न होती है। उसके बाद चांदी का चोला आवरण चढ़ाया जाता है उसके पश्चात सोने का आवरण चढ़ाया जाता है फिर उसके ऊपर मखमल की विशेष पोशाक धारण करवाई जाती है जो विशेष मोतियों से, पन्ना, मानक,मोती, हिरे, जेवरात, सोने और चांदी के धागो से बनी हुई पोशाक भगवान को चढ़ाई जाती है फिर उसके पश्चात भगवान् को पौराणिक काल के जेवर चढ़ाए जाते है।

यह मन्दिर मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के काफी नजदीक है बुधवार को भगवान गणेश की पूजा का विशेष दिन माना जाता है। बोहरा गणेश जी मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु श्री गणेश जी की पूजा और प्रसाद (मिठाई) चढ़ाने आते हैं। उनकी पूजा के बिना कोई भी पवित्र कार्य पूर्ण नहीं माना जाता है।

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