स्थानीय अधिकारियों और नेताओं की मिलिभगत के बिना द ललित के अवैध गेट खुलना नामुमकीन।

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उदयपुर। भाजपा शासनकाल में भ्रष्‍टाचार किस कदर तक फैला हुआ है इसका ताजा उदाहरण इस बात से लगाया जा सकता है कि जिस करोड़ों रुपए की सरकारी होटल को कोड़ियों के दाम में खरीद लिया था, उसके काफी हिस्से में झील किनारे निर्माण भी करवा दिया और अब सेटिंग करके नियम विपरीत गेट भी खोल दिए हैं। जबकि कुछ समय पूर्व स्‍थानीय नगर निगम ने उक्‍त गेट को बंद करवा दिया था। अब स्वायत्त शासन विभाग ने आदेश देकर नगर निगम द्वारा बंद करवाए “द ललित होटल” के गेट खोलने का फरमान जारी कर दिया है। स्वायत्त शासन विभाग ने फतहसागर से 100 कदम की दूरी पर होटल दी ललित (लक्ष्मी विलास) के दो गेट खोलने के आदेश दे दिए हैं। बिना मंजूरी बने ये दरवाजे नगर निगम ने बंद करवाए थे। स्‍थानीय स्‍तर पर विरोध होने पर निगम की बोर्ड बैठक में पूरे सदन ने विरोध किया था और जिसके बाद गेट के आगे रेडीमेड ब्राउण्डीवाल खड़ी करवा दी थी। अब सवाल यह उठता है कि जब नगर निगम ने इसको अवैध माना था तो अधिकारियों ने इसको सही कैसे मान लिया?
शहर में स्थित जिस बेशकीमती सरकारी होटल को तत्कालीन सरकार उस समय के निजामों ने कोडियों के दाम बेच दिया था उसी होटल में अब अवैध रूप से दरवाजे भी बना दिए गए और उन्हें खोलने को फरमार विभाग की ओर से भी आ गया। इससे बडी कमजोर उदयपुर के सूरमाओं के लिए ओर कोई नहीं होगी। इमानदारी का दम भरने वाले महापौर जी को सबसे पहले राज्य सरकार के इस फैसले की आलोचना करते हुए तुरन्त प्रभाव से इस पर एक्शन लेना चाहिए ताकी जनता के बीच में उनकी यह छवि बरकरार रहे। वहीं अब शहरवासियों को भी राज्य सरकार के इस फैसले के विरोध में खड़े होकर प्रदर्शन करना चाहिए और हर हाल में इस दरवाजे को बंद कराने की कोशिश करनी चाहिए अगर ऐसा नहीं हुआ तो यकीन मानिए वह दिन दूर नहीं जब फतहसागर का यह छौर आम लोगों के लिए बंद सा हो जाएगा और खास लोग इसे अपनी विलासिता का स्थान बना लेंगे। इस पूरे मसले पर क्षेत्र में पूर्व पार्शद अजय पोरवाल ने स्थानीय प्रषासन की मिलीभगत होने का दावा किया है। उनकी माने तो अगर यहां के लोग इस फैसले के खिलाफ होते तो आज भी विरोध कर सकते थे। लेकिन उनका मौन रहना साबित करता है कि यहां से ही तथाकथित होटेल मालिक को राजधानी से स्वीकृति लाने का इषारा किया गया हो।

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