एमबी चिकित्सालय के आर्थोपेडिक विभाग का मामला

पांच वर्षीय बालक हुआ परेशान

लाइफ लाइन से भी दे दिया अवधि पार इंजेक्शन

उदयपुर, महाराणा भूपाल चिकित्सालय में डॉक्टरों की लापरवाही का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ५ साल के एक मासूम बच्चे की ज़िन्दगी से डॉक्टर खेलते रहे और उस बच्चे को सरकारी और निजी अस्पताल के बिच फूटबाल बना दिया करीब डेढ महीने तकलीफ झेलने के बाद पता चला कि उसके पैर में फ्रेक्चर है। इस बीच डॉक्टरों की लापरवाही के चलते बच्चे के पैर में पस पडने की वजह से तीन बार ऑपरेशन हो गया।

अम्बावगढ निवासी पांच वर्षीय मोहम्मद यावर गत १९ जुलाई को स्कूल से आते वक्त गिर पडा और उसके घुटने में चोट लग और सूजन आ गई। यावर की मौसी परवीन उसे एम.बी. चिकित्सालय लेकर गई जहां जांच के बाद आर्थोपेडिक डॉक्टर आर.एन. लढ्ढा ने बता दिया कि फ्रेक्चर नहीं है और पेर में कोई और बीमारी है जिसकी वजह से सूजन आई है। बच्चे को भर्ती किया और जो बीमारी नहीं थी उसका ईलाज शुरू कर दिया। तीन दिन बाद भी बच्चे को राहत नहीं मिली और बच्चे के पेर में पस पड गया। डॉक्टरों ने उसका ऑपरेशन कर दिया और पस निकाल कर परिजनों को बताया। दो दिन बाद छुट्ट दे दी लेकिन फिर भी बच्चे के दर्द में कोई राहत नहीं मिली फिर से डॉ. लढ्ढा को दिखाया गया। यावर की मौसी ने बताया कि लढ्ढा ने उन्हें बच्चे को अस्पताल भेज दिया यह कहकर कि यह आर्थोपेडिक मामला नहीं है, जहां डॉ. सरीन ने पांच दिन ईलाज करने के बाद कहा कि यहां कुछ नहीं हो सकता। अगर इसको ठीक करना है तो कुछ पैसा खर्च करो और निजी अस्पताल में दिखाओ। डॉ. सरीन ने उन्हें चौधरी हॉस्पीटल सेक्टर ५ का पता लिखकर दिया जहां डॉ. शैलेन्द्र चौधरी ने फिर एक बार बच्चे के पेर का ऑपरेशन किया और ३ दिन बाद छुट्टी दे दी लेकिन मासूम यावर की तकलीफ अभी भी खत्म नहीं हुई, ना ही दर्द खत्म होने का नाम ले रहा था, ना ही पस खत्म हो रहा था। गलत दवाईयों के इन्फेक्शन की वजह से शरीर के अन्य भागों में भी इन्फेक्शन बढ गया। परेशान परिजन और बच्चे की मौसी परवीन फिर से उसे एमबी चिकित्सालय लेकर गई क्योंकि अब उसके पास निजी अस्पताल में ईलाज के पैसे भी नहीं थे। एमबी चिकित्सालय में यावर को दो दिन पहले हालत गंभीर होने पर बच्चों के आईसीयू में भर्ती किया गया जहां उसका ईलाज शुरू हुआ और वहीं डॉ. आसिफ की सतर्कता के चलते बच्चे का एक बार फिर डीजीटल एक्सरे किया गया तो पाया कि बच्चे के पैर में तो फ्रेक्चर है। परेशान परिजन अपने दर्द से कराहते बच्चे को बिना वजह डेढ महीने तक डॉक्टरों की लापरवाही के चलते लिये-लिये फिरते रहे। जिन्हें यह भी नहीं पता कि उसको बीमारी क्या है।

आखिरकार आर्थोपेडिक डॉक्टर विनय जोशी ने जांच कर प्लास्टर चढाया और आईसीयू में भर्ती किया लेकिन यहां भी उनकी तकलीफ कम नहीं हुई और उसे लगने वाले महंगे इंजेक्शन जब लाइफ लाइन पर लेने गये तो मेडिकल स्टोर वाले ने एक्सपायर डेट के

 

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