सुविवि में समाजशास्त्र विभाग की दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी

उदयपुर, नीदरलैंड की यूट्रीच यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर टीजे कम्पोस्ट ने कहा कि लोकतन्त्र में केवल उन्हीं लोगों का वर्चस्व होता है जो ताकतवर होते है चाहे वह सत्ता की ताकत हो या धन की, शेष लोग दलित सा जीवन जीने को मजबूर होते है।

प्रोफेसर कम्पोस्ट शुक्रवार को यहां मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह में बोल रहे थे। यह संगोष्ठी संस्कृति, समाज, और लैंगिक परिप्रेक्ष्य में दक्षिणी एशिया के दलित समुदाय विषय पर आयोजित की जा रही है। उन्होनें कहा कि दलित ओर वंचित समुदाय भी मास मीडिया की तरह है जहां ६० से ६५ फीसदी लोगों को बेहतर कवरेज मिलता है जो सत्ता के इर्द गिर्द होते है या ताकतवर होते है वे खबरों की सुखियों की तरह होते है बाकी के बचे हुए लोग संक्षिप्त समाचारों की तरह है। इसी तरह लोकतंत्र में दो प्रतिशत लोग जो सत्ता से जुडे होते है वही शक्तिशाली होते है और शेष प्रजा जिसके ९८ प्रतिशत लोग दलित और वंचित ही होते है। यह लोकतंत्र की त्रासदि है लेकिन यही दलित लोग लोकतंत्र के आधार स्तंभ भी होते है जिस पर समाज खडा होता है। उन्होंने यूरोपीय समाज और एशियाई समाज की तुलना करते हुए कहा कि दोनों की संस्कृतियों और रहन सहन में अन्तर है इसलिए दोनों के दलित और वंचित वर्ग में भी समानताएं कम है। इस बात के प्रकाश में उन्होंने लोकतंत्र को ओर मजबूत बनाने और जनता को अपने अधिकारों के प्रति जागरुक होने की बात कही। समारोह के मुख्य वक्ता इंडियन सेाशोलोजिकल सोसायटी के अध्यक्ष प्रो.आईपी मोदी ने कहा कि भारतीय इतिहास में दलितों और वंचितो को जितना महत्व दिया जाना चाहिए था उतना नहीं मिला। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद इस दिशा में हजारों शोध कार्य हुए जिनका नए दौर के भारत की रीति नीति में महत्व दिया गया। नए शोधों में ऐतिहासिक तथ्यों को नए सिरे से परिभाषित किया गया है। उन्होंने ओपनिवैशिक काल में स्त्रियों की दशा को रेखांकित करते हुए उनकी तुलना वर्तमान दौर से की। उन्होंने कहा कि आज महिला सशक्तिकरण हुआ है तथा उन्हें पूरा महत्व भी दिया गया है लेकिन तब महिलाओं की हालात बेहतर नहीं थी। सती प्रथा इसका उदाहरण था। प्रख्यात समाजशास्त्री रणजीत गुहा के शोध कार्यो का हवाला देते हुए प्रो मोदी ने कहा कि अस्सी के दशक में उन्होंने वंचित और दलित वर्ग के लिए जो शोध कार्य किए वे भारतीय लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित हुए। इतिहास के संदर्भ में उन्होंने कहा कि हर जगह तथाकथित संभ्रान्त वर्ग का उल्लेख है क्योंकि उनका ही आधिपत्य था लेकिन अब लोकतंत्र है, समानता है। अब हमे असंतुलित संस्कृति और समाज को समानता के धरातल पर लाना होगा।

कार्यक्रम के अध्यक्ष सुखाडिया विवि के कुलपति प्रो आईवी त्रिवेदी ने कहा कि हमारा क्षेत्र आदिवासी बहुल वाला है और इस आदिवासी समाज को रोटी , कपडा और मकान से बढकर भी कुछ चाहिए इसी दिशा में इस संगोष्ठी में मंथन किया जाए। इस संगोष्ठी के जो भी निष्कर्ष सामने आएंगे हम उन्हें राजस्थान सरकार को भेजेंगे ताकि आदिवासियों के लिए बेहतरीन जीवन यापन करने की दिशा में नए सरकारी प्रयास किए जा सके।

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