8310_1उदयपुर। जिले के जावरमाइंस क्षेत्र से पिछले दिनों भूख और बीमारी के कारण बेहाल स्थिति में यहां गुलाबबाग जंतुआलय लाई गई मादा पैंथर ने सोमवार तड़के दम तोड़ दिया। वह गर्भवती थी। पोस्टमार्टम के दौरान उसके गर्भ से दो मादा शावक निकले, जो भी मृत मिले।

गत 3 जून को उक्त मादा पैंथर सराड़ा तहसील की नेवातलाई पंचायत के बेडदरा फला में एक खेत में पड़ी मिली थी। वह चलने-फिरने में असमर्थ दिख रही थी। ग्रामीणों की सूचना पर वन विभाग के शूटर ने टैं्रक्यूलाइज कर उसे पकड़ा था। उदयपुर लाए तब उसे 106 डिग्री बुखार था। हालांकि रविवार को चिकित्सकों ने चेकअप किया तब बुखार 6 डिग्री उतरकर 100 पर आ गया था। पैंथर खाने में सूप के अलावा कुछ नहीं ले रही थी। जंतुआलय में सोमवार सुबह केयरटेकर रामसिंह पैंथर के पिंजरे में पहुंचा तो वह मृत पड़ी थी। बाद में पशु चिकित्सालय में मेडिकल बोर्ड से उसका पोस्टमार्टम कराया गया। शाम को पैंथर व दोनों मृत मादा शावकों को जंतुआलय में जला दिया गया। सहायक वन संरक्षक केसरसिंह राठौड़ ने बताया कि उक्त मादा पैंथर की उम्र 3 साल थी। रविवार शाम को उसने सूप भी नहीं लिया था।

8315_3खाली पेट और एनीमिया से पीडित
गत 3 जुलाई को इलाज के लिए उदयपुर लाई गई मादा पैंथर बेहद कमजोर थी। रक्त जांच में प्रोटोजोआ पाया गया, जो शरीर पर टिक्स (चींचड़े) द्वारा संचरित होता है। प्रोटोजोआ से रक्त की श्वेत कणिकाएं नष्ट हो रही थीं और पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी उसके एनीमिया (रक्ताल्पता) से पीडित होने की पुष्टि हुई है। पोस्टमार्टम करने वाले डॉ. शक्तिसिंह, डॉ. महेन्द्र और डॉ. सुरेश जैन के अनुसार पैंथर का पेट पूरी तरह खाली था। वह 5-7 दिन में शावकों को जन्म देने वाली थी।

भूखे पैंथरों पर टूटता काल

मेवाड़ के जंगलों में कभी खा-पीकर आनन्द में जीने वाले पैंथरों के लिए पेट भरना अब मुश्किल हो रहा है। दिन में एक बार तो दूर, तीन-चार दिन में भी पेट भरने का जुगाड़ नहीं हो पा रहा है। ऎसे में वे बस्तियों में घुसकर इन्सानों को निवाला बना रहे हैं। या, भूखे रहकर अकाल मौत के मंुह में जा रहे हैं। इससे हमारे जंगलों में पैंथरों की संख्या तेजी से घट रही है। मेवाड़ में पिछले वर्षो में सड़क हादसों में पैंथर मरने के कई मामले सामने आए थे। हालिया दौर में ऎसे हादसों में कमी आई है लेकिन अब भूख से मौतों के मामले आए दिन देखने को मिल रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार पहले गांवों की झाडियों में ही पैंथरों को भोजन मिल जाता था। आज ऎसे स्थान खेतों और आबादी में बदल चुके हैं। ऎसे में पैंथरों के भोजन के लिए केवल जंगल बचे हैं लेकिन वहां पैंथरों के लिए जानवर नहीं बचे।

जंगलों में अवांछित हलचल बढ़ रही है। पैंथर आबादी में घुस रहे हैं। शिकार के लिए जानवरों की भारी कमी है। यह चिंता का विषय है।
– डॉ. सतीश शर्मा, वन्यजीव एक्सपर्ट

पहले ये खाते थे पैंथर
वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार पैंथर पहले रोजड़ों, सांभर, चिंकारा, खरगोश, लंगूर, काले हिरण का शिकार करते थे। चूहों और पक्षियों से भी कई बार वे भूख मिटाते थे लेकिन अब पैंथरों को ये शिकार नहीं मिल रहे हैं। खरगोश तो पैंथर का प्रिय भोजन है लेकिन अब खरगोशों की संख्या न के बराबर है। पैंथर पहले जंगल सहित पहाडियों, खेतों और झाडियों में भी शिकार करते थे लेकिन अब उसके लिए सीमित जंगल बचा है। आवास, सड़कें, रेल लाइन, विद्युत लाइन, होटल, शोर-शराबा आदि के कारण जंगलों में पैंथरों का सुकून छिन गया है।

भूख से यंू मरे पैंथर
गिर्वा तहसील की जावर पंचायत के उदियाखेड़ा फ ला के पहाड़ी क्षेत्र में 4 जुलाई को पैंथर मृत पाया गया। बाद में पता चला कि वह भूख और बीमारी के कारण कमजोर हो गया था। इतना कमजोर कि पहाड़ी से गहरी खाई में गिर पड़ा और जान निकल गई।
जगत गांव के एक खेत में 23 जून को पैंथर की करंट लगने से मृत्यु हो गई। वह भूख मिटाने के लिए बंदरों का शिकार करने पेड़ पर चढ़ा था लेकिन बिजली के तार की चपेट में आ गया।

यंू बस्ती में घुसे
राजसमंद के नेडच में पैंथर ने बच्चों को शिकार बनाया। वहां लोगों ने बच्चों को अकेला छोड़ना ही बंद कर दिया।
गत दिनों जावर माइंस इलाके में पैंथर घर में सोई बालिका को दबोच ले गया, जिसे बाद में मृत हालत में छुड़वाया जा सका।
जून में ही जावरमाइंस के देवपुरा स्थित माताजी खेड़ा में बाड़े में सोते वृद्ध कालू पर पैंथर ने हमला कर दिया था।

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