उदयपुर । कभी प्रदेश में शिक्षा की अलख जगाने वाला जनार्दराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्व विद्यालय (जे.एन.आर.यु.) पद लोलुपता एवं व्यवसायिकरण की होड के चलते विवादों के चक्रव्यु में फस गया है। इस संस्थान के संस्थापक शिक्षाविद् स्व. पण्डित जनार्दन राय नागर ने जिस उद्देश्य को लेकर एक मिशन के रूप में इस संस्था को संचालित किया था आज उनके परिजन उस उद्दश्य से भटक गए और स्वार्थ सिद्घी के चलते संस्था को राजनीति का अखाडा बना दिया।

घमासान का आरंभ अचानक नहीं हुआ धीरे-धीरे जलती चिंगारी ने यह विकराल रूप धारण किया है। परिवारवाद के चलते कर्मचारियों पर मन चाहे निर्णय थोपने से रोष बढता गया। कर्मचारियों को भली भंाति विदित था कि यदि परिवारवाद इस संस्था पर हावी रहा तो विश्व विद्यालय अनुदानआयोग द्वारा संस्था की मान्यता रद्द की जा सकती हैं ऐसी परिस्थितियों में एक और यहां अध्ययनरत हजारों विद्यार्थियों का भविष्य अधरझूल हो जाएगा वहीं दूसरी ओर यहां कार्यरत कर्मचारियों के रोजगार पर भी संकट आ सकता है । इधर निवर्तमान कुलपति का कार्यकाल समाप्ति पर था। कुलपति और कोई नहीं जनुभाई की पुत्र बधु डॉ. दिव्य प्रभा नागर ही थी। जिन्होंने कर्मचारियों को अपने तुगलकी फरमान से प्रताडत करना आरंभ कर दिया। कर्मचारियों को अपने विचारों की अभिव्यक्ति के अधिकार से भी वंचित कर दिया गया। परिणिति स्वरूप सुलगती चिंगारी ने विस्फोट का रूप ले लिया और डॉ. दिव्य प्रभा के विरूद्घ विरोध के स्वर तेल हो गए परिमत: उन्हें अपनी कुर्सी छोडनी पडी। आनन-फानन में तलाश जारी हुई। नये कुलपति की नियुक्ति के लिए गुप-चुप हुई बैठक में रजिस्ट्रार प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत को अस्थायी कुलपति का कार्यभार सौंपा गया। प्रो. सारंगदेवोत ने २ जून १२ को पदभार भी संभाल लिया हालांकि उनकी इस नियुक्ति को केवल छ:माह के लिए बताया गया हैं दूसरी ओर दिव्य प्रभा नागर को विद्यापीठ सलाहकार समिति में शामिल कर लिया गया और इसके निमित्त उन्हें ७५ हजार रूपये मासिक मानदेय की भी घोषणा जारी की गई।

इस प्रकार इस कहावत को चरितार्थ किया गया कि ’अंधा बांटे रेवडी और अपनों को देय’। कुल प्रमुख ने उक्त युक्ति का ही इस्तेमाल किया जिसने कर्मचारियों के रोष को भडकाने में अहम भूमिका निभायी। इसी के साथ कुल प्रमुख ने निष्ठावान कार्यशील कर्मचारियों को निशाना बनाते हुए कुलाधिपति प्रो. बी. एस. गर्ग को पदमुक्त करने के षडयंत्र के तहत एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर यह घोषणा कर दी कि प्रो. गर्ग ने अपने पद से त्याग पत्र दे दिया है। जब प्रो. गर्ग से इसकी पुष्ठी करनी चाहि तो गर्ग ने त्याग प. देने से इनकार किया। कुल प्रमुख ने फीर पलटी खाई और कहा कि वर्ष २०१० में प्रो. गर्ग ने अपने स्वास्थ्य के कारण त्याग पत्र सौंपा था। जिसे अब स्वीकार कर लिया गया है।

बडी हास्यास्पद स्थिति है कि वर्ष २०१० में प्रो. गर्ग ने त्याग पत्र दिया तो वे दो वर्ष से क्यों कार्य करते रहे। कुल प्रमुख ने दो वर्षों में नये कुलाधिपति के चयन की प्रक्रिया क्यों आरंभ नहीं कि तथा अब इतने समय बाद अचानक प्रो. गर्ग को हटाने के पीछे क्या ष$डयंत्र है। प्रो. गर्ग को हटाने की विज्ञप्ति जारी करने के बाद ३ जून रविवार देर रात एक हस्तालिखित विज्ञप्ति जारी कर बताया गया कि डॉ. जितेन्द्र कुमार तायलिया को कुलाधिपति नियुत्त* किया गया है। जितेन्द्र तायलिया के नियुक्ति पर जे. एन.आ.यू. के सभी कर्मचारी संगठन भडक उठे। यहां अध्ययनरत छात्रों ने भी रौद्र रूप धारण कर लिया और ४ जून को आरपार की लडाई के मूड में उतर गए। कर्मचारियों एवं छात्रों ने कुल प्रमुख को विवश कर दिया चाबीयॉ लौटाने को। आन्दोलनकारी कर्मचारी एवं छात्र इसपर भी सहमत नहीं हुए और उन्होंने कुल कर्मचारी संघ के बैनर तले बैठक कर कुल प्रमुख प्रपु*ल्लनागर नये कुलाधिपति जितेन्द्र तायलिया एवं संगठन सचिव भंवर गुर्जर को बर्खास्त करने, व्यवस्थापिका को भंग करने तथा अनुबंध पर चल रहे कर्मचारियों के स्थायीकरण की मांग को ले कर अनिश्चित काल के लिए विश्व विद्यालय बंद की घोषणा कर दी। डॉ. तायलिया को किसने चुना कुलाधिपति यह प्रश्न अभी मौंन हैं स्वयं डॉ. तायलिया इसका एक ही जवाब दे रहे है कि उन्हें कुल प्रमुख ने यह आदेश दिया हैं उल्लेखनीय है कि कुल प्रमुख किसी भी नियुत्ति* के लिए अधिकृत नहीं है। यह तथ्य संस्था का संविधान बताता है।

 

ऐसे होता है चयन:

जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ कुल का कुलाधिपति आजीवन सदस्य मण्डल द्वारा प्रस्तावित एक प्रतिनीधी, ऋत्विका जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्व विद्यालय द्वारा प्रस्तावित एक ्रप्रतिनिधी एवं व्यवस्थापिका जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ कुल द्वारा प्रस्तावित एक प्रतिनिधि की समिति द्वारा अध्यक्ष द्वारा के नाम का प्रस्ताव रखा जाता है। इस प्रस्ताव को व्यवस्थापिका में सर्वसम्मति से अनुमोदनके बाद ही कुलाधिपति की घोषणा की जाती है।

दत्त* प्रक्रिया कि इस पूरे प्रकरण में अनदेखी करते हुए तुगलकी फरमान जारी कर प्रो. गर्ग को पद से बेदखल करने का षडयंत्र रचा गया। यहां यह उल्लेखनीय है कि प्रो. गर्ग का कार्यकाल वैसे भी २०१३ में समाप्त होने वाला है तो प्रश्न यह उठता है कुल प्रमुख ने गर्ग को हटाने में जल्दी बाजी क्यो कि बहरहाल प्रौढ शिक्षा और रोजगाररत व्यत्ति*यों को वंचित शिक्षा से पुन: जोडने काध्येय ले कर आरंभ हुआ यह विश्वविद्यालय विकास के चरम पर पहुच कर पतन की ओर अग्रसर हो रहा है।इसे बचाने के लिए निष्ठावान कर्मचारी एवं छात्रों का समूह एकजुट है उनकी यह एकता संकल्पबद्घता क्या रंग लाती है यह भविष्य के गर्भ में छिपा है।

 

एक रहस्य यह भी: कथित रूप से नवनियुत्त* कुलाधिपति डॉ. जितेन्द्र तायलिया समिति के सदस्य रहे होंगे लेकिन विद्यापीठ के उत्थान में उनका कोई योगदान नहीं है। वे एक उद्यमी है और किसी भी व्यवसाय में लाभ हानि के अंतर को परखने की उनमें क्षमता है लेकिन वे किस दृष्टिकोण से शिक्षाविद् है यह प्रश्न यह बुद्घि ाीवियों के चिंतन का विषय बन गया है। उनका शिक्षा में कब कहां और क्या योगदान रहा यह शोध का विषय हो सकता है। लेकिन एक नजरिया साप* है विद्यापीठ के समक्ष एवं कुछ वर्षो में पल्लवित एक निजी विश्वविद्यालय जिसे तायलिया के समकालीन उद्योगपति भाइयों ने ही स्थापित किया तथा शिक्षाका व्यवसायिकरण करने का श्रेय हांसिल किया यह डॉ. तायलिया उनके अतिनिकट है। विद्यापीठ कुल की कुल सम्पत्ति का आंकलन किया जाये तो यह करीब २००० करोड रूपया है। अब इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि एक समक्ष संस्थान में अराजकता का लाभ लेकर उस संस्थान के हित लाभों को कोई भी प्रतिस्पर्दी छीन ले जाए तो अतिश्योत्ति* नहीं होगी।

 

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