7523_childजोधपुर. मसूरिया स्थित रामदेव अस्पताल में लेबर रूम के कर्मचारियों ने शनिवार को एक नवजात की जिंदगी खतरे में डाल दी। डॉक्टर प्रसव कराने के बाद बाहर चले गए और कर्मचारियों ने नवजात को लेबर रूम के हीटर के सामने लिटा दिया। इसके बाद वे भूल भी गए। इससे नवजात झुलस गई। उसके मुंह व हाथ झुलस गए।

 

यही नहीं, करीब एक घंटे तक अस्पताल प्रबंधन ने घटना को दबाए रखा। यहां शनिवार शाम को ही मधुबन हाउसिंग बोर्ड निवासी ज्योति को प्रसव के लिए अस्पताल में भर्ती करा गया। उसके बेटी हुई। ज्योति और उसके सभी परिजन नवजात बिटिया को देखने को आतुर थे। ज्योति की यह पहली डिलीवरी थी। जब ज्योति ने बेटी को देखा तो वह सन्न रह गई।

 

लाख मन्नतों के बाद मिली बेटी उसके हाथों में आई तब झुलसी हुई थी। बेटी की यह दुर्दशा देख ज्योति की रुलाई फूट पड़ी। फूल सी बच्ची की हालत देख ज्योति के पिता जितेंद्र की आंखें भी भर आईं। अब बच्ची को प्लास्टिक सर्जरी के लिए दूसरे अस्पताल में भर्ती कराया गया है। वहां उसकी हालत गंभीर है। एक घंटे दबाए रखी घटनात्न शाम चार बजे ज्योति ने बेटी को जन्म दिया।

 

प्रसव के बाद डॉक्टर अपनी ड्यूटी में व्यस्त हो गए और लेबररूम के कर्मचारियों ने यहां चल रहे हीटर के सामने नवजात को रख दिया। हीटर के ब्लोअर से निकल रही गर्म हवा से नन्ही जान का चेहरा व हाथ बुरी तरह झुलस गए। जब परिजनों को बच्ची सौंपी गई तो उसे देख सभी सन्न रह गए। परिजनों ने आपत्ति जताई तो डॉक्टरों ने पहले तो गलती मानी ही नहीं। इस बात पर परिजन भड़क गए और दो घंटे तक अस्पताल में विवाद चलता रहा।

 

स्वीपर ने बताया बेटा हुआ

 

करीब एक घंटे तक परिजनों को नवजात के झुलसने से ही से अनजान रखा गया। इस दौरान अस्पताल के स्वीपर ने तो परिजनों को बेटा होने की बात कर भ्रम पैदा कर दिया। लेकिन अस्पताल में पूरे दिन में एक ही डिलीवरी होने से यह बात साफ हो पाई कि बेटी ही हुई है और झुलसी बच्ची उनकी ही है।

 

अस्पताल ने गलती मानी

 

दो घंटे हंगामे के बाद अस्पताल निदेशक डॉ. डीके रामदेव ने माना कि गलती से बच्ची को लेबररूम में हीटर ब्लोअर के सामने रख दिया था। जिससे उसका चेहरा व हाथ झुलस गया। ज्यादा असर चेहरे पर है। बच्ची का उपचार अस्पताल करवा रहा है। प्लास्टिक सर्जरी सहित अन्य उपचार के लिए उसे निजी अस्पताल शिफ्ट कर दिया है।

 

 

निजी अस्पतालों पर अंकुश नहीं

 

निजी अस्पतालों पर नियंत्रण की कोई व्यवस्था नहीं है। राज्य सरकार ने गत वर्ष क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट लागू कर दिया। लेकिन अभी तक नियम पूरी तरह से तैयार नहीं हुए। प्रावधान लागू होने से ऐसे मामलों में निजी अस्पतालों की जिम्मेदारी तय की जा सकती है।

 

 

हमें गुमराह भी किया

 

पहले तो हमें अस्पताल वालों ने यह जानकारी ही नहीं दी। फिर अस्पताल के स्वीपर ने बेटा होने की बात कहते हुए गुमराह करने का प्रयास किया। बाद में बच्ची को इस हाल में देखा तो हम सब सकते में आ गए।

 

-पूनम, बच्ची के मामा

 

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