DSC_5621 उदयपुर, इतिहास विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा आयोजित विस्तार व्याख्यान अजंता की गुफाओं के स्थापत्य, शिल्प एवं चित्रकला में मुख्य वक्ता नार्थ महाराष्ट्र विश्वविद्यालय के प्रो. पी.डी. जगताप, मुख्य अतिथि प्रो. के. एस. गुप्ता, विशिष्ट अतिथि प्रो. सीमा मलिक तथा अध्यक्षता कला महाविद्यालय की अधिष्ठाता प्रो. फरीदा शाह ने की। व्याख्यान में उपस्थिति सभी विद्वानों, अतिथियों एवं श्रोताओं का स्वागत विभागध्यक्ष प्रो. दिग्विजय भटनागर द्वारा किया गया, उन्होने बताया कि अजंता की गुफाएं, बौद्ध स्थापत्य कला और चित्रकला की प्रमुख विरासत हैं। मुख्यवक्ता प्रो. पी. डी. जगताप ने बताया कि भारत में कुल ज्ञात 1500 प्राचीन गुफाओं मे से 1200 केवल महाराष्ट्र में मिली है और इनमें से 900 गुफाएँ बौद्ध धर्म से सम्बंधित है, जिन्हे विभिन्न काल अंतराल में हिन्दू शासकों द्वारा बनाया गया था। उन्होने बतलाया किया अजन्ता गुफाओं का महत्व स्थापत्य के साथ-साथ शिल्पकला, चित्रकारी और प्राकृतिक सौंदर्य के रूप में स्थापित है। इन गुफाओं से प्राप्त चित्रों मंे पद्मपाणि, दरबारी जीवन, भिक्षुक बुद्ध, मरणासन बुद्ध आदि महत्वपूर्ण है जिनका निर्माण प्राकृतिक रंगों से और पूर्ण बारीकी से किया गया हैं। इन चित्रों में प्रयुक्त नीला रंग विशेष रूप से ईरान से आयातित था। इसी के साथ गुफाओं का निर्माण अनायास या आकस्मिक रूप से नहीं बल्कि पूर्व नियोजित तरीके से किया गया था जो भारत की प्राचीन अभियांत्रिकी व्यवस्था का उत्कृष्ठ उदाहरण हैं।
मुख्य अतिथि प्रो. के. एस. गुप्ता ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मेवाड़ की चित्रकला में अजंता कला का प्रभाव परिलक्षित होता है, यहाँ भी रंगो का निर्माण प्राकृतिक रूप से किया जाता था एवं चित्रों की विषय वस्तु धर्म एवं संस्कृति आधारित थी। उन्होने प्राचीन भारतीय धरोहरों के क्षरण पर चिंता जताते हुए उनके संरक्षण पर बल दिया। कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि पी.जी. डीन. प्रो. सीमा मलिक ने इतिहास और साहित्य के

पारम्परिक सम्बन्ध को नई दृष्टि से व्याख्यायित किया और अजन्ता पर साहित्यिक दृष्टिकोण से शोध कार्य किये जाने पर बल दिया।
समारोह की अध्यक्ष कला महाविद्यालय की अधिष्ठाता प्रो. फरीदा शाह ने इस व्याख्यान को अत्यधिक महत्वपूर्ण बनाते हुए कहॉ कि अजंता गुफाओं का भारतीय संस्कृति में एक विशिष्ट स्थान है तथा ये गुफाएँ वर्तमान में भी कलाकारों के लिए किसी पाठशाला से कम नहीं है।
इस आयोजन में डॉ. प्रतिभा, डॉ. ललित पाण्डे, डॉ. पी.के. सिंह, डॉ. आर. एन. पुरोहित, डॉ. गोपाल व्यास, डॉ. सुयशवर्द्धन सिंह, प्रो. नीरज शर्मा आदि उपस्थित थे। मानविकी संकाय की अध्यक्षा प्रो. मीना गौड़ ने धन्यवाद ज्ञापित किया एवं कार्यक्रम का संचालन डॉ. पीयूष भादविया ने किया।

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