उदयपुर। ( पोस्ट पंच ) कुछ दिनों से बड़ा हंगामा मचा रिया है अपने साहेब की खादी वाली फोटू पे, ट्वीटर और फेसबुक हंगामा मच रिया है तीन दिन से । सब के मन में एक ही बात रही है “साहेब .. बापू के लिए तू तो हानिकारक है” लेकिन भाई क्या हमने सोचा है के गांधी और खादी कोई इंसान या प्रोडक्ट नहीं ये एक विचार है एक सोच है, और ये सोच अगर साहेब के मन में आई तो बापू के लिए हानिकारक कैसे हो गयी। क्या आपने गली मोहल्लों में स्कूल जाते नन्हे मुन्ने बच्चों को फेंसी ड्रेस प्रतियोगिता में गांधी बन कर जाते नहीं देखा ? वो बच्चे आखिर गांधी ही क्यूँ बनते है ? गोडसे के भेष में क्यों नहीं जाते ? सोचा कभी ? अब जिस संगठन या जिस विचारधारा से साहेब आये है वहां गांधी बनने का ज्ञान तो कभी नहीं दिया जाता है, तो अब अगर साहेब के मन में गांधी की तरह दिखने की इच्छा जाग रही है तो,…. एक तरह से जीत तो गांधी के विचारधारा की ही हुई है। चाहे गुजरात के हिंसा के घोड़े पे सवार हो कर साहेब पीएम की कुर्सी तक पहुचे हों लेकिन मुक्ति तो आखिर अहिंसा के चरखे में ही दिखाई दे रही है। क्यों के भाइयों और बहनों हर दिल में गांधी कही न कहीं बसा हुआ है,.. गोडसे को पूजने वालों की संख्या बहुत कम है .

कार्टून के लिए मशहूर कार्टूनिस्ट इस्माइल लहरी का आभार
कार्टून के लिए मशहूर कार्टूनिस्ट इस्माइल लहरी का आभार

अब ये बात अलग है कि तरह तरह के फेंसी ड्रेसों में और अलग अलग मुद्राओं में फोटो पड्वाना साहेब का शोक रहा है,. चाहे वह झुला झुलाते हो, चाहे वो ड्रम बजाते हो, माँ के साथ नाश्ता करते हो,. या चाहे वो चरखा चलाते हो ।
वैसे भी खादी के केलेंडर और डायरी पर बापू ७० सालों से चरखा चलाते चलाते थक गए थे और साहेब ने उन्हें ज़रा आराम देदिया है, अब अगर ज्यादा तीन पांच की तो मालूम है ना साहेब के मंत्री ने क्या कहा ” नोटों पर भी हंसता हुआ साहेब का फोटू चिपक जाएगा” फिर चिल्लाते रहना और जेब में लिए घूमते फिरना।
वैसे आज तक के इतिहास से और बचपन से लेकर बड़े होने तक लिए हुए ज्ञान से आपने क्या सिखा कि आज़ाद देश भारत का राष्ट्रपिता बनने के लिए बापू की तरह होना जरूरी है ? आज़ादी की लड़ाई लड़ना जरूरी है ? अंग्रेजों को भारत से भागना जरूरी है ? अगर साम्प्रदायिक दंगे देश में हो रहे हों तो बापू की तरह आमरण अनशन करना जरूरी है कि जब तक दंगे नहीं रुकेगें तब तक एक बूँद पानी की मुह में नहीं डालेगें। नहीं भाई अब ये सब कुछ जरूरी नहीं हमने तो बचपन से शिक्षा ही गलत ली है। राष्ट्रपिता बनने के लिए ये सब जरूरी नहीं है, अब मोजुदा दौर में बस अहंकारी सताधारी होना जरूरी है। अगर सत्ता हाथ में है तो आराम से बिना कुछ किये स्वयं भू राष्ट्रपिता बना जा सकता है। बापू को सालों आज़ादी की लड़ाई लड़ने के बाद जो राष्ट्रपिता की उपाधि मिली अब वो उपाधियाँ तो अहंकारी सत्ताधारी बनते ही अपने आप ली जा सकती है। फिर खादी का ब्रांड एम्बेसेटर बनना तो मामूली बात है। सत्ता हाथ में हो तो ये सोचने की जरूरत नहीं की आखिर खादी चलन में क्यों आई थी,.. अंग्रेजो को भारत से भगाने में खादी का क्या योगदान रहा। केसे एक हाथ से बना हुआ कपड़ा पुरे देश में एक विचारधारा बन गया, ये सब सोचने की जरूरत नहीं ये सब फ़ालतू बाते है। सत्ता हाथ में हो सबसे ऊँची कुर्सी पर बैठ गए साहेब बन गए तो फिर जहाँ मर्जी फोटू चिपकाओ, एक फेशनेबल चरखे और फेशनेबल कपड़ों के के साथ शानदार स्टाइल में पूरा फोटो सेशन करवाओ और चिपका दो जहाँ मर्जी हो। चिल्लाने वाले चिल्लाते रहेगें कोई फर्क नहीं पड़ता वेसे भी चिल्लाने और विरोध करने के नए नए मोके देते रहना चाहिए ताकि पुरानी बाते भूलते रहे और नए ढकोसलों में लोग उलझे रहे ।
लेकिन काश… काश एसा होता के फेंसी ड्रेस में गांधी की पोशाक पहनने वाले बच्चे सच मच के गांधी बन के उनकी विचारधारा पे चलने लगते तो देश में ३० प्रतिशत से ज्यादा गांधी, भगत सिंह सुभाषचंद बॉस या कोई महापुरुष होते क्यों कि हर एक ने बचपन में स्कूल में यह भूमिका कभी न कभी तो जरूर निभाई ही होगी चाहे खेल खेल में ही सही।

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