उदयपुर। आज अखबारों में इस बात का खुलासा एक खबर से हुआ कि ७ तारीख को हुए शहरी विधानसभा चुनाव में शहर के कोनसे मतदान केंद्र से कोनसे वार्ड से किस प्रत्याशी को कितने वोट मिले। यह खबर हर जगह उस विधानसभा क्षेत्र के हिसाब से अखबार में छपी होगी। क्या यह जानकारी चुनाव आयोग को पब्लिक करवानी चाहिए ? क्या यह सही प्रक्रिया है कि गुप्त मतदान करवा कर बाद में उसको जारी करवा दिया जाए की कहाँ से किसको कितने वोट मिले। इस प्रक्रिया से चुनाव जीतने वाले विधायक को यह पता चल जाता है की किस क्षेत्र से उसको किसने ज्यादा वोट किये और किसने कम वोट किये ऐसे में पांच साल तक उसका रवैया उस क्षेत्र के प्रति पक्षपात पूर्ण रहता जहाँ से उसको वोट नहीं मिले।
उदयपुर पोस्ट ने जब यह सवाल लोगों से किया तो ९५ प्रतिशत लोगों का मानना है की यह जानकारी जारी नहीं करनी चाहिए।
अक्सर जन प्रतिनिधियों को यह कहते हुए सूना गया है जनसभाओं में और कार्यकर्ताओं के बिच की फलां जगह से हमको वोट नहीं मिले तो उस क्षेत्र के बारे में क्यों सोचा जाए।
शहर में ऐसे कई क्षेत्र है जहाँ पर चुनाव जीतने वाले प्रत्याशी गुलाबचंद कटारिया को बहुत कम वोट मिले ऐसे में क्या उनका रवैया पक्षःपात पूर्ण नहीं हो सकता।
उदयपुर पोस्ट को कई लोगों ने यह भी बताया कि सवीना क्षेत्र में लगने वाली डिस्पेंसरी इसलिए वहां से कही और शिफ्ट करवा दी की मौजूदा विधायक का कहना था कि तुम्हारे क्षेत्र से हमको वोट ही कितने मिले है कि हम कुछ सोचे। ऐसे में चुनाव आयोग द्वारा यह बताना की कहाँ से कितने वोट किस प्रत्याशी को कितने मिले है सही दिशा में रखा हुआ कदम नहीं है। उदयपुर पोस्ट के एक पाठक ए आर खान कहते है की जब बैलेट पेपर से चुनाव होते थे तब अलग अलग पेटियों से १०- १० की गड्डी बना कर मिक्स की जाती थी जिससे यह जानकारी नहीं मिलती की कहाँ से कितने वोट मिले है लेकिन जब से ईवीएम मशीने आयी है तब से यह बात अगले दिन सामने ाजारती है की किस प्रत्याशी को शहर के किस क्षेत्र से कितने वोट मिले और कितने नहीं मिले।

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