रिपोर्ट – मनु राव
IMG-20150927-WA0021उदयपुर । दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी अंचल में गुजरात राज्य से जुडे कोटड़ा के पास आंजणी गांव में करीब डेढ वर्ष से खुंटी पर लटकी लाश अब भगवान से मोक्ष की गुहार कर रही है। कानूनी नियमों का हवाला देेते हुए दोनो राज्यों की पुलिस और सरकारें अपना पल्ला झाडने का प्रयास कर रही है। वहीं यहां की स्वयंभू पंचायतें पांच लाख रूपए की हर्जाना राशी नहीं देने तक शव को उतारने तक में तैयार नहीं है।
दरअसल ये कहानी अजमेरी नाम के उस युवक की है जो डेढ वर्ष पहले अपनी बहन से मिलने राजस्थान के एक गांव में गया था, लेकिन फिर जिन्दा नहीं लौटा। अजमेरी के भाईयों ने जंगलों में से उसकी लाश की तलाश कर उसी के घर में खुंटी पर टांग दी और बहनोई और भाणजों पर हत्या का आरोप मढते हुए पांच लाख नहीं मिलने तक अंतिम संस्कार नहीं करने की चेतावनी दे दी।
गुजरात और राजस्थान प्रदेश के सीमा पर लगा निचली आंजणी कस्बा जहां पर कभी 35 वर्षीय अजमेरी और उसके परिवार की चहल पहल से ये घर आबाद रहता था, लेकिन अब ये आंगनवाडी एक खण्डहर में तब्दील हो गई है। मानवीयता की सारी हदों को तार तार करने वाली इस कहानी के किरदार और कोई नहीं अजमेरी के ही परिजन है। चार भाईयों में सबका चहेता अजमेरी अपनी बहन का भी लाडला हुआ करता था। सभी आपस में मिलजुल कर रहते थे और अपना जीवन यापन करते थे। साल 2013 में अजमेरी के साथ ऐसा वाक्या हुआ कि उसे यह जहां छोडकर जाना पडा। रहस्यमयी तरीके से हुई भाई की मौत का ईल्जाम परिजनों ने उसकी सगी बहन के ससुराल वालों पर डाल दिया और आज तक अजमेरी के शव को पंच तत्वों में विलीन नही किया जा सका। बहन से अपना पीहर छुट गया तो भाईयों के हाथ की कलाई राखी से सुनी हो गई लेकिन रूढीवादी आदिवासी परम्परा ने अपने नियम के आगे भाई बहन के रिश्तों की अहमियत भी नहीं समझी।

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यहां सिर्फ रिश्तों का कत्ल नहीं हुआ इस कहानी का दूसरा पहलू जुडा है हमारी खाकी से ! जो अपराधियों में डर और आमजन में विश्वास की बात तो करती है लेकिन यहां पर नतमस्तक हो जाती है। अजमेरी के घर पर लटकी उसकी लाश को दोनो ही राज्यों की खाकी ने देखा पूछताछ भी की लेकिन इस अपाराधिक कृत्य का निवारण करने की बजाय पंचायत के आदेश का इन्तजार कर रही है और अपने क्षेत्र की वारदात नहीं होने का हवाला देते हुए इतिश्री कर रही है।
अजमेरी के शव की खूंटी पर लटकने की बात हवा की तरह दोनों राज्यों में फैल गई है, लेकिन बेबस और लाचार सरकारें मुकदर्शक बन बैठी है। वोटों के जुगाडू नेता और आदिवासी कानूनों से डरती खाकी कैसे भी करके मुद्दे से हटने का प्रयास कर रही है। बडे अधिकारी भी यहां आए जांच की लेकिन मामला दूसरे राज्य का बताकर पूरी घटना से हटने में ही भलाई समझी।
इधर अजमेरी के परिवार के सगे भाईयों को भाई की मौत का शिकन नहीं है, न ही उसके साथ बिताए पलों की कोई याद उनके जहन में जिन्दा है। उन्हें अब चाहिए तो सिर्फ मौताणा जो उनकी सदियों की परम्परा का एक हिस्सा है। अपने भाई की लाश को राजस्थान के जंगलों में से ढूंढकर इन भाईयों ने उसके ही घर की खुंटी पर टांग दिया और आज डेढ वर्ष बाद भी उसका अंतिम संस्कार नहीं करने पर अडे हुए है। इतना ही नहीं पंचो ने भी बहन के परिजनों द्वारा पांच लाख नहीं देने तक शव का क्रियाकर्म नहीं होने देने की चेतावनी दी है।

 

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हमारे पत्रकार जब इस खबर की पड़ताल करने के लिए पहुंचे तो दोनो ही थानों की पुलिस हरकत में आ गई और मानो जैसे इन्हें कानून की सारी किताबें एक बार में ही याद आ गई हों। डेढ वर्ष से दोनो ही राज्यों की खाकी ये काम नहीं कर पाई आज आरोप लगने वाले बुजा गांव में रहने वाले बहन के परिवार को थाने में भी बुला लिया। जहां बहनोई के साथ पंच भी आए और उन्होंने भी सारे आरोपो को निराधार बताया और कहा कि कुछ भी हो जाए पैसा तो हम नहीं देंगे।
किसी ससपेंस मुवी की तरह लगने वाली इस कहानी के किरदार तो कई है जो अपना काम फिल्म की तरह ही निभा रहे है, लेकिन अजमेरी के शव को अब मोक्ष की दरकार है। धरती पर रहने वाले इंसान तो उसका क्रियाक्रम नहीं करना चाहते इसलिए अब उसकी मर चुकी आत्मा भी भगवान से मोक्ष की गुहार कर रही है।

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